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प्रवचन
Home›प्रवचन›मन में निर्मलता नहीं, तो तन की सुंदरता व्यर्थ है:- आचार्य 108 विभव सागर महाराज।

मन में निर्मलता नहीं, तो तन की सुंदरता व्यर्थ है:- आचार्य 108 विभव सागर महाराज।

By पी.एम. जैन
May 17, 2019
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इंदौर :- बाहरी जगत में जब सुंदरता की बात चलती है तो हमारा मन रूप औऱ रंग की व्याख्या करता है जबकि रूप का आकर्षण क्षणिक और नाशवान होता है ध्यान और ज्ञान का शाश्वत आत्म सौंदर्य जब प्रगट होता है तो बाहरी सौंदर्य व्यर्थ दिखने लगता है।
आज रामाशाह दिगंबर जैन मंदिर मल्हारगंज में समयसार ग्रंथ वाचना माला के तीसरे दिन आचार्य श्री विभव सागर महाराज ने यह बात सैकड़ों श्रद्धालुओं के बीच कहीं।
उन्होंने कहा कि
जगत में सुंदरता के नाम पर सौंदर्य प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं परंतु जिसने अंदर के सौंदर्य को जान लिया है वह क्रीम पाउडर से नही, ध्यान लगाकर सुंदर बन जाता है।
जिसके परिणामों (भावों) में सुंदरता नहीं, उसके मुख का सौंदर्य क्षणिक होता है, जैसे ही वह अपने वचन और ज्ञान को प्रकट करता है वास्तविकता दिखने लगती है।
रागी को सुंदरता और द्वेषी को असुंदरता नजर आती है सुंदरता का निर्णय रागद्वेष से नहीं, ज्ञान से करना चाहिए।
समयसार ग्रंथ के माध्यम से आचार्यों ने हमें सबसे सुंदर वस्तु आत्मा के विषय में समझाया है एक बार इसका निश्चय हो जाने पर सांसारिक असुंदर वस्तुओं पर ध्यान नहीं जाएगा।
तन को चमकाने में जितना समय देते हो उसका क्षणिक भी आत्मा की सुंदरता को चमकाने में लगा दें तो कल्याण हो जाएगा।
आत्म सौंदर्य जिसने पहचान लिया है वह किसी भी अवस्था मे विचलित नहीं होता है जैसे सोने की धातु  को  कीचड़ में भी डाल दें तो भी उसका मूल्य कम नहीं होंगा।
जिस कन्या की लगुन लिखी जा चुकी होती है उसे ससुराल का घर ही अपना लगने लगता है ठीक उसी प्रकार जिसको आत्मा का निश्चय हो गया वह सांसारिक पदार्थों में नहीं उलझता है।
जिस जगह श्रोता, वक्ता और आचरण कर्ता, तीनों का संयोग बनता है, वही धर्म तीर्थ चलता है।
धर्म तीर्थ के निर्माण में तीनों का संयोग जरूरी है अन्यथा निर्माण नहीं होगा।
तीर्थंकर की देशना अर्थात प्रवचन होते रहना चाहिए श्रोता समूह से ही आचरण करता का जन्म होता है।
प्रवचन करने वाले तो स्वयं तीर्थंकर हैं, हम तो उनके पथ अनुगामी हैं।
जो आत्मा सम्यक दर्शन, ज्ञान, चरित्र की एकता को प्राप्त कर वीतराग समाधि में लीन हो, वही सबसे सुंदर है।
तन का रूप,प्रतिक्षण हीनता को प्राप्त होता है यदि किसी से पूछें कि वह वृद्ध कब हुआ तो वह क्या जवाब देगा?
समाज के संजीव जैन संजीवनी ने बताया कि दिगंबर जैन समाज रामचंद्र नगर ने आचार्य श्री को श्रीफल भेंट कर पधारने का निवेदन किया।
सभा में आज पंडित रमेशचंद बाँझल, विकास छाबड़ा, हेमंत सेठी, शांतिलाल बड़जात्या, कमल काला,कमल अग्रवाल, महावीर पाटनी,प्रदीप झांझरी, कैलाश वैद,मनीष मोना, के साथ सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे।
कार्यक्रम का संचालन कमल काला ने किया ।
आचार्य श्री के प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8:45 बजे व दोपहर 4:15 बजे से रामाशाह दिगंबर जैन मंदिर पर हो रहे हैं।
आचार्य श्री बीसपंथी दिगंबर जैन मंदिर में विराजमान है और आहार चर्या भी यही होती है।👉संजीव जैैैन “संजीवनी”
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