विद्या-वसु श्रावकाचार अनुशीलन राष्ट्रीय युवा विद्वत संगोष्ठी संपन्न
विद्या-वसु श्रावकाचार अनुशीलन राष्ट्रीय युवा विद्वत संगोष्ठी संपन्न
साधु और समाज के बीच की कड़ी हैं विद्वान : आचार्य श्री वसुनंदी मुनिराज
अजमेर। ‘विद्या-वसु श्रावकाचार अनुशीलन’ विषय पर आगमनिष्ठ राष्ट्रीय युवा विद्वत संगोष्ठी परम पूज्य सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज के मङ्गल आशीर्वाद और परम पूज्य अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी आचार्य श्री वसुनंदी जी मुनिराज ससंघ के पावन सान्निध्य में 27-28 अक्टूबर 2018 में श्री जिन शासन तीर्थ जैन नगर, मदार नाका, अजमेर (राजस्थान) में प्रभावना जन कल्याण परिषद (रजि.) के तत्त्वावधान में अभूतपूर्व सफलता के साथ संपन्न हुई।
संगोष्ठी की आयोजक आचार्य श्री वसुनंदी महाराज चातुर्मास समिति अजमेर रही।
संगोष्ठी निदेशक डॉ. शीतल चंद्र जी जयपुर,
सह निर्देशक प्रो. जयकुमारजी उपाध्ये, दिल्ली और संयोजक पंडित मनोज शास्त्री अहार जी, सह संयोजक पंडित राहुल शास्त्री रहे।
संगोष्ठी संयोजक पंडित मनोज शास्त्री आहार और परिषद के मानद निदेशक डॉ. सुनील जैन संचय ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रथम उदघाटन सत्र 27 अक्टूबर को प्रातः 8 बजे ध्वजारोहण के साथ प्रारंभ हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता जैन दर्शन के गहन अध्येता डॉ. ब्र. राकेश भैया सागर ने की। सारस्वत अतिथि डॉ सुशील जी कुरावली रहे। मंगलाचरण श्रीमती डॉ. इंदु जैन ने किया और संचालन पंडित मनोज शास्त्री आहार ने किया। इस सत्र में डॉ पंकज जैन भोपाल और डॉ. आशीष जैन शास्त्री भोपाल ने अपने आलेख प्रस्तुत किए।
द्वितीय सत्र के प्रारंभ में डॉ. आशीष जैन ने मंगलाचरण किया। अध्यक्षता जैनजगत के मूर्धन्य विद्वान डॉ. शीतल चंद्र जी जयपुर ने की, सारस्वत अतिथि डॉ. पंकज जैन भोपाल रहे, संचालन डॉ. सोनल शास्त्री दिल्ली ने किया। इस सत्र में डॉ. बाहुवली जैन किशनगढ़, पंडित राजेश शास्त्री ललितपुर, डॉ. सुशील जैन कुरावली, डॉ. सतेंद्र जैन जयपुर, डॉ. सुनील जैन संचय ललितपुर ने अपने शोधालेख प्रस्तुत किये।
तृतीय सत्र रात्रि में 6.30 बजे से प्राकृत भाषा के मूर्धन्य विद्वान प्रो. जयकुमारजी उपाध्ये दिल्ली की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। शुभारंभ पंडित जितेन्द्र जैन के मंगलाचरण से हुआ । संचालन पंडित मनीष जैन ने किया। इस सत्र में डॉ. दर्शना जैन जयपुर, डॉ. सोनल जैन दिल्ली, डॉ. ब्र. डी राकेश भैया ने अपने आलेख प्रस्तुत किये।
चतुर्थ सत्र 28 अक्टूबर को प्रातः काल परम पूज्य मुनि श्री ज्ञानानंद जी महाराज के मंगलाचरण से शुरू हुआ। अध्यक्षता डॉ. ब्र. अनिल भैया प्राचार्य जयपुर ने की। संचालन डॉ. सुनील जैन संचय ललितपुर ने किया। सारस्वत अतिथि पंडित पवन दीवान मुरैना रहे। इस सत्र में डॉ. पुलक गोयल जबलपुर, डॉ. शीतल चंद्र जी जयपुर, प्रो.जयकुमारजी उपाध्ये दिल्ली, डॉ. इंदु जैन दिल्ली, ब्र. अनिल भैया ने अपने आलेख प्रस्तुत किये। इस अवसर पर प्रो. जयकुमारजी उपाध्ये दिल्ली को सरस्वती पुत्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पंचम समापन सत्र दोपहर में डॉ. शीतल चंद्र जी जयपुर की अध्यक्षता में आयोजित किया गया । मंगलाचरण डॉ. बाहुबली जैन ने किया। सारस्वत अतिथि पंडित जितेन्द्र शास्त्री कोटा रहे। संचालन डॉ. पुलक गोयल जबलपुर ने किया। इस सत्र में पंडित पवन दीवान मुरैना, पंडित शैलेष शास्त्री जयपुर ने अपने आलेख प्रस्तुत किये। इसके बाद संगोष्ठी में समागत सभी विद्वानों का चातुर्मास समिति द्वारा शाल, श्रीफ़ल, माला, साहित्य, स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मान किया गया।
इस अवसर पर परम पूज्य आचार्य श्री वसुनंदी जी महाराज ने अपने संबोधन में कहा कि विद्वानों ने जिनशासन की महती प्रभावना की है। विद्वान ही विद्वान के श्रम को जान सकता है। जैनधर्म की प्रभावना का जो कार्य साधु भी नहीं कर सकते, वह विद्वानों ने किया है। विद्वान जिनवाणी के लाल हैं। इन्होंने जैन संस्कृति के संरक्षण और सम्बर्धन में जो अमूल्य योगदान दिया है और दे रहे हैं वह प्रसंशनीय , सराहनीय है। उन्होंने कहा कि जहाँ वर्तमान समय में श्रावकों के आचरण में शिथिलता देखी जा रही है वहीं साधुओं में भी धवलता नहीं रही है। विद्वान साधु और समाज के बीच की कड़ी है।
डॉ. शीतल चंद्र जी जयपुर ने इस अवसर पर कहा कि पूज्य आचार्य श्री वसुनंदी जी महाराज द्वारा प्राकृत भाषा में रचित ‘विज्जा-वसु सावयायारो’ ग्रंथ के प्रकाशन के पूर्व उस ग्रंथ पर संगोष्ठी का आयोजन अपने आप में एक बहुत महत्वपूर्ण कदम है। इक्कीसवीं सदी में प्राकृत भाषा में लिखा गया यह श्रावकाचार अनमोल है।
सभी विद्वानों ने आचार्यश्री द्वारा प्राकृत भाषा में निरंतर हो रहे साहित्य सृजन को स्तुत्य बताया।
आभार विनीत जैन उन्नेरिया ने व्यक्त किया। पंडित अंकित शास्त्री का सराहनीय योगदान रहा।
-मनीष शास्त्री शाहगढ़
प्रचारमंत्री-प्रभावना जनकल्याण परिषद