अहिंसामयी जैनधर्म में पनप रहे हैं “हिंसा के मदारी”
“बूढ़ा मरे या जवान इन्हें हत्या से काम”-पी.एम.जैन
नई दिल्ली -: दिगम्बर जैन परम्परा के अंतर्गत ! वाहनों में विहार करने वाले कुछ क्षुल्लक-क्षुल्लिका अहिंसा के पुजारी नहीं बल्कि “धन पावना” के वास्ते घूमते -फिरते हिंसा के मदारी हैं क्योंकि इनके पीछे कुछ कमीशनवादी दलालों की एक टोली होती है ! जो समाज की आँखों में धूल झौंककर इनके साथ मिल-जुलकर काम करती है|
ऐसे हिंसामयी मदारियों के कार्यक्रमों से प्राप्त इन्कम में कुछ कमीशनवादी जमूड़ों की भी हिस्सेदारी होती है जो धर्म के नाम पर जनमानस की श्रद्धा व अास्था के साथ खिलवाड़ करके कमाते खाते हैं |
समाज विचार करे कि ऐसे घुमक्कड़ हिंसा के मदारी जैनधर्म की नवपीढी़ और विश्व की जनता को अहिंसा धर्म की शिक्षाप्रद बातों को लेकर क्या पाठ पढा़येंगे और क्या समझायेंगे जो खुद अहिंसामयी धर्म की प्रथम सीढी़ (क्षुल्लकावस्था) पर ही फेल हैं, अनुत्तीर्ण हैं?.
आज अधिकाँश देखने को मिलता है कि कुछ क्षुल्लक-क्षुल्लिका अहिंसा का उपकरण अर्थात मयूरपिच्छिका लेकर वाहनों में भ्रमणशील हैं! वह ढ़ोंग रूप में वायुकायिक जीवों का परिमार्जन तो करते हैं, जीव रक्षा के लिए मुलायम मयूर पिच्छिका हेतु पिच्छिका परिवर्तन भी साल में कई बार नीलामी बतौर करते हैं, आहारचर्या के समय हिंसा रूपी उपकरण जैसे-बिजली का बल्ब जल जाये,चूल्हा जलता दिख जाये, पंखा चल जाये,झाडू दिख जाये या किसी दु:खी इंसान के रोने की आवाज सुनाई पड़ जाये तो अंतराय कर्म के कारण आहारचर्या करना छोड़ देतें हैं अर्थात भोजन खाना छोड़ देतें हैं|
आहारचर्या से पूर्व ईर्यासमिति के अंतर्गत चार हाथ आगे की भूमि देखकर भी चलते हैं क्योंकि चींटी आदि जीवों का उनके द्वारा घात न हो जाये, मरण न हो जाये! इसके अतिरिक्त कुछ उत्कृष्ट साधक तो सिर में पनपने वाले जीवों के प्रति भी इतनी अहिंसामयी करूणा दिखाते हैं कि सिर व दाढ़ी-मूँछ के बाल काटने के लिए किसी औजार का प्रयोग तक नहीं करते हैं लेकिन नाम, दाम और धाम के लिए लक्जरी गाडियों, हवाई जहाजों का धड़ल्ले से उपयोग करके करोंडों जीवों को, मौत के घाट उतार देतें हैं जोकि अहिंसामयी धर्म के नाम पर मात्र ढो़गलीला ही है|
समाज जरा विचार करे कि जो क्षुल्लक-क्षुल्लिका लग्जरी गाडियों व हवाई जहाज में विचरण कर सकते हैं वह खुद के लिए क्या आहार (भोजन) तैयार नहीं कर सकते हैं ? सम्भवतः ऐसे कुछ चोलाधारी जब अपने निमित्त से बना आहार (भोजन) स्वीकार नहीं करते तो वह अपने निमित्त से हिंसात्मक वाहनों का उपयोग कैसे कर सकते हैं|
अहिंसामयी धर्म के ऐसे कुछ हिंसा के मदारी जब जीव हत्या को लेकर रात्रिभोजन निषेध,पानी छानकर पीने,आलू निषेध इत्यादि पर देश- विदेश की जनता को संम्बोधित करते हैं तब उनके उपदेशकारी प्रवचन भी हास्यप्रद लगते हैं क्योंकि सर्वप्रथम वह खुद भी जीव हत्या से अछूते नहीं हैं ! ऐसे अहिंसामयी धर्म की अप्रभावना से जुड़े कुछ चोलाधारी “Oh My God” और” Pk “जैसी फिल्मों को प्रोत्साहित करते हैं|
आज समाजों के बीच रम रहे कुछ क्षुल्लक- क्षुल्लिकाओं का धन पावना के वास्ते एक ही मूल उद्देश्य है कि “बूढ़ा मरे या जवान हमें हत्या से काम”|
आगम में ग्रहण लगाने वाले आगम विरोधियों के दीक्षा गुरूओं पर भी विचार करना अत्यन्त आवश्यक है कि वह ऐसे अप्रभावना करने वाले क्षुल्लक-क्षुल्लिकाओं पर अंकुश लगाने में आखिर क्यों असर्मथ हैं?. क्या उनकी मर्जी से ही मदारीगीरी का खेल समाजों के बीच चल रहा है? अगर नहीं तो फिर उन्हें अंकुश लगाना चाहिए क्योंकि ऐसे आगम विरोधियों के कारण ही धर्महानि के साथ -साथ दीक्षा प्रदाता गुरू एवं समस्त समाज को भी पाप बंध हो रहा है | और…..
यदि दीक्षा प्रदाता गुरू और समाज की सोची समझी नीति के तहत मदारीगीरी का खेल चल रहा है तो फिर ऐसी विश्व प्रभावक धर्म प्रभावाना आदि का भगवान ही मालिक है| जिसके दुष्परिणाम दुनियाँ के सामने धीरे -धीरे जगजाहिर हो रहे हैं|
विश्वशाँति के नाम पर जप-तप,हवन-विधान आदि धार्मिक क्रियाऐं करने वालों को ध्यान रखना चाहिए कि जब उनके द्वारा की गई धार्मिक क्रियाओं से विश्व शाँति की कामना हो सकती है तो आगम में ग्रहण लगाने वाली कुरीतियाँ भी समाज और विश्व में अशाँति फैला सकती हैं|
मोक्षमार्ग कोई मोदक का लड्डू नहीं है जिसे हर कोई चख ले ! यह मार्ग आदि से लेकर महावीर जैसे युगवीरों का मार्ग है|| -पी.एम.जैन “ज्योतिष विचारक” दिल्ली| मोबाइल -09718544977