जैन परंपरा में पर्युषण पर्व आत्म विशुद्धि योग के सबसे बड़े साधन हैं | पहले और आज की पर्युषण पर्व की आराधना,साधन और साधना में बहुत अंतर आ गया है | पहले संयुक्त परिवारों में बड़े बुजुर्गों के सान्निध्य में पर्युषण के दिन कब आते थे और धर्माराधना करते हुए कब दिन निकल जाते थे पता ही नहीं चलता था | परन्तु आज इस कंप्यूटर युग में जहां Whatsapp, google, youtube, twitter आदि ने सभी को इतना उलझा रखा है कि बड़े शहरों में एकल परिवारों (nuclear families) में युवतियां पर्युषण के दिनों में धर्म लाभ तो लेना चाहती हैं, परन्तु छोटी-बड़ी समस्याएं उनके सामने अक्सर उपस्थित रहतीं हैं जिनके कारन कभी कभी जैन युवती चाहकर भी धर्म साधना नहीं कर पाती है | इन्हीं सब परिस्थितियों में सामंजस्य बिठाते हुए किस प्रकार पर्युषण के दिनों में धर्माराधना की जा सकती है, आइये कुछ प्रमुख बिन्दुओं पर विचार करते हैं –
➡अपने घर के समीप के उस धार्मिक स्थल या जिन मंदिर का चुनाव करें, जिनमें आप आसानी से अपने बच्चों के साथ जाकर पूजा, प्रवचन व सांस्कृतिक प्रोग्रामों का लाभ ले सकती हैं | यदि दूरी हो तो वाहन स्वयं न चलाकर ओला,ऊबर आदि कैब नियमित बुक करके धर्म साधना के स्थान पर जरूर जाएँ |
➡बच्चों को स्कूल जाने से पहले रोज मंदिर जी में जिनेन्द्र देव के दर्शन अवश्य कराएं | जिस दिन छुट्टी हो उस दिन धर्म स्थल के सभी कार्यक्रमों में ले जाएँ |
धर्म स्थलों में गरिमा पूर्ण ,सादगी युक्त वस्त्र पहन कर खुद भी जाएँ और बच्चों को भी ले जाएँ | कोशिश करें कि साड़ी अवश्य पहनें ,यदि सूट पहने तो सादगी वाला |सर पर पल्लू अथवा चुन्नी अवश्य रखें | कम से कम पर्युषण पर्व में धर्म स्थानों में जींस और टी शर्ट,शोर्ट ड्रेस से अवश्य बचें |हमारे वस्त्रों में गरिमा अवश्य दिखनी चाहिए |
➡यदि साधु संघ विराजमान हो तो उनके दर्शन अवश्य करें और इस बात की मर्यादा रखें कि चाहे कितना भी जरूरी काम हो साधु भगवंतों के पास अकेले न बैठें ,साथ में किसी को अवश्य रखें | रात्रि में उनके ठहरने के स्थान पर कतई न जाएँ ,अपनी सीमा में रहें | किसी भी कक्षा , कार्यक्रम में ब्रह्मचारी जी , साधु महाराज आदि से पर्याप्त दूरी बना कर विनय पूर्वक रहें ,जुलुस आदि में भी एकदम सट कर न चलें |
➡बच्चों के टिफ़िन बॉक्स में जमीकंद व बाज़ार से निर्मित कोई भी भोज्य पदार्थ न दें,साथ ही घर में कुछ शुद्ध मीठे और नमकीन अवश्य बनाकर रखें | सूखे मेवे बाज़ार से लाकर शोधकर पूर्व से ही रखें |
➡ बच्चों को कैंटीन से लेकर खाने को पैसे बिलकुल न दें |स्कूल से आने के बाद बच्चों का होमवर्क समय पर करवाकर उन्हें शाम को ही भोजन करवायें |
➡ यदि आपके पति ऑफ़िस, फैक्ट्री या दुकान से रात्रि में लौटते हैं तो उन्हें शाम का सात्विक भोजन टिफ़िन में पहले से सुबह ही दे दें | जिससे वे इन दिनों में रात्रि भोजन से बच सकें |
➡इन दिनों बरसात का मौसम होने से अनेक प्रकार के जीव-जंतु उत्पन्न हो जाते हैं अतः अपने घर तथा रसोई की इतनी साफ़-सफाई पूर्व से ही रखें ताकि जीव उत्पन्न न हो सकें |
प्रयास करें कि रसोई में सूर्य की रोशनी अवश्य आये तथा सभी कार्य सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच संपन्न हो जायें |
➡अपने बच्चों में दान की प्रवृत्ति विकसित करने के लिए उनके माध्यम से प्रतिदिन१०-२० रुपये मंदिर जी की गुल्लक में अवश्य डालें | साथ ही पर्व के दिनों में घर से अपनी द्रव्य मंदिर जी ले जायें |
➡रात्रि में होने वाले प्रवचन व सांस्कृतिक प्रोग्रामों में बच्चों व पति के साथ अवश्य जाएँ तथा खूब उत्साह पूर्वक भाग लें |
