विवाह कार्य में खुद बनें घरेलू पंड़ित, जानिए👉 वैदिक विवाह पद्धति


सोलह संस्कारों में “विवाह संस्कार” व्यक्ति के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है | हिन्दू शास्त्रोनुसार इस विवाह संस्कार की विस्तृत पद्धति है जिसको क्रमबद्घ पढ़कर आप अपने पुत्र-पुत्री का विवाह विधिवत् रूप से सम्पन्न करा सकते हैं|
👉1-चयन-: प्रथम जब वर- वधु के चयन (चुनना) की प्रक्रिया प्रारम्भ की जाती है तब होने वाले वर-वधु दोनों की जन्मकुण्लियों का आपसी मिलान किसी ज्योतिषाचार्य से अवश्य करा लेना चाहिए | यदि दोनों की जन्मकुण्डली में अधिक से अधिक गुणों का मिलाना ठीक है लेकिन केवल अधिक गुणों के मिलने को ही प्रथम बिंदू नहीं बनाना चाहिए अर्थात जन्मकुण्डली में अधिक गुण मिल रहे हैं उसी को मान्यता दी जाये यह आवश्यक नहीं बल्कि दोनों की जन्मकुण्लियों में ग्रहों का मिलान गुण मिलान से अधिक महत्व रखता है, साथ ही साथ दोनों परिवारों में सम्भाव, वर- कन्या की कद-कॉठी,शिक्षा,आय आदि में भी सम्भाव होना अत्यन्त आवश्यक है| एक मान्यता है कि कन्या के घर से वर का घर- परिवार अधिक समृद्ध हो तो विवाहिक जीवन सुखमय होता है |
👉2-रोकना-: जब वर-कन्या का चयन हो जाये उसके उपराँत कन्या के माता-पिता आदि को वर को “रोकना” चाहिए! इसके लिए कन्या के पिता एवं परिवार लोग वर का शुभगंध केसर, रोली आदि से तिलक करके वर को मिष्ठान,पान आदि खिलाऐं और द्रव्य रूप कपड़े,फल, चाँदी आदि का सिक्का या कुछ नकदी प्रदान करें! इसी भाँति वर पक्ष के लोग भी होने वाली वधु के लिए उपरोक्त पद्धति करें|
👉3-वाग्दान(सगाई) ज्योतिषाचार्य /पंड़ित से शुभ मुहूर्त शोधकर कान्या का पिता वाग्दान का करे! इसके लिए कन्या पिता वर के पिता को आमंत्रित करे| इसके अन्तर्गत सर्वप्रथम गणेश पूजन के पश्चात षोड़शोपचार सहित इन्द्राणि पूजन का महत्व है, तदुपराँत नरियल, फल, मिष्ठान सम्मुख रखकर तीन पीढ़ियों के नाम का उच्चारण सहित वर को स्वीकार करें साथ ही साथ ग्रहों के निमित्त दान करें| तदुपराँत जनूऊ,फल,स्वर्ण अंगूठी,वस्त्र,द्रव्य आदि वर के पिता को भेंट करें साथ ही साथ वर के परिवार वालों का मिलनी रूप में द्रव्य आदि देकर सम्मान करें|
वर पक्ष की तरफ सुहागिन महिलाऐं वस्त्र, चाँदी-सोना आदि के आभूषण,चूड़ियॉ ,श्रँगार का सामना एवं खिलौने कन्या को देकर उसका श्रँगार करें| ब्राह्मण का तिलक करके वस्त्र, दक्षिणा प्रदान करते हुए दोनों पक्ष आशीर्वाद प्राप्त करें| अंत में सभी लोग भोजन करें और संगीत के साथ कार्यक्रम को पूर्ण करें|
