क्या कहता वास्तुदोष और मृत्युभोज “क्या आप भी खाते हैं “तेरहवीं ” का खाना?.तो अब छोड़ दें !
वास्तुदोष का ढ़िढ़ोरा पीटने से पहले, अपने ब्रह्माण्ड रूपी शरीर का वास्तु ठीक करना चाहिए- पी.एम.जैन
नई दिल्ली -: वास्तुशास्त्रियों का कहना है कि वास्तुशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है, जो व्यक्ति के आसपास फैलने वाले वातावरण के अनुसार ही उसकी सफलता और असफलता निर्धारित कर देता है। इसका सबसे बड़ा असर देखने को मिलता है भोजन पर !जब खाना खाने और खिलाने वाले दोनों के दिल में दर्द और पीड़ा हो तो ऐसी स्थिती में कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए।
किसी स्थान के वास्तुदोष ढूँढने का ढ़िढ़ोरा पीटने से पहले, व्यक्ति को अपने ब्रह्माण्ड रूपी शरीर का वास्तु ठीक करना चाहिए |
महाभारत के अनुसार मृत्युभोज यानी तेरहवीं से जोड़े हुए इस अंश की मानें तो जब किसी सगे-सम्बंधी की मृत्यु हो जाती है तो उस समय तेरहवीं पर आने वाले लोगों और जिनके घर में मौत हुई है उन लोगों यानी दोनों के मन में विरह का दर्द होता है। इन दोनों पक्षों के दिल और दिमाग़ में सकून की स्थिति नहीं होती है जिसके कारण दोनों पक्षों के लोगों के शरीर से एक दर्द भरी दु:खद ऊर्जा का संचार होता|
उस समय भोजन करवाने वाला और करने वाला दोनों ही दुखी होते हैं इसलिए श्रीकृष्ण जी कहते हैं👉कि “शोक में करवाया गया भोजन व्यक्ति की ऊर्जा का नाश करता है” इसका मतलब है कि मृत्युभोज या तेरहवीं पर भोजन नहीं खाना चाहिए क्योंकि उससे व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।