धन पावना के लिए अपने कमलगट्टों को धार्मिक कार्यक्रमों के लिए देते हैं प्रेरणा👉पी.एम.जैन “पापी” दिल्ली
मैं लेख के माध्यम से उन महानुभावों का स्वागत सत्कार,आभार और अभिनंदन करता हूँ जो लोग मुझे “पापी” कहते हैं| मैं उनके द्वारा प्रदत्त “पापी” नाम की उपाधि को हृदय से स्वीकार करता हूँ | धन्य हैं ऐसे महानुभाव जो इस पंचमकाल की बेला में भी शुभ चिंतक रूप में मेरे लिए निमित्त बनकर इस वसुंधरा पर आये हैं !, इसे मैं अपना अहोभाग्य ही मानता हूँ कि मेरे कटुसत्य पर आधारित, पारदर्शी लेखों ने कुछ उपाधि प्रदत्त लोगों के दिल -दिमाग में हलन-चलन पैदा करके एक “पापी” नाम की उपाधि को पैदा तो किया है, जिसका मुझे अब आजीवन पालन-पोषण करने का अधिकार प्राप्त हुआ है|
आज कुछ लोग फोन इत्यादि के माध्यम से मेरी पढ़ाई -लिखाई की डिग्री और डिग्री कॉलेज का नाम व स्थान पूछते हैं उन महानुभावों के लिए मेरा एक ही जवाब है कि पहले वह लोग कालीदास जी, सूरदास जी, तुलसीदास जी जैसे महान व सम्माननीय लोगों का डिग्री कॉलेज और डिग्री मुझें बतलायें जिनकी पुस्तकें पढ़-पढ़कर उपाधि प्रदाता कुछ लोग, स्वयं डिग्रियाँ प्राप्त कर रहे हैं| मैं तो इन महान लोगों के शब्दकोष की धूल तक नहीं हूँ! इसलिए “मुझे पापी बने रहने में ही आन्नदित रहने दें और आप सभी पुण्यात्मा बनकर सदैव इस दुनिया में भ्रमणशील रहते हुए प्रफुल्लित बनें रहें, ऐसी मेरी कामना है| धन्यवाद|
🙏दूसरी बात👇
आज दुनिया में कौन-सा इंसान है जो पापी न हो | अरे भाई अगर पापी न होते तो इस संसार से तुम्हारा- हमारा आवागमन छूट जाता और हम -तुम संसार भंवर से छुटकारा पाकर सिद्धशिला या बैकुण्ठ में बैठ जाते| कहने का तत्पर्य है कि जो आज भी इस संसार में भ्रमणशील हैं वह सब सूक्ष्मदृष्टि से पापी ही हैं फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ संसार से छुटकारा पाने वाले हैं और कुछ छुटकारा पाने को तैयार हैं|
एक फिल्म में मैने गाना सुना था 👉 यार हमारी बात सुनों ऐसा एक इंसान चुनों कि जिसने पाप न किया हो और वह पापी न हो” लेकिन मैंने तो आपकी प्रदत्त उपाधि को हृदय से स्वीकारा है और आज मैं लेख के माध्यम से लिखित रूप में स्वीकारता हूँ कि मैं पापी हूँ|
लेकिन👇
हाँ ! मैं “पापी” उन महापापियों से बेहतर हूँ जो धार्मिक महाव्रतों का उल्लंघन करके जनता को धर्म के नाम पर गुमराह करते हैं| संसार से विरक्त होकर धार्मिक चोला पहनकर धन पावना के लिए धार्मिक कार्यक्रम करते हैं और अपने “कमलगट्टों” को धन पावना के वास्ते धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करने की प्रेरणा भी देते हैं| ब्रह्मचर्य जैसे महाव्रत के धारी होते हुए भी जनता के बीच, संसार वृद्धि के लिए संतान उत्पत्ति के उपाय बताते हैं! अपने अधीनस्थ शिष्यों को लग्जरी गाडियाँ, सोना- चाँदी, जमीन- जायदाद इत्यादि सुख-सुविधाओं से धनिक बनाने के लिए महामंत्र की साधना छोड़ तंत्र-मंत्र व ज्योतिष आदि करते हैं, साधु भेष धारण करके नाम प्रसिद्धि और निजी पारिवारिक पूर्ति के लिए जनता को गुमराह करके चतुर्थ कालीन भूगर्भ से मूर्तियाँ निकालते हैं|