👉4-गणपति स्थापना -: शुभ विवाह के 2,3,या 5 दिन पूर्व ही विवाह के कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं | सर्वप्रथम गौरी-गणेश का पूजन करके उन्हें घर में स्थापित किया जाता है और उनसे प्रार्थना की जाती है कि हमारे यहाँ पर होने वाले शुभ विवाह संस्कार में किसी भी तरह का कोई विघ्न घटित ना हो| गौरी गणेश जी की स्थापना के बाद वर-कन्या को घर से बहार नहीं निकलने दिया जाता है लेकिन आज के आधुनिक दौर में कुछ लोग इसे अंधविश्वास मानने लगे हैं जोकि उचित नहीं है क्योंकि यह परम्परा भी शुभ विवाह और निर्विघ्न विवाह का एक अभिन्न अंग है|
👉5- लग्न पत्रिका-: गणपति स्थापना के बाद कन्या के घर पर ज्योतिष विद्या के जानकार विद्वान पंड़ित द्वारा शुभ विवाह का शुभ मुहूर्त लग्न पत्रिका के माध्यम से लिखकर दिया जाता है जिसके अन्तर्गत कन्या व वर की राशिनुसार उनके तेलवान की संख्या का विवरण भी लिख दिया जाता है| लग्न पत्रिका के अन्दर पूजा वाली साबुत👉सुपारी,हल्दी,धनियॉ, चावल, चाँदी का सिक्का आदि शुभ वस्तुऐं कलावा से बाँधकर वर के घर पहुँचा दिया जाता है| इस प्रकार कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को बारात सहित आने का निमंत्रण दिया जाता है और वर के घर पंड़ित द्वारा समस्त पारिवारिक,रिश्तेदारोंऔर मित्रगणों के समक्ष इस लग्न पत्रिका को पढ़कर निमंत्रण को स्वीकार किया जाता है|
नोट👉जानकारी के लिए बता दें कि यह कार्य मुख्य रूप से ज्योतिष विद्या पर ही आधारित है कम से कम लग्न पत्रिका के कार्यक्रम हेतु ज्योतिष के विद्वान पंड़ित का ही चुनाव करना चाहिए क्योंकि आज के दौर कुछ कर्मकाण्डी पंड़ित ऐसे शुभकार्यों में भी जुटे हैं लेकिन ज्योतिष विद्या से अनभिज्ञ हैं|
👉6-रस्म हल्दी और तेलवान-: लग्न पत्रिका में लिखित हल्दी, तेलवान संख्या के अनुसार मिश्रित मंगल और शुभ द्रव्य द्वारा वर- कन्या का उवटन एवं अभिषेक आदि किया जाता है| यह शुभकार्य सुहागिन महिलाओं द्वारा ही किया जाता है|
👉7-महेंदी रस्म-: घर की महिलाओं द्वारा वर – कन्या के अपने-अपने घर पर उनके महेंदी लगाई जाती है और महिलाओं द्वारा मंगलगीत गाये जाते हैं| कहते हैं कि वर-कन्या की महेंदी जितनी सुन्दर और जितनी अच्छी रचती है तो वह उनके उतने ही सुखद वैवाहिक जीवन को दर्शाती है|

👉9-भात/मायरा-: सर्वप्रथम नारायण कृष्ण जी सुदामा जी की कन्या को भात दिया तभी से यह मान्यता प्रचलित है, इसके अंतर्गत वर- कन्या का मामा पक्ष लोगों को भेंट रूप में उपहार आदि प्रदान करते हैं|
👉10 -तोरण पताका-: घर के द्वार को तोरण द्वारा सजाया जाता है| इस अंर्तगत वर इस तोरण को एक सींक (डंड़ी) से छूकर होने वाली वधु को बुरी नज़र से बचाने का टोटका करता है|
👉11-सेहराबंदी-: घर से बारात लेकर जाने से पूर्व वर को नवीन वस्त्राभूषण पहनाकर उसकी आरती की जाती है| वर की बहन उसके सेहरा बाँधती है सौभाग्य के लिए टीका करती है और वर की भाभी बुरी नज़र से बचाव के लिए उसके सुरमा-काजल लगाती है साथ ही साथ वर का भतीजा या भांजा वर की तरह सजाकर वर के साथ सरबला रूप में साथ बैठाया जाता है |