➡घर आकर दस धर्मों में प्रत्येक दिन, प्रत्येक धर्म का महत्त्व अपने पति व बच्चों को अवश्य बताएं | कोई एक ग्रन्थ लेकर उसका स्वाध्याय जरूर करें और सभी को विनम्रता पूर्वक सुनने को कहें |
➡युवतियां स्वयं भी प्रश्न मंच आदि प्रतियोगिताओं तथा छोटी-छोटी नाटिकाओं में भाग लें और पति भी एवं बच्चों को भी प्रेरित करें |
➡WORKING WOMEN’S को भी चाहिए कि वे पर्व के दिनों में दिन में एक बार जरूर मंदिरजी जाएँ |अपनी कार में ऑडियो लगा कर ऑफिस जाते समय भी प्रवचन सुन सकते हैं | मैट्रो ट्रेन ,बस या लोकल ट्रेन से जाना हो तो इयर फोन लगा कर मोबाइल पर अच्छी ज्ञानवर्धक बातें सीखी जा सकती हैं तथा पाठ सुने जा सकते हैं |
➡तत्वार्थ सूत्र का एक बार पाठ करने या सुनने से एक उपवास का फल मिलता है अतः चाहे साक्षात या मोबाइल आदि पर एकाग्रता पूर्वक दिन में एक बार यह पाठ अवश्य सुनें तथा जिनवाणी लेकर पाठ करें |
➡आजकल मंदिरों, स्थानकों तथा स्वाध्याय भवनों में बहुत ही रोचक शैली में आधुनिक तरीकों से जैन दर्शन के सिद्धांतों को समझाया जाता है अतः किसी भी उपाय से बच्चों तथा घर के अन्य सदस्यों को प्रवचन सुनाने अवश्य ले जाएँ | इससे सबसे बड़ा फ़ायदा यह होता है कि जो बात आप घर पर हज़ारों बार में नहीं समझा सकते हैं वह बात वहां के माहौल, प्रभाव और आकर्षक शैली से एक बार में ही दिमाग में बैठ जाती है |
➡अपने घर पर भी शाम के समय सभी लोग एक साथ भजन,स्तुति ,आरती या स्तोत्र अवश्य पढ़ें तथा बच्चों को सिखाएं |
➡प्रतिदिन सामायिक तथा प्रतिक्रमण करके शयन करें तथा शयन से पूर्व अगले दिन के धर्म का स्वरुप पढ़ लें और अगले दिन सुबह से उस धर्म पर चिंतवन करते हुए जीवन में उतारने का प्रयास करें |
👉वर्षभर में पर्युषण पर्व ही एक ऐसा अवसर होता है जब हम खुद को रीचार्ज कर सकते हैं नहीं तो वर्षभर हम उसी मतलबी दुनिया में जीते हैं जिसमें हमें खुद के आत्मकल्याण, आत्मविशुद्धि का अवसर लगभग ना के बराबर मिलता है |
👉घर पर धर्म महिलाओं से ही चलता है | हमारे बच्चे भले ही अभी उतना अभ्यास न कर पायें ,लेकिन हमें देख कर सीखते जरूर हैं |आज बच्चे आप के हाथ में हैं थोडा बड़े होने के बाद वे होस्टल आदि में भी चले जाते हैं या हमारी पहुँच के बाहर हो जाते हैं अतः अभी समय रहते यदि आपने उनमें अध्यात्म के बीज बो दिए तो बाद में उसकी फसल भी लहलहाती है |वे जब आत्मनिर्भर हो जाते हैं तब उन्हें जीवन में संतुलन के लिए अध्यात्म निर्भर भी होना होता है ,यदि बचपन के संस्कार रहते हैं तो वे विपरीत परिस्थितियों में भी अपना संतुलन नहीं खोते |
👉एक नारी घर की धुरी होती है वह चाहे तो सभी को धर्म कार्य में प्रेरित करके सभी का भला भी कर सकती है और धर्म अध्यात्म के प्रति उपेक्षा करके घर के सदस्यों को अधो गति में भी धकेल सकती है |*
👉खुद धर्म करने से तो पुण्य होता ही है अन्य को धर्म ध्यान में लगाने से भी सातिशय पुण्य होता है |*
👉हम युवतियां इन पर्युषण के दिनों में जितने सहज और सरल रहेंगें, धर्म के प्रति हमारा रुझान जैसा रहेगा पूरा परिवार भी वैसा ही अनुकरण करेगा |*
👉जिस प्रकार एक अच्छी और पक्की नींव पूरे घर की आधारशिला होती है उसी प्रकार हमारे धार्मिक संस्कार भी हम पर ही टिके हुए हैं आगे की पीढ़ियों में इसे जागरूक बनाये रखने का उत्तरदायित्व भी हम युवतियों पर ही है, ऐसे में हमें चाहिए कि पर्युषण पर्व श्रद्धापूर्वक धूमधाम से व्रतों नियमों का पालन करते हुए इस प्रकार मनाएं जिससे हमारे पारिवारिक सुख और शांति में वृद्धि हो और सभी आत्म आराधना के इस शाश्वत मार्ग पर चल कर स्व-पर कल्याण कर सकें |* 👇👇👇