जिसकी जेब खाली होती है उसे आशीर्वाद भी खोखला ही मिलता है-:पी.एम.जैन “पापी”
आज की दुनिया में धन की लोलुपता इतनी बढ़ गई है कि संसार से विरक्त कुछ व्यक्ति भी इससे अछूते नहीं रह पा रहे हैं |
अधिकाँश तौर पर देखने मिलता है कि संसार से विरक्त जो संत-महात्मा परिग्रह के त्यागी बनकर देश-दुनिया में भ्रमणशील हैं उनमें से कुछ तो संसारिक धन को “चंचला लक्ष्मी’ के नाम से पुकारते -पुकारते खुद की झोलियाँ भरने की फिराक में रहते हैं और जनता के बीच खुद को “मोक्षलक्ष्मी” का साधक बताते फिरते हैं! आपने देखा होगा कि कुछ संत-महात्मा तो ऐसे भी हैं जो आत्म साधना छोड़ धनलक्ष्मी की कामना में दिन-रात जुटे रहते हैं और उसकी आपूर्ति के लिए धर्म प्रभावना के नाम पर नई-नई कार्यक्रम रूपी योजनाऐं बनाते रहते हैं |
देश-दुनिया में कुछ ऐसे भी संत-महात्मा हैं जिनके दरबार में धन के वास्ते खुल्लमखुल्ला आशीर्वाद भी बिकता है| आपने कई धार्मिक कार्यक्रमों में या व्यक्तिगत रूप से देखा होगा कि जो धनाढय या वीआईपी लोग हैं उनके लिए संत-महात्माओं के दिल में एक अच्छी खासी अहमियत होती है क्योंकि उनके पास धन और पावर दोनों ही मौजूद होती हैं, इसके अलावा देश-दुनिया में कुछ ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जिनके पास ना तो धन होता है और ना ही पावर होती है लेकिन वह संसार से विरक्त व्यक्तियों (संत महात्माओं) के प्रति दिल से समर्पित होने के उपरान्त भी, उनके हार्दिक रूपी आशीर्वाद के अभाव से पीड़ित रहते हैं! साथ ही साथ कहीं-कहीं तो यह भी देखने को मिलता है कि “लॉलीपॉप आशीर्वाद” के लिए भी बिचौलियों का सहारा लेना पड़ता है|
आज के दौर में माया रानी का कमाल तो देखिए कि संंत – महात्माओं की वही प्राचीन्तम भेषभूूूषा और वही प्राचीन दैनिक चर्या होते हुुए भी निर्धिनता के कारण निर्धन-गरीब व्यक्ति को कुछ संत-महात्माओं से मात्र खोखला आशीर्वाद ही मिलता नजर आता है क्योंकि आज के दौर में जिसकी जेब खोखली होती है उसे आशीर्वाद भी खोखला ही मिलता है|
आज वास्तविक धनाढ्यों की बात करें तो उनके पास अधिकतर समय का अभाव ही होता और यह भी यथार्थ व कटुसत्य है कि अगर वास्तविक धनाढय इस देश दुनिया में नहीं होते तो कुछ नक्कुशाह समाजों के संत-महात्मा भी हाथों में कटोरा लेकर गलियारों में भ्रमणशील होते लेकिन आश्चर्य तब होता है जब कुछ धार्मिक मंचों पर कुछ अधकचरे धनाढ्यों का तांडव बखूबी देखने को मिलता है क्योंकि आज इन अधकचरे धनाढ्यों के माध्यम से संसार से विरक्त संत-महात्माओं की आशीर्वाद रूपी बिक्री बढ़ोत्तरी पर है|
ध्यान देने योग्य बात तो यह है कि जो वास्तविक रूप से धनाढय होगा वह धन के साथ -साथ दिल और दिमाग से भी धनाढय होता है| आज भी देश-दुनिया में कुछ ऐसे भी धनाढय मौजूद हैं जो देशहित-समाजहित जैसे सात्विक क्षेत्रों में दिल से सहायता -सहयोग तो देते हैं लेकिन अपना नाम व चेहरा जगजाहिर नहीं होने देते हैं और ना ही किसी मंच पर चढ़कर नाच-कूद करके तांडव करते हैं, वह मंच की मर्यादा रखते हैं कार्यक्रम के कानूनों का बखूबी पालन करते हुए स्वयं को अनुशासित रखते हैं, जोकि वास्तविक धनाढ्यता का एक सुसंस्कारित परिचय है|
धार्मिक मर्यादा के तहत वैसे भी मैंने सुना है कि किसी को दिये गये दान व सहयोग का पता, स्वयं के एक हस्तकमल से दूसरे हस्तकमल को भी नहीं पड़ना चाहिए लेकिन आज के दौर में कुछ ऐसे भी धनाढय लोग हैं जो धार्मिक मंचों व पोस्टरों पर 1 रूपये के दान व सहयोग का ढ़िंढ़ोरा ऐसे पिटवाना चाहते हैं कि जैसे सारी कायनात पर इन्हीं का कब्जा कायम है|
संसार से विरक्त कुछ संत-महात्माओं की समभाव जैसी धार्मिक नीति तब दाग-दाग होती हुई दिखाई पड़ती है जब वह संसारिक धन के लिए अमीर-गरीब में भेदभाव करते हुए नजर आते हैं! अगर किसी अधकचरे धनाढय को किसी संत-महात्मा से मिलना है तो कुछ धन के लालची संत-महात्मा अपनी साधना के समय को त्यागकर भी कमरा बंद करके मिलते हैं, सुचारू रूप से चलते हुए कार्यक्रम के दौरान अगर कोई अधकचरा धनाढय दूर से भी टिमटिमा जाये तो उसके लिए सैंकडों मीटर की दूरी से आशीर्वाद के लिए हाथ उठ खड़े होगें, कार्यक्रम के बीच में मंच गरिमा तोड़कर तिलक, माला, साफा और लिफाफा से उसका आदर-सम्मान किया जायेगा लेकिन कोई गरीब हजारों किलो मीटर की दूरी तय करके लालची किस्म के उस संत-महात्मा के बिल्कुल नजदीक बैठा हो तो उस गरीब के लिए आशीर्वाद के वास्ते हाथ उठने की बात तो छोड़िए आँखों की पलकें तक नहीं उठती हैं|
कहने का तात्पर्य है कि लालची किस्म के जिन संत-महात्माओं को धन आपूर्ति के लिए अधकचरे धनाढ्यों से चर्चा एकाँत में करनी पड़ती है वहाँ अधकचरों को गुमराह व बेवकूफ़ बनाकर आशीर्वाद भी बेहिसाब बिकता है लेकिन वास्तविक धनाढ्यों और वास्तविक संत-महात्माओं की चर्चा या घोषणा एकाँत में नहीं, बंद कमरे में नहीं बल्कि सार्वजनिक तौर पर खुले मैदान में होती है|
वास्तविक संत-महात्मा हमारे पूज्य भगवंतों की भाँत ही जीवमात्र के प्रति समभाव का पालन करते हैं और जीव उत्थान के लिए अनेकों कल्याणकारी योजनाओं जैसे “गुरू मंत्र” किसी एक या दो व्यक्ति विशेष के कानों में नहीं बल्कि मैदानों में देते हैं! जिसके कारण जनमानस के मन में कोई शंका नहीं होती और जहाँ शंका नहीं होती वहाँ उत्थान ही उत्थान होता है|
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पी.एम.जैन (चीफ एडिटर “पारस पुँज” एवं “ज्योतिष विचारक”) दिल्ली मोबाइल नं. 9718544977