👉12- बारात प्रस्थान -: इस कार्यक्रम को कई प्रांतीय क्षेत्रों में “निकरोसी” भी कहा जाता है इसके अंतर्गत वर एवं सरबला दोनों को एक साथ घर से बाहर निकाला जाता है| इस कार्यक्रम के दौरान वर की बहनें वर का रास्ता रोक कर नेग लेती हैं और भाई को अच्छी सी भाभी लाने की दुआऐं देती हैं| वर के घोड़ी पर बैठने के पश्चात घोड़ी को चने की दाल खिलाई जाती है और गरीबों को दान रूप में द्रव्य दिया जाता है| वर को सर्वप्रथम मन्दिर जी ले जाकर भगवान से निर्विघ्न यात्रा और विवाह हेतु कामना की जाती है इसके बाद यहाँ से बारात विवाह स्थल के लिए प्रस्थान हो जाती है |
👉13-बारात स्वागत-: विवाह स्थल पर वर सहित सम्पूर्ण बारात एकत्रित होने के बाद, वर दुबारा घोड़ी पर सवार होकर सभी बरातियों सहित ढ़ोल-बाजे के साथ वधू के द्वार पहुँता है| वधू के माता-पिता व अन्य आदि वर की आरती उतारकर वर के पिता आदि सभी बारातियों का फूलों से स्वागत-सत्कार करते हैं|
👉14- ग्राम गणेश पूजन-: इस कार्यक्रम को कई प्रांतीय क्षेत्रों में “खेत लगन या सजन मिलाप” भी कहते हैं! इसके अंतर्गत कन्या का पिता एवं कुल पुरोहित वर व उसके सगे-सम्बन्धियों सहित गणेश पूजन करते हैं और वधू पक्ष के लोग वर पक्ष के लोगों को गले लगाकर आपसी मिलनी करते हैं साथ में उपाहार भी देते हैं |

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👉16-विवाह संस्कार-: यह विवाहोत्सव का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है इसके लिए एक विद्वान और शुद्धाचरण वाले पंड़ित की विशेष अवश्यकता होती है| इस कार्यक्रम के अंतर्गत कुल पुरोहित,पंड़ित के सान्निध्य में भगवान को साक्षी मानकर वधू का पिता विवाह संस्कार का संकल्प करके विवाह संस्कार के कार्य प्रारम्भ करते हैं| वर को विष्णु स्वरूप में मानकर पूजन करते हैं !घी, मधु, दही को पात्र में मिलाकर वर के सत्कार में मधुपर्क खिलाया जाता है ! श्री गणेश के साथ साथ ही नवग्रह पूजन किया जाता है ! वधू का पिता वर के कुलगुरू को गोदान या द्रव्य आदि देता है! वधू को नये वस्त्राभूषण आदि पहनाकर अतिसुन्दरता वाला श्रँगार किया जाता है ! वधू के माता-पिता अपनी कन्या का लक्षमी स्वरूप पूजन करते हैं तदुपराँत माता -पिता अपनी लक्ष्मी स्वरूप कन्या के दोनों हाथ पीले करके विष्णु स्वरूप वर के हाथ में देकर “कन्यादान” का संकल्प लेते हैं और उनके सुखद वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करते हैं| वर द्वारा अग्नि प्रज्ज्वलित करके अग्निदेव स्थापन किये जाते हैं और घी, चंदन, नारियल गोला, शक्कर, नवग्रह वनस्पति आदि से हवन-पूजन किया जाता है| कन्या का भाई बहन के हाथ में खील(लाजा) देता है जिसे वधू , वर के हाथ में देती है और फिर वर अग्नि में होम करता है| वर-कन्या का गठबंधन करके अग्निदेव के चारों ओर फेरे लिए जाते हैं ! पहले तीन फेरों में कन्या आगे रहती है बाद के चार फेरों में वर आगे रहता है ! यहाँ मंगल कार्यों में पत्नी का आगे रहना दर्शाता है कि धर्मकर्म आदि में पत्नी का आगे रहना ही श्रेष्ठ है |
