अप्राकृतिक भोजन करने पर प्रकृति स्वयं ही दंड निर्धारित करती रहती है
अप्राकृतिक भोजन करने पर प्रकृति स्वयं ही दंड निर्धारित करती रहती है-:भोजन के लिए वेदों में सात्विक भोजन, राजसी भोजन और तामसिक भोजन इन तीनों प्रकार के आहार में सात्विक भोजन को ही श्रेष्ठ माना गया है। शाकाहार में स्वास्थ्य के लिए उपयोगी पोषक तत्व तो रहते ही हैं शाकाहार से शरीर और मन मानवीय संवेदनाओं का सही रूप में पहचान करते हैं। जैनधर्म का शाकाहार का सिद्धांत पूर्णत:वैज्ञानिक है जो हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। आज बहुत से योरोपीय देश भी शाकाहार की ओर उन्मुख हो रहे हैं और उन बातों को मान रहे हैं जो जैन मुनि सहस्त्रों वर्षो से कहते और करते आ रहे हैं।शाकाहारी और मांसाहारी भोजन करना सबकी अपनी निजि पसंद होती है। लेकिन प्रकृति ने मनुष्य को शाकाहारी बनाया है। अप्राकृतिक भोजन करने पर प्रकृति स्वयं ही दंड निर्धारित करती रहती है।मांसभक्षियों का सिर्फ भौतिक विकास हुआ है,जबकि शाकाहारियों ने विशेष रूप से आध्यात्मिक विकास किया है।
👉दुनिया भर में लोगों को हिला देनेवाला मानव समूहों पर संक्रमण का कहर ढा रहे कोरोना वायरसों का एक ऐसा बड़ा समूह है जो आमतौर से सी-फूड और जानवरों में पाए जाते हैं। समुद्री भोजन के रूप में बड़े पैमाने पर मछली, झींगा, केकड़ा, लॉबस्टर, स्क्विड और ओएस्टर जीव खाए जाते हैं। समुद्र में सर्पों की भी अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं। इन्हें मनुष्य पकड़ कर व्यंजन बनाता है और खा जाता है। चीन में की गई आरंभिक जांचों से पता चला है कि वूहान सी-फूड बाजार में यह वायरस जानवरों के जरिए ही फैला है। मांसाहार केवल एक विकृत्ति ही नहीं बल्कि निपाह, एड्स, हेपोटाईटिस-बी, स्वाइन-फ्लू, बर्ड-फ्लू और इबोला, कोरोना वायरस लाते हैं जिसकी कीमत सभी को भुगतनी पड़ती है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति मांसाहार नहीं, शाकाहार की ही पोषक रही है।👉भारतीय संस्कृति में पूर्णत: शाकाहारी होना, मृत व्यक्ति को जलाना, हाथ जोड़ कर अभिवादन करना अब तक उपहास का विषय बनते रहे हैं । लेकिन अब कोरोना वाइरस के डर से विश्व पुन: भारतीय संस्कृति की ओर लौट रहा है। कल तक जिस चीन में काकरोच, सांप,बिच्छू, चमगादड, कुत्ते, बिल्ली, चूहे और कनखजूरे तक खाना आम बात रही है वही आज शाकाहारी बनने पर ज़ोर दे रहा है। शवों को दफनाने के बजाय जलाने और एक दूसरे से हाथ ना मिलाकर भारतीय परंपरानुसार नमस्ते करना यह सब अपनाया जा रहा है।👉आशंका यह भी है कि कहीं इन वायरसों का उत्सर्जन वैज्ञानिकों द्वारा जेनेटिकली इंजीनियरिंग से खिलवाड़ का कारण तो नहीं है? क्योंकि अनेक देश अपनी सुरक्षा के लिए और साम्राज्य विस्तार की मनोवृत्ति को लेकर घातक वायरसों का उत्पादन कर इन्हें जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल की फिराक में हैं। इस हिंसक प्रवृत्ति का एक मात्र समाधान महावीर की जीव-दया-करुणा एवं अहिंसा ही निहित है। 👉चिकित्सा विज्ञान अपनी उपलब्धियों के चरम पर जरूर है, लेकिन जिस तरह से वायरसों के प्रकोप से नए-नए रूपों में बीमारियां सामने आ रही हैं, उससे लगता है हम प्रकृति द्वारा निर्धारित मानकों से छेड़छाड़ करने के दंड से बच नहीं सकते। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध उत्खनन पर टिकी यह जीवन-शैली हमें एक ऐसे अंधकूप में धकेल रही है जहां जीवन जीने के खतरे निरंतर करीब आते दिख रहे हैं। ऐसे में हमें अपने ऋषि-मुनियों की सरल जीवनचर्या याद आती है और महावीर का अपरिग्रहवाद हमारा मार्ग-दर्शन करता है।👉जज (से.नि.) डॉ. निर्मल जैन