संसार को नहीं,स्वयं को पहचानिए। :-आचार्य श्री विद्यासागर महारा


इंदौर:- जब कोई आपसे आपकी पहचान पूछता है तो आप दूसरी चीजों से अपनी पहचान साबित करते हैं आप दुनिया की सारी चीजों को देख रहे हैं परंतु स्वयं को देखने के लिए आप प्रयास नहीं कर रहे हैं।
आज यह बात आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने बास्केटबॉल कॉम्प्लेक्स में समग्र जैन समाज को संबोधित करते हुए कही।
आचार्य श्री श्वेतांबर जैन समाज के आग्रह पर यहां पधारे थे।
आचार्य श्री ने कहा कि
आप इस संसार रूपी विशाल दुकान में वस्तुओं को देख रहे हैं और उन्हें पाने के लिए प्रयास कर रहे हैं आप इन वस्तुओं के माध्यम से अपने आपको जानने का प्रयास करते हैं यह विरोधाभास है।
आत्मा की पहचान व स्वभाव है कि वह अन्य वस्तुओं के बारे में बताता है, अन्य वस्तुओं की रूपरेखा आपके समक्ष रखता है किंतु आप यदि जागृत हैं तो ही उसे पहचान सकेंगे ।
अगर अंतर में जागृति नहीं है तो वह स्वप्न मात्र है। कई बार हमें सपने आते हैं परंतु नींद समाप्त होने पर हमें वह याद नहीं रहते इसी प्रकार पहचान बहुत हैं परंतु आप बता नहीं पाते।
आप अपनी पहचान मकान नंबर से मोबाइल नंबर से बताते हैं पर क्या वह आपकी वास्तविक पहचान है।
क्या आप अपनी पहचान आंखों और कानों की सहायता के बगैर बता सकते हैं?
मैं आपको समझाता हूं आपको समझना है कि हमारा स्वभाव क्या है हम कौन हैं तो विचार कीजिए या ध्यान में बैठिए और सोचिए।
यदि मेरे पास हाथ नहीं हैं, पैर नहीं हैं यह पेट, मस्तिष्क, पीठ, होंठ, उंगलियां शरीर कुछ भी नहीं है। तब मैं क्या हूं?
ऐसा करके आप अपनी आत्मा तक पहुंचने का प्रयास कर सकते हैं।
आखिर यह संसार क्या है? यह आपको सोचना है।
महावीर से लेकर ऋषभदेव तक कई विभूतियां यह समझाने का प्रयास कर चुकी है किंतु अभी तक हम उन उद्देश्यों को हासिल नहीं कर सके।
मैं शहर में जहां से भी निकलता हूं बार-बार आप अपनी पहचान बताते हो कि महाराज यह देखो, वह देखो आप ऊपर की ओर बड़े-बड़े भवन दिखाते हो यह 100- 200- 500 करोड़ का है।
मैं वह देखूं, तो नीचे नहीं नही देख सकूँगा। और जो नीचे है वह ही मेरे लिए लाभदायक है क्योंकि मुझे जिस ओर जाना है वहां तक ले जाने वाला यही पथ है।
आप सभी गुमराह हो जिनके पास राह ही नहीं है। आप नीचे की ओर नहीं, इधर-उधर देखते हैं क्योंकि आप करोड़ की ओर देख रहे हैं और मैं रोड की ओर, पथ की और देखता हूं ।
एक दिन जब यह शरीर छूट जाएगा तब भवन,मकान सब यहीं रह जाएंगे और इनका और रोड़ का भी उपयोग आप नहीं कर सकेंगे।
मैं चाहता हूं कि आप मोक्ष मार्ग रूपी पथ को पहचाने अन्यथा महावीर आपको मिल नहीं पाएंगे, क्योंकि मिलेंगे तो महावीर के पथ पर चलने से मिलेंगे अन्यथा हम सब खाली हाथ रह जाएंगे।
इसलिए असली जो पहचानने वाला है उस को पहचानने की आवश्यकता है अन्यथा जो पहचान में आ रहे हैं वह गुम हो जाएंगे और उन में हमारा कोई विषय नहीं रह जाएगा यदि आपने अपने आपको नहीं पहचाना तो शून्य रह जाएगा और कुछ भी नहीं।
समाज के संजीव जैन संजीवनी एवं आचार्य श्री के संघस्थ ब्रह्मचारी सुनील भैया जी ने बताया की श्वेतांबर जैन समाज के प्रकाश भटेवरा, जिनेश्वर जैन एवं जयेश कोठारी के विशेष अनुरोध पर आचार्य श्री उदासीन आश्रम से मुनि श्री संधान सागर जी, निष्पक्ष सागर जी, शीतल सागर जी, एवं निष्काम सागर जी महाराज के साथ बास्केटबॉल कांपलेक्स पधारे थे। यहां आचार्य श्री को सुनने श्वेतांबर जैन समाज के समाज जन सैकड़ों की संख्या में उपस्थित रहे।
सभा का संचालन ब्रह्मचारी सुनील भैया जी ने किया।
आचार्य श्री की आहार चर्या का सौभाग्य सिंपल-अंकिता जैन को प्राप्त हुआ।

संजीव जैन “संजीवनी”