अरे ! उपाधि प्रदाता महानुभावों यह तो जरा विचार करो कि👉चतुर्थकाल में आधुनिक मशीनें और उनसे तराशा हुआ जर्मनी पत्थर कहाँ से आ गया? लेकिन आज उन जर्मनी पत्थरों पर जयपुर नगरी की आधुनिक मशीनें नक्काशी करके बैंकॉक/ चाइनीज़ कलर करती हैं और उन कलरफुल मूर्तियों को नीलम, पन्ना, पुखराज रत्न आदि की बतलाकर जनता को लूटा जाता है |
आज समदृष्टी रखने वाले भगवंतों के कुछ धार्मिक पंड़ित आखिर क्यों अमीर और गरीबों पर अलग-अलग दृष्टिकोण रखते हैं,क्योंकि 👉 सम्भवतः गरीबों से ऐसे तथाकथित धार्मिक पंड़ितो की उदरपूर्ति संम्भव नहीं होती है|इसीलिए अधिकाँश धार्मिक कार्यक्रमों में अधकचरे धनाढ्यों से धन लूटने के लिए👉धार्मिक सभाओं में श्रद्धालुओं की भीड़ न होते हुए भी गरीबी दिखाई जाती है जिसके अन्तर्गत कार्यक्रमों में आना-जाना फ्री और फाइवस्टार होटलनुमा छप्पनभोग जैसी भोजन व्यवस्था फ्री के नाम पर राजनीति जैसी कूटनीति अपनायी जाती है|
गौरतलब है कि ऐसी छप्पनभोग व्यवस्था के लिए दिन-रात और शुद्ध -अशुद्ध का विचार असम्भव सा बना रहता है जबकि धार्मिक कार्यक्रमों की “समय सीमा” में कम से कम खानपान धार्मिक नियमों के अनुकूल होना चाहिए |
देश के कुछ अनावश्यक मठ-मंन्दिरों पर तो पैसा समेंटने के लिए यहाँ तक षड़यंत्र की शुरुआत हो चुकी है👉कि सुदेव भगवंतों के द्वार पर कुदेवों के नाम के भण्ड़ारे किये जाते हैं| यह कैसे धार्मिक कार्यक्रम हैं जिनकी नींव ही षड़यंत्र और धोखाधड़ी पर टिकी है|
आज अनेकों कार्यक्रमों में बोलियों के माध्यम से “सफेद गिलट” के मंगलकलश शुद्ध चाँदी के नाम पर आस्थावान जनता को चेप दिये जाते हैं| यह कौन-से सत्य धर्म के कार्यक्रम हैं? जहाँ धन पावना के लिए सत्य के धार्मिक मंचों पर असत्य का ढिंढोरा पीटा जाता हो|
🙏देश की जनता को गम्भीरता पूर्वक विचार करना चाहिए कि अगर मठ-मंन्दिरों से ही मोक्षलक्ष्मी प्राप्त होती तो हमारे पूज्य भगवंत और उनके परिवार धनिक तौर पर इतने धनाढ़य चक्रवर्ती राजा थे कि दुनिया में कदम -कदम पर चंदा एकत्रित किये बिना ही करोंड़ों की संख्या में मठ-मंन्दिरों का निर्माण पूर्व में ही करा जाते, लेकिन हमारे परम् पूज्यवरों का ज्ञान ही निराला था, उनको पता था कि👉मोक्षलक्ष्मी अनावश्यक मठ-मंन्दिरों के निर्माण से नहीं बल्कि सच्चे तपोबल से प्राप्त होती है | आज भी भरत जी के भारत देश की वंसुन्धरा पर सच्चे तपोबल के वीर तपस्वी संत विचरण कर रहे हैं जिनकी गाथा जन-जन के हृदय पट पर अंकित है|-पी.एम.जैन “पापी” दिल्ली, मोबाइल नं. 09718544977