उत्तरप्रदेश के एटा जिले के ग्राम फफोतु में पद्मावती पुरवाल क्षत्रिय दि. जैन जाति के श्री प्यारेलाल जी व उनकी श्रीमती जयमाला के 4 पुत्रियाँ व 1 पुत्र थे। तभी इन 5 बच्चों के किलकारियों वाले घर मे माता जयमाला के गर्भ में एक ओर जीव के आगमन का अहसास हुआ। सारा परिवार खुश था कि घर मे एक ओर नन्हा सदस्य आने वाला है,अष्टानिका पर्व के महीने भर पूर्व ही माँ जयमाला अपना गर्भकाल पूर्ण करके महान पुण्योदय से माघ शुक्ला सप्तमी दिनांक 27 जनवरी 1938 को पुण्यात्मा ने अवतार लिया। सारे परिवार में खुशियां छा गयी,एक ओर भाई के आगमन के समाचार से चारो बहनों में आनन्द का पार नही रहा।
कुछ दिनों पश्चात अम्मा जी ने गांव के पंडित के पास जाकर नन्हे बालक का जन्म वार-समय-स्थान की सबकुछ जानकारी दी। पंडित ने भी हाथोंहाथ जन्म कुंडली तैयार कर दी,कुंडली देखकर पंडित जी पुलकित हो उठे।आनन्द उनके मन से बह कर मुख द्वार से निकल पड़ा,बोल उठे-प्यारेलाल के भाग्य में ही इस तरह का लाल हो सकता है,अम्माजी की ओर मुखातिब होकर बोले पंडितजी-अरे!इस कुण्डली में बालक के जबरदस्त योग बन रहे है।जातक आनेकानेक लोगो का उपकार करने वाला और जगत प्रसिद्ध होगा। यदि सब लग्नपत्रिका के नुसार हुआ तो बालक महान तपस्वी व योगी होगा।
पंडित ओर कुछ कहे उससे पूर्व ही अम्माजी सवा रुपया हाथ मे रखकर बोली-अब रहने दो मै तो मेरे मुन्ने का ब्याह करूंगी,अम्माजी घर के रस्ते चल दि।
अनमने भाव से किन्तु सहर्ष अम्माजी ने सारी स्थिति प्यारेलाल जी को बता दी,जिस पर वे इतना बोले-पंडितों का तो ये धंधा है। यदि वे ऐसी ऊंची ऊंची बाते नही कहेंगे तो फिर पंडित कहेगा ही कौन?…अच्छा अम्माजी पंडित ने नाम क्या क्या बताए है?
अम्मा ने कहा-चैनसुख,चैन भी और सुख भी लेकिन मेने तो ओमप्रकाश विचारा है।
अरे!ऐसा ही मै भी विचार रहा था। ओम पंच परमेष्ठि वाचक है और परम प्रकाश स्वरूप भी है।
अम्माजी ने विनोदी स्वर में अपने बेटे से कहा-तो फिर तेरे एक ओम में ही पंच परमेष्ठि,सूरज-चांद सब समा गए।
81 वर्ष पूर्व माघ शुक्ल सप्तमी को जन्मे ओम प्रकाश ने सन 1956 में आदिसागर अंकलिकर स्वामी के पट्टचार्य तीर्थभक्तशिरोमणि आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी महागुरुराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया व शाश्वत तीर्थ सम्मेदशिखर जी मे सन 1962 में वात्सल्यरत्नाकर आचार्य श्री विमलसागर जी महाऋषिराज के वरदानदायी हस्तो से मुनि दीक्षा ग्रहण करि
*यही ओमप्रकाश युगश्रेष्ठ आचार्यशीरोमणि महातपोमार्तण्ड तृतीय पट्टचार्य श्री सन्मति सागर जी के नाम से जग विख्यात हुए।*
जिन्होंने भगवान महावीर की वीतरागता, अपने महान पूर्वाचार्यो के आदर्शो व त्याग-तपस्या-श्रेष्ठ निस्पृहि साधना को विश्व के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ़ करके स्वर्ण समान जगमगा दिया।
ऐसे दुर्लभ श्रेष्ठ महायोगी जिनके चरण पथ पर चलने को हर सन्त लालायित है उनके लिए एक लाइन जगविख्यात है
*कलिकाल में ऐसा सन्त न भूतों न भविष्यति*
*ऐसे तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागर जी महामनीषी का 82वा जन्म जयंती दिवस माघ शुक्ल सप्तमी दिनांक 12 फरवरी को गिरनार सिद्ध क्षेत्र पर उनके बेमिलास नन्दन धर्म प्रभावना सम्राट चतुर्थ पट्टचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरूराज के मंगल सानिध्य में मनाया जाएगा।*
*लेखक-गुरुचरण सेवक शाह मधोक जैन चितरी*
*नमनकर्ता-श्री आदिसागर अंकलिकर जागृति मंच,श्री सुनिलसागर युवा संघ*