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Home›लेख-विचार›पर्दाफ़ाश 👉 आखिर क्यों बनते हैं अनावश्यक मन्दिर?.

पर्दाफ़ाश 👉 आखिर क्यों बनते हैं अनावश्यक मन्दिर?.

By पी.एम. जैन
January 27, 2019
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“कुछ तो सल्लो बाबरी और कुछ लीं भूतों ने घेर” -पी.एम.जैन नई दिल्ली -: आज भरत जी के भारत देश में इतने अधिक प्राचीन मन्दिर और शाश्वत तीर्थ विद्यमान होते हुए भी अनावश्यक नवनिर्मित मन्दिर इतनी अधिक संख्या में गली-गली, मौहल्ले-मौहल्ले में विद्यमान आखिर क्यों हैं, कि जिनकी देखभाल के लिए भी फजियते पड़़े रहते हैं| आज लेख के माध्यम से इस फजियते बाजी का पर्दाफ़ाश करने की कोशिश करते हैं जोकि आम जनता की नजरों से छिपा हुआ एक वास्तविक राज है|

आज के दौर में कुछ धार्मिक बाबा तो अदृश्य रूप से बिल्ड़र बाबा बने बैठे हैं जोकि धार्मिक अनावश्यक नवनिर्माण जैसे गोलमाल के व्यापार से जुड़े मिलते हैं और सिर्फ धार्मिक भेष के आधार पर ही सामाजिक तौर पर पुजतें भी हैं! जबकि बिल्ड़र तो संसारिक तौर पर व्यापारी ही होता है उसका क्या दोष! लेकिन कुछ बाबा संसार से विरक्त होते हुए भी भोलीभाली जनता की आँखों में धर्म नाम की धूल झौंककर, कुछ बिल्ड़रों के साथ मिलकर पर्दे के पीछे से व्यापारी होते हैं !क्योंकि कुछ “बिल्ड़रों के इशारे पर ही अनावश्यक मन्दिर बनते हैं और फिर होता है  मिलजुल कर दोनों का धर्म के नाम पर करोडों का गोलमाल व्यापार”|

कैसे रखते हैं मिलजुल कर गोलमाल व्यापार की नींव-
बिल्ड़रों के साथ बाबाओं का व्यापार कैसे शुरू होता है इसके बारे में मिली जानकारी से आश्चर्यजनक खुलासे सामने आते हैं जोकि धर्म के प्रति आस्थावान जनता की आस्था पर कुल्हाड़ा चोट करते हैं |
दरअसल, होता यह है कि बिल्ड़र सबसे पहले जनता के बीच ऐसे बाबाओं की खोज करता है जिनका धर्म और धर्म प्रभावना से कोई लेना-देना न हो लेकिन धर्म की आड़ में आड़म्बर करने में परांगत हो यानी उसका बाबा बनने का मूल उद्देश्य मात्र “धन पावना” अर्थात धन कमाना ही हो| बिल्ड़र को बाबा मिलने के बाद उसकी दूसरी खास खोज उन लोगों की होती है जिनका भूतकाल आर्थिक तंगी से गुजरा हो और वर्तमान भी आर्थिक तंगी से गुजर रहा हो| बिल्डर द्वारा उपरोक्त दोनों खोजों की पूर्ति होने के बाद उसके द्वारा धर्म के नाम पर गोलमाल जैसे व्यापार का उद्घाटन हो जाता है और फिर शुरू हो जाता है धर्म के नाम पर करोडों के व्यापार का विस्तार|
कैसे होती है गोलमाल व्यापार में वृद्धि –
