यह समुदाय जिस प्रान्त में जाता है, जिस समुदाय के बीच कारोबार करता है, उनके बीच पूरी तरह से घुल-मिलकर रहता है।अपने काम से काम रखना और जैनधर्म के सिद्धाँतों को मानते हुए अपने व्यापार को आगे बढ़ाना ही इनका व्यापारिक सफलता का उन्नतकारी मंत्र है। साथ ही साथ अहिंसा धर्म के मौलिक सिद्धातों का अनुसरण करना जीवन शैली का अमूल्य अंग है|
आज भरत जी के भारत देश की लगभग कुल जनसंख्या 125 करोड़ है जिसमें लगभग 0.4 प्रतिशत जैन लोग हैं, लेकिन इनकी अहमियत प्राचीन काल से आज तक बरकरार है। भगवान महावीर स्वामी के “जियो और जीने दो” जैसे संदेश की वजह से जैनों को दुनियाँ भर में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। सात्विक जीवन शैली और आचार-विचार को नियंत्रण में रखने वाला यह अल्पसंख्यक समुदाय जनसंख्या में भले ही 0.4 प्रतिशत है, लेकिन “भरत जी के भारत”,के “राष्ट्र निर्माण में इनका योगदान” सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।देश का यह अल्पसंख्यक समुदाय सिर्फ आगे बढ़ने और किसी से न उलझने में विश्वास रखता है। सादा जीवन और उच्च विचार इस समुदाय का पैरामीटर बन चुका है।
यह यथार्थ सत्य है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं अगर दो पहलू न हों तो सिक्का मान्य नहीं होता है !इसी के तहत इस समुदाय में व्यापार को लेकर एक तरह की ईमानदारी है यह ईमानदारी सभी के लिए ईमानदारी जैसी स्थिति पैदा करती है। समुदाय द्वारा सही तरह से धन कमाना गलत नहीं है, लेकिन धन कमाने के साथ-साथ यह समुदाय देशहित-समाजहित के लिए कुछ अच्छे काम करना भी ऊतना ही आवश्यक मानता है ! हालाँकि दूसरी तरफ मौज-मस्ती के लिए धन को पानी तरह बहाने जैसी कमजोरियाँ सिक्के के दूसरा पहलू को भी दर्शाती हैं, लेकिन यह समुदाय किसी की मदद करने में भी कभी पीछे नहीं रहता है। यही वजह है कि जैन समाज बड़े-बड़े अस्पताल, कॉलेज, स्कूल, धर्मशाला आदि बनवाने के अलावा गरीब लड़कियों की शादी कराने में काफी आगे नजर आता है। सरकारी आंकड़ों में कहा जाता है कि भारत में सबसे ज्यादा इन्कम
टैक्स (रिटर्न) भी जैन ही चुकाते हैं। यह लोग रूढ़िवादी नहीं, बल्कि प्रगतिशील हैं।
इस समुदाय की विशेषता है कि यह जहाँ भी व्यापार स्थापित करता है, वहाँ की इकॉनमी फलने-फूलने लगती है! यह समुदाय ऐसे उद्योग स्थापित करता है, जहाँ हजारों बेरोजगार लोग रोजी-रोटी के वास्ते काम से जुड़ जाते हैं। समुदाय की सोच इस तरह की है कि उनकी वजह से किसी को कोई समस्या नहीं होती है! यही वजह है कि हर जाति-धर्म में जैन समुदाय को लेकर एक सकारात्मक विचार है।
स्टील से लेकर प्लास्टिक और कपड़े से लेकर ज्वैलरी एवं फाइनैंस तक सभी जगह जैन समुदाय का बोलबाला है अपनी विकसित सोच के कारण जैन हमेशा आगे रहना पसन्द करते हैं। इस समुदाय के लोगों में कुछ समय पहले शिक्षा को लेकर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था, लेकिन अब पढ़ाई-लिखाई के लिए जैन समाज में काफी जोर दिया जाता है, जिसके तहत महिलाओं को शिक्षा दिलाने में भी यह आगे नजर आते हैं।
गौरतलब है कि जैन महिलाओं का लिटरेसी रेशो करीब 96 फीसद है। विकसित सोच की वजह से आज देश -विदेशों में जैन उच्च पदों पर काम कर रहे हैं। वहीं, देशभर के कुछ व्यापारी कहते हैं कि सदियों से व्यापारिक सफलता के नये-नये सोपान चढ़ने वाला जैन समुदाय का दबदबा पूरे देश में है|
जैन साधुसंतों व समाजसेवी संस्थाओं का समय-समय पर इस समुदाय को धर्म के प्रति सचेत करना भी सम्पन्न में चार चाँद लगा देता है | उनका कहना है कि आज के ग्लोबल दौर में जैन समाज को अपने सिद्धाँतों को नहीं भूलना चाहिए।
जैन समुदाय पूरे भारत में है लेकिन गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि में इनकी संख्या काफी ज्यादा है। वहीं, व्यापार और नौकरी के चक्कर में वह लगातार विदेशों में भी बस रहे हैं। व्यापार के चलते साउथ अमेरिका और नौकरी की वजह से नॉर्थ अमेरिका में काफी जैन रहते हैं।
टेक्सटाइल, डायमंड-जवाहरात,स्टॉक मार्केट, ट्रेडिंग जैसे मार्केट में जैन समुदाय का दबदबा है। व्यवसाय में रमने वाले इस समुदाय का एक ही आर्थिक व व्यापरिक मंत्र है, ‘लर्न, अर्न और रिटर्न’।
भरत जी के भारत में आज भी अल्पसंख्यक जैन समुदाय के लोगों का कहना है कि “हमें देश की अनेकों समाजों जो दिया है, उसे रिटर्न करने के लिए हमारे कई माध्यम हैं। हम जैन समाज के साथ -साथ देशहित-समाजहित के लिए अन्य माध्यमों से पूरे समाज के लिए कई ऐसे प्रोग्राम चलाते हैं, जिसके अन्तर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं के अतिरिक्त योगदान रूपी अनेकों व्यवस्थाऐं सम्मलित हैं |