आचार्य 108 श्री ज्ञानभूषण जी महाराज ससंघ के पावन सान्निध्य में “संत निवास” का हुआ शिलान्यास साथ ही साथ चतुर्मास की हुई घोषणा
नई दिल्ली -:.9जून!! 21वीं सदी के वात्सल्य मूर्ति आचार्य 108 श्री ज्ञानभूषण जी महाराज “रत्नाकर” ससंघ का मंगल चातुर्मास2019👉मोदी नगर (उत्तर प्रदेश) में होना सुनिश्चित हुआ है | यह घोषणा आचार्य श्री ने औरंगाबाद, पलवल (हरियाणा) में स्थित “शाँतिवन” स्थल पर संत निवास के शिलान्यास एवं अपने 22वें दीक्षा दिवस के अवसर पर की है,साथ ही साथ आचार्य श्री ने शाँतिवन और संत निवास के नवनिर्माण एवं उसे सुचारू रूप से संचालित रखने की पूर्ण जिम्मेदारी श्री दिगम्बर जैन समाज पलवल और होड़ल समाज को सौंपी है | आचार्य श्री ने अपने संबोधन में कहा कि पलवल और होड़ल के बीच की दूरी लगभग 30 कि. मी. है, जब कोई संत भरी गर्मी व सर्दियों में पैदल विहार करते हैं तो उन्हें लम्बी दूरी के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है! समाज के संतों के लिए अब जल्द से जल्द पलवल और होड़ल के बीच लगभग 14-15 कि.मी.की दूरी पर ही स्थित शाँतिवन में बनें संत निवास पर संतों के वास्ते आहार चर्या और निवास हेतु सम्पूर्ण व्यवस्था उपलब्ध होगी तो मुझे भी शाँति की अनुभूति होगी| आचार्य श्री ने कार्यक्रम में उपस्थिति दिल्ली, उत्तर प्रदेश,राजस्थान, हरियाणा आदि की समाजों सहित देश की समस्त समाजों से कहा कि👉आज समाज के समस्त व्यक्तियों को सूरीमंत्र द्वारा प्राण प्रतिष्ठित परम् पिता परमात्मा की मूर्तियों के साथ- साथ जीवन्त महानात्माओं (मुनि,संत) की भी सुचारू रूप से देखभाल और आगमानुकूल व्यवस्था करनी चाहिए क्योंकि आज नहीं तो कल यही महानात्माऐं परमात्मा रूप में समाहित हो जाऐंगी|
आचार्य श्री ज्ञानभूषण जी महाराज के संघस्थ 👉वाणी प्रखर क्षुल्लिका 105 श्री ज्ञानगंगा माता जी ने बताया कि दिल्ली मथुरा हाईवे पर पलवल और होड़ल के बीच हाईवे पर ही यह औरंगाबाद स्थान है जिसकी भूमि लगभग 5 वर्ष पूर्व “मनोज्ञ धाम ट्रस्ट” मोदीनगर जिला गाजियाबाद (उ. प्र.) द्वारा संतों के आहार एवं निवास हेतु खरीदी गई थी, जिसका भाग्योदय आज 09 जून 2019 को उदय में आया है,अब इस “शाँतिवन” की पावन धरा पर संत निवास का भव्य निर्माण देश की समस्त समाजों के आर्थिक अर्थात तन-मन-धन के सहयोग से होगा! जिसमें पलवल और होड़ल की जैन समाजें अपना मुख्य दायित्व निभाऐंगी | 👉वाणी प्रखर क्षुल्लिका श्री ज्ञानगंगा माता जी ने बताया कि👉 वर्षों से सुप्तावस्था में रही किसी भूमि का जब भाग्योदय संतों के निवास और आहार के लिए जाग्रत होता है तो उसके निर्माण में सहयोग करने वाली समाज के व्यक्तियों का “भाग्योदय” स्वत: ही हो जाता है|-पी.एम.जैन”चीफ एडिटर”