दरअसल, गोलमाल व्यापार में चार चाँद तब लगते हैं जब जनता बाबाओं के मात्र भेष को ही धर्म मानकर उसकी पूजा-पाठ और प्रशंसा के चँगुल में फँसी रहती है लेकिन बाबा के वास्तविक धार्मिक आचरण पर दृष्टि नहीं रखती है|यदि देश- समाज में कोई व्यक्ति पत्रकारिता,आम-चर्चा या प्रवचनों के माध्यम से जनता को बाबागीरी के वास्तविक आचरण से अवगत कराना चाहता भी है तो उसकी आवाज दबाने की भरपूर कोशिश की जाती है या फिर इसकी एवज में ” बिल्ड़र बाबा” अपने अंधभक्तों को गड़ा-ताबीज या उद्धार के नाम पर बहला-फुसला देता है| खुदा ना खास्ता अगर कोई सशक्त सामाजिक संस्था या कोई धार्मिक सूत्रों में, परांगत सशक्त धार्मिक मन्दिर कमेटी “गोलमाल व्यापार” में अड़चन पैदा करती है तो “बिल्ड़र बाबा” उसके कुछ लालची किस्म के पदाधिकारियों को खरीद-फरोक्त के जरिए कुछ लेन-देन करके समझा-बुझा देता है और अपने गोलमाल मिशन में शामिल कर लेता है|
अब प्रश्न यह उठता है कि जनता ऐसे बाबाओं के वास्तविक धार्मिक आचरण पर अपनी दृष्टि क्यों नहीं रखती है? उसके उत्तर में सम्भवतः यह कहना उचित होगा कि दृष्टि न रखने का राज यह भी होता है कि बाबा के अतिरिक्त वह तीसरा व्यक्ति भी होता है जो आर्थिक तंगी के कारण इसी गोलमाल जैसे व्यापार का एक अहम हिस्सेदार है |
यह व्यक्ति जनता के बीच से उन्हीं लोगों को लाकर बाबा से जोड़ता है जो वर्तमान में आर्थिक तंगी या अन्य परेशानियों से जूझ रहे होते हैं | बाबा गैंग का यह व्यक्ति उस परेशान व्यक्ति की परेशानी के निदान के वास्ते बाबाओं से तंत्र-मंत्र या विधि-विधान द्वारा परेशानियों से छुटकारा दिलाने का भरोसा दिलाता है! जिसके फलस्वरूप बाबाओं की जय-जयकार करने वाले लोगों की एक अच्छी खासी भीड़भाड़ रूपी जमात इक्ट्ठी हो जाती है|
यह भी यथार्थ सत्य है कि परेशान व्यक्ति का ऊँट अगर खो जाये तो वह किसी के भी कहने पर ऊँट को गागर (मटका) में भी ढूँढने लगता है यानी “मरता क्या ना करता” वाली कहावत भी यहाँ पर सिद्ध होती है|
जमात इक्टठी होने के बाद व्यापार में लगते हैं चार चाँद –
बिल्ड़र जब देख लेता है कि अब बाबा का जनता के बीच बोलबाला हो चुका है और उसके तंगीग्रस्त व्यक्ति सहित दोनों पक्ष मजबूत हो चुके हैं तब वह फ्लैट रूपी बिल्डिंग बनाने के लिए उस स्थान की खोज करता है जहाँ से बाबा गैंग सहित अनावश्यक नवनिर्माण के नाम पर बड़े से बड़ा गोलमाल व्यापार कर सकते हैं| खुदा ना खास्ता अगर बिल्ड़र को जमीन न मिले तो वह अच्छे खासे मजबूत मन्दिरों का जीर्णोध्दार जैसा मुद्दा बाबा को समझा देता है लेकिन….