फेरों के पश्चात सप्तपदी होती है यानी वर कन्या को दृड़संकल्पित होकर सात वचन देता है वहीं कन्या भी दृड़संकल्पित होकर वर को सात वचन देती है ! इसके बाद कन्या वर के वामांग बैठती है और वर सोने की श्लाका से कन्या की सिन्दूर से माँग भरता है तदुपराँत वहाँ पर सभी उपस्थित लोग वर-वधु के ऊपर पुष्प छोड़ते हुए सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं|
नोट-👉यदि वर-वधु आज की आधुनिक चकाचौंध में भी अपने दृड संकल्पित सात वचनों को जीवन भर याद रखे और उनका दृड़ता के साथ ईमानदारी से एक -दूसरे के साथ पालन करें तो आज भी स्वर्ग सुख की अनुभूति कर सकते हैं|
👉17-कंगना-: वर-वधुू एक-दूसरे के हाथ में बंधे कंगन खोलते हैं| कन्या अपने हाथ से सोने की अँगूठी रोली-चंदन, फूल व दुर्वा वाले सुगंधित जल से भरे पात्र में ड़ाल देती है अब दोनों मिलकर उस जल से अँगूठी निकालने की कोशिश करते हैं | माना जाता है कि जो अँगूठी को पहले ठूँठ निकालता है वह वैवाहिक जीवन में आगे रहता है |
👉18- जूता चुराई-: वर द्वारा जब शुभ धार्मिक या अन्य शुभ कार्य करना पड़ता है तो उसे समस्त कार्य अपने जूते उतार कर ही करने पड़ते हैं ! इसी का फायदा उठाकर कन्या की छोटी बहन वर के जूते छिपा देती है जिसके बदले वर को अपनी छोटी साली नेग देकर वापिस लेना पड़ता है |

👉20- वधू आगमन-: वर-वधु सहित बारात लौटकर वर के अपने घर आती है तब वर की माँ और पारिवारिक महिलाओ के साथ मंगलगीत गाते हुए वधू के सिर पर मंगल कलश रखकर उसका घर में प्रवेश कराती है जिसके लिए रोली आदि से दरवाजे के दोनों तरफ वधु से स्वास्तिक, हस्तछाप आदि जैसे कार्य करती हैं साथ ही दरवाजे की चोखट पर रखे अक्षत कलश को अंदर की ओर लुकाने को कहती हैं फिर रोली से पैर छाप कराते हुए पूर्ण प्रवेश करती हैं| यहाँ पदछाप यानी पैरों की छाप को लक्ष्मी जी के पैरों की छाप माना जाता है और अक्षत कलश के लिए माना जाता है कि घर पर अन्ना देवता की सदैव कृपा बनी रहे |
👉21- बहू भात-: वधू ससुराल में जब प्रथम बार चूल्हा में अग्नि प्रज्ज्वलित करके कुछ मीठा भोजन बनाती है तो बहू भात कहते हैं| नई नवेली वधू के द्वारा तैयर किया हुआ मीठा भोज्य पदार्थ जो लोग खाते हैं तो वधू को उपहार भी देना पड़ता है जोकि एक अच्छे शकुन के लिए किया जाता है |
👉22- द्विरागमन-: कुछ दिनों पश्चात वधू वापिस अपने माता-पिता के घर जाती है और फिर वर कुछ दिनों पश्चात अपने घर विदा से वापिस लेकर लाता है वधू के पुन:आने पर श्री गणपति पूजन और मातृकाओं का पूजन आदि होता है|प्रेषक-👉पी.एम.जैन “ज्योतिष विचारक एवं चीफ एडिटर “पारस पुँज न्यूज” नई दिल्ली
मो. नं. -9718544977
