खाओ न पियो, जियो तो इन्टरनेट के साथ जियो-पीएम.जैन


भारत में ड़िजिटल इण्डिया के तहत संचार सुविधाओं का तेजी से विकास हुआ है |आज इन्टरनेट की सहायता से हमें हर प्रकार की जानकारी मिनटों में प्राप्त हो जाती है और सोशल मीडिया के माध्यम से सैंकड़ों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्तियों से जनसम्पर्क चुटकियों में हो जाता है |हमारी नवपीढी में इसके प्रति दीवानगी है लेकिन इसके फायदे अन्नत हैं तो नुकसान भी स्वभाविक हैं|
आधुनिक युग में समाचारों व सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ -साथ ज्ञान प्रसारण का यह माध्यम सामाजिक एवं स्वास्थ्य समस्याओं के रूप में भी देखने को मिल रहा है, जिसकी चपेट से कुछ सामाजिक संसार से विरक्त साधुसंत भी अछूते नहीं रह पा रहे हैं |
आज के इस इन्टरनेट ने शराब, भाँग, चरस, गाँजा, चिलम इत्यादि जैसे नशे को भी पीछे छोड़ दिया है जिसके अन्तर्गत प्रत्येक परिवार में लगभग एक व्यक्ति अनावश्यक रूप से इन्टरनेट की लत से प्रभावित होता जा रहा है |
आज जिस तरह व्यक्ति की प्रत्येक जानकारी के लिए इन्टरनेट की ओर भागने की प्रवृत्ति बढ़ रही है उसका स्वभाविक परिणाम है कि -व्यक्ति की स्मरण व शारीरिक शक्ति में कमी दिन-प्रतिदिन आ रही है | वर्तमान में अनावश्यक इन्टरनेट से चिपकने वालों की हालत कुछ ऐसी हो गई है कि “खाओ न पियो जियो तो इन्टरनेट के साथ जियो “| प्रत्येक चीज की एक हद होती है और हद पार करना सदैव नुकसान का कारण बना है |
आज हम बच्चों को आधुनिक सुविधाऐं देते हुए सोचते हैं कि हमारी नवपीढी़ हम से ज्यादा होशियार और तेज तर्राक होगी लेकिन यह एक भ्राँति मात्र है और इस भ्राँति से मुँह मोड़ना स्वयं के लिए आत्मघाती विस्फोट सिद्ध हो सकता है |
जिस देश में साधु-संत अर्थात संस्कार प्रदाता ही इन्टरनेट के व्यसनों में लिप्त होने लग जायें, गुरू शिष्य का नाता फ्रेंडस सर्किल में बदलने लग जायें उस देश में एक दिन का “इन्टरनेट अवकाश” (छुट्टी) की घोषणा करना आवश्यक बन जायेगा|
गौरतलब है कि तीव्र संचार सुविधाओं के लिए आज इन्टरनेट प्रमुख है जोकि बच्चों व युवाओं को तन-मन से बीमार बना रहा है, अनावश्यक रूप से इन्टरनेट का उपयोग न करने वाला बच्चा आज भी शारीरिक क्षमता में मजबूत है वह तेज से दौड़ सकता है, पानी में तैर सकता है लेकिन केवल इन्टरनेट से चिपकने वाले बच्चों व युवाओं की शारीरिक क्षमता में ग्रहण लग रहा है जो कि चिंतनीय है |
आज इन्टरनेट जैसी संचार क्राँति का दुरूपयोग चरम सीमा पर है जिसके अन्तर्गत बच्चे, युवा ही नहीं बल्कि वृद्धों ने भी इसे दिल बहलाने का साधन बना लिया है | लेखक निकोलस की बहुचर्चित पुस्तक “दा शैलोज” में साफ-साफ लिखा है कि इन्टरनेट हमें सनकी व तनावग्रस्त बनाता है थोडी़ सी इन्टरनेट की गति धीमी होनें पर व्यक्ति बेचैनी से भर जाता है और स्वयं से ही जूझने लगता है|
इन्टरनेट पर उपलब्ध अश्लीलता बच्चों में मानसिक विकार पैदा कर रही है | हमारे बच्चे,युवाओं और वृद्धों के चरित्र को खोखला बनाने पर देश के उच्चतम न्यायालय ने चिन्ता व्यक्त की थी और सरकारों को अनावश्यक सामग्री पर प्रतिबंध लगाने को कहा था लेकिन आज तक सरकारों द्वारा कोई उचित कदम नहीं उठाया गया है |
क्या यह सत्य नहीं कि अश्लील विज्ञापन और वीडियो देखकर युवावस्था की ओर बढ़ते बच्चों की मानसिकता क्या से क्या होती जा रही है जिसके कारण यौन अपराधों को बढावा मिल रहा है | यहाँ तक कि परिवार में आपसी मेल-मिलाप कम होने लगा है | इन्टरनेट के कारण लोग देर रात तक जागकर ” स्लीप सिंड्रोम” की चपेट में आने लगे हैं और मानसिक बीमारियों के शिकार हो रहे हैं |
देश की सरकार को हमारे देश के भविष्य रूपी बच्चों के प्रति गम्भीरता से विचार करना चाहिए |
आज योगाभ्यास से अधिक बच्चों की जीवन यात्रा में अनावश्यक इन्टरनेट का प्रयोग एक बीमार राष्ट्र का संकेत बनता जा रहा है |अनावश्यक इन्टरनेट के विषय में अभिभावक व संतगण भी बच्चों पर नियंत्रण करने से पूर्व स्वयं पर नियंत्रण करें तो बच्चों के भविष्य हेतु कुछ शुभफल मिल सकते हैं |
विश्व के अनेक देशों ने इन्टरनेट के दुरूपयोग को राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट के रूप में शामिल किया है और इससे निपटने की तैयारी भी शुरू कर दी हैं परन्तु हमारी सरकारें कब जाग्रत होंगी यह एक विचारणीय विषय बना हुआ है।