दीक्षा गुरूओं के आदेशों के विरूद्ध जन्मदिन जैसे कार्यकलाप आखिर क्यों?.
दीक्षा गुरूओं के आदेशों के विरूद्ध जन्मदिन जैसे कार्यकलाप आखिर क्यों?.
अवतरण या अवतार का अर्थ होता है किसी वस्तु (जीव) का ऊपर से नीचे की ओर उतरना, दिवस यानी दिन अर्थात जन्मदिन लेकिन प. पू. आचार्य श्री ज्ञानभूषण जी महाराज के दीक्षा गुरू ने जन्मदिन न मनाने का सख्त आदेश दिया था तो फिर अपने दीक्षा गुरूओं के आदेश -निर्देश की अवहेलना अखिर क्यों?.
दीक्षा गुरू द्वारा लिखित संविधान रूपी आचार संहिता -:
दिगम्बर जैन परम्परा के धर्म धुरन्धर धर्मगुरुओं की अद्भुत आचार संहिता|
परम पूज्य आचार्य श्री 108 शाँतिसागर जी महाराज हस्तिनापुर वालो के शिष्य परम पूज्य आचार्य श्री 108 धर्मभूषण जी महाराज ने अपने जीवन काल में अपने गुरूदेव और जैनधर्म के नाम की ऐसी अद्भुत धर्म पताका फहराई जो कि आज भी विस्मरणीय है | आचार्य श्री ने स्वयं के संघस्थ समस्त साधुगणों के वास्ते संघ और सच्ची जैनधर्म प्रभावना के लिए एक “आचार संहिता” तैयार की जिससे दिगम्बर जैन साधु और जैनधर्म सदैव जयवंत रहे|
वर्तमान समय में उपरोक्त समाधि सम्राट प. पू. आचार्य श्री शाँतिसागर जी महाराज (हस्तिनापुर वाले) और प. पू. आचार्य श्री धर्मभूषण जी महाराज के धर्म प्रभावक शिष्य प.पू.आचार्य श्री ज्ञानभूषण जी महाराज एवं प. पू. आचार्य श्री भारत भूषण जी महाराज अपने दीक्षा गुरूओं की आचार संहिता पर चलकर धर्म पताका फेहरा रहे हैं |
अद्भुत परम्परा की अद्भुत आचार संहिता-
1-संघ के साथ कोई भी आर्यिका, क्षुल्लिका व ब्रह्मचारिणी नहीं रहेगी|
2- संघ के त्यागीगण आहार व विहार के समय किसी भी प्रकार के बैन्ड़ या बाज-साज नहीं बजने देंगे|
3- कोई भी त्यागी अपनी जन्मतिथि या दीक्षातिथि नहीं मनवायेंगे|
4-संघस्थ कोई भी साधु अपने पास पिच्छिका, कमंडलु व शास्त्र के अलावा अन्य किसी प्रकार का परिग्रह नहीं रखेगा|
5-रात्रि में तेल मालिश आदि निषेध होगा|
6-संघ में पंखा, कूलर, हीटर, टेलीफोन, मरकरी लाइट, एयर कंडीशन, मच्छरदानी और अन्य किसी प्रकार के साधनों का उपयोग नहीं होगा |
7-पिच्छिकाधारी किसी भी त्यागी को वाहन का उपयोग करने की आज्ञा नहीं होगी|
8-संघस्थ साधुओं-मुनि, ऐलक, क्षुल्लक के केशलोच का कोई समारोह नहीं होगा और ना ही इसकी कोई पत्रिका छपेगी|
9- संघस्थ कोई भी साधु व्यक्तिगत कुटिया या मठ बनाकर नहीं रहेगा |
10- किसी भी संस्था या मंदिर निर्माण के लिए संघ का कोई भी त्यागी चंदा एकत्रित नहीं करेगा|
11- आचार्य पुष्पदंत, भूतबलि, कुन्दकुन्द-आम्नाय के किसी भी ग्रंथ का निषेध नहीं किया जायेगा! चाहे वह कहीं से भी प्रकाशित हो और जिनवाणी माँ का अपमान नहीं होने देंगे|
12-अग्नि में धूप डालना, दीपक से स्वयं की आरती उतरवाना, निर्वाण दिवस पर किसी भी प्रकार का मीठा लडडू चढ़वाना,सामग्री में हार-सिंगार के फूलों का प्रयोग, पंचामृत एवं स्त्री द्वारा अभिषेक,भगवान को चंदन लगाना,हरे फल- फूल चढ़ाना इन सभी बातों का इस संघ में कोई समर्थन नहीं होगा|
13-कोई भी संघस्थ त्यागी वीतराग भगवान के सिवाय् पद्मावती, क्षेत्रपाल व अन्य किसी देवी -देवताओं का प्रचार -प्रसार नहीं करेगा|
14-संघस्थ कोई भी साधु रथयात्रा के साथ नहीं चलेगा व संघ में जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा साथ नहीं रहेगी |
15-आहार के समय किसी भी संघस्थ त्यागी का हरे संचित फलों से पड़गाहन नहीं होगा|
16-संघ का कोई त्यागी हल्दी, टमाटर, पपीता, भिण्डी, तरबूज, पत्ते वाली वनस्पति, आडू, लीची, टाटरी इत्यादि अशुद्ध वस्तुओं का उपयोग नहीं करेगा|
17-संघ के आहार के पश्चात किसी प्रकार का प्रसाद नहीं बटेगा|
18-सूर्यास्त के बाद महिलाओं का मुनियों के पास आना वर्जित है |
19-त्यागियों द्वारा महिलाओं से चरण स्पर्श करवाना वर्जित है |
20-संघ में कोई शिथिलता जैसे-समय पर सामायिक, प्रतिक्रमण भक्ति, स्वाध्याय ना करना!सहन नहीं होगा! अगर कोई त्यागी नियम के विपरीत क्रिया करेगा तो उसे पद छोड़ेकर जाना होगा |
21-समाज के पक्ष -विपक्ष आदि में नहीं उलझना, स्वयं आत्मकल्याण में लगे रहना तथा समाज के लोगों को भी आत्मकल्याण के लिए प्रेरित करना है |