 गौरतलब है कि बिल्ड़र काफी लम्बी-चौड़ी जमीन (स्थान) खरीदने के तुरन्त बाद तंगी ग्रस्त व्यक्ति को समाज का मुखिया बनाता है और बाबा द्वारा उस जमीन पर सर्वप्रथम एक धार्मिक मन्दिर बनाने की जनता के बीच घोषणा करवा देता है जिससे बाबा से जुड़े कुछ लोग आस्था – विश्वास के वशीभूत होकर “बाबा वचनम् सत्यम्” के माध्यम से उस स्थान पर अपना आशियाना खरीदने के लिए बुकिंग करते हैं साथ ही साथ बाबा के अंधभक्त अन्य लोगों को भी प्रेरित करते हैं |
(विशेष -: क्योंकि नई जगह पर जनता को बसाने और व्यापार वृद्धि के वास्ते कुछ बिल्ड़रों द्वारा मीठा पानी,बिजली के खम्बे , पक्की सड़क, बस अड्डा, हवाई पट्टी,अस्पताल,स्कूल के नाम पर गुमराह करने वाले फार्मूलों को जनता अब समझ चुकी है तो अब इसके बदले धार्मिक आस्था का नया फार्मूला बाबाओं के साथ मिलजुल कर प्रोपर्टी मार्केट में लाया गया है )
नये आशियाने की खतिर होती है प्राचीन मन्दिरों की बेकदरी-
कुछ बाबाओं और कुछ बिल्ड़रों की सोची समझी नीति के कारण प्राचीन मन्दिर या एक ही कालोनी में पहले से विद्यमान – स्थापित मन्दिरों की बेकदरी तो होती ही है साथ ही अधिकाँश तौर पर सामाजिक लोग प्रेमभाव भूलकर आपसी सामाजिक कलह के शिकार भी होते हैं| गोलमाल नीती के तहत एक ही कालोनी में चार -चार अनावश्यक नवनिर्मित मन्दिरों की प्राण-प्रतिष्ठा के नाम पर बाबा गैंग द्वारा चलाये जा रहे गोलमाल व्यापार की इन्कम में चार चाँद और भी लग जाते हैं अर्थात बाबा गैंग के लिए  “धन पावना” का एक और स्रोत खुल जाता है जिसके चलते बाबा और तंगीग्रस्त समाज का मुखिया आधुनिक सुख -सुविधाओं का लाभ उठाते हुए अपने -अपने पारिवारिक सदस्यों की मकान-दुकान और व्यापार जैसी तंगी को दूर करते -करते उच्चतम शिखर पर पैर पसारने लगते हैं साथ ही साथ नवनिर्मित मन्दिर पर “एकल स्वामित्व” स्थापित करके जनता के धार्मिक चंदे पर मौज उड़ाते हैं|
यह यथार्थ सत्य है कि ”चंदा का धंधा” कभी मंदा नहीं होता और चंदा से जुड़ा धंधा करने वालों से साधारण सा धंधा करने वाला कोई पंगा नहीं लेता क्योंकि चंदे के धंधे में कोई रिस्क नहीं होता जबकि साधारण धंधे में रिस्क की संभावना सदैव बनी रहती है |
यहाँ पर तो भोलीभाली जनता के लिए यही कहावत घटित होती है
कि -“कुछ तो सल्लो बाबरी और कुछ लीं भूतों ने घेर” अर्थात अज्ञानतावश अंधभक्तों का पाखंडी बाबाओं के चँगुल में फँस जाना|
देश की जनता को ऐसे तथाकथित बाबाओं और धर्म के दुश्मन मुखियाओं की षड्यंत्र रूपी कुनीतियों को ध्यान में रखते हुए विचार करना चाहिए कि मनुष्य का उद्धार “अनावश्यक मन्दिर” निर्माण से नहीं होगा जिससे सामाजिक लूट के साथ -साथ, प्रतिमाओं की अविनय हेतु बीज बोया जाये , समाज में आपसी मनभेद-मतभेद और कलह की नींव रखी जाये बल्कि उद्धार होगा तो भगवंतों द्वारा बतलाये मार्ग को अपनाने से होगा, नि:स्वार्थ परोपकार से होगा ना कि जनता के साथ छलियापना करने से उद्धार होगा |
देश की जनता जिस प्रकार अपने खान-पान, रहन-सहन और संतान में कन्यादान के प्रति विवेकवान रहती है जैसे- ” हमारे द्वारा दिये गये कन्यादान का शोषण आदि तो नहीं हो रहा है” उसी भाँति हमें धार्मिक दिये गये दान के प्रति भी विवेकवान रहना चाहिए क्योंकि आपका दिया गया दान भी कुदान में शामिल हो सकता है |
आज मात्र चोला पुजवाने वाले बाबाओं के प्रति अंधीआस्था में फँसी देश की भोलीभाली जनता धर्म के नाम पर लुट रही है और धार्मिक स्थलों पर सुख-शाँति की कामना छोड़ आपसी भेदभाव में जमकर उलझ रही है क्योंकि आज बाबा गैंग के पदाधिकारियों द्वारा संंचालित कुछ मन्दिर, मन्दिर नहीं बल्कि बाबा सहित पदाधिकारियों की आजीविका के स्रोत बने हुए हैं |- पी.एम.जैन,
मोबाइल नं. -9718544977
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