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Home›लेख-विचार›कोरोना ने हमारी संस्कृति पर वैज्ञानिकता की मोहर लगा दी है👉जे.के.संघवी

कोरोना ने हमारी संस्कृति पर वैज्ञानिकता की मोहर लगा दी है👉जे.के.संघवी

By पी.एम. जैन
May 9, 2020
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कोरोना की महामारी ने हमें अपनी संस्कृति एवं पुराने रीति-रिवाजों की उपयोगिता ए वं वैज्ञानिकता पर सोचने को मजबूर कर दिया है। प्राचीन पारंपरिक रिवाजों को हम छोड़ते जा रहे थे। आज हम उन्हीं नियमों के पालन की ओर मजबूरन वापस लौट रहे हैं। कोरोना की घटना ने  हमारी प्राचीन जीवन पद्धति की मौलिकता एवं उपयोगिता  पर मोहर लगा दी है
1) अंतिम संस्कार अथवाा  बाल कटवा कर घर आने पर बिना किसी को छुए सबसे पहले स्नान करने का रिवाज था।( संक्रमण infection spread टालने के लिए)
 2) घर में किसी की मृत्यु होने पर 12 दिन का सूतक पाला जाता था।( इसे होम क्वारंटाईन कह सकते हैं) क्योंकि मृत्यु के समय लगभग व्यक्ति को कोई न कोई बीमारी होती है। उसकी immunity lowest Level की होती है, जिससे  कीटाणुओं से दूसरे लोगों को दूर रखने के लिए, उनसे 12 दिन का अंतर रखा जाता था।
 3 )बालक के जन्म होने पर बालक और उसकी माता को घर के अलग कमरे में अलग से महीने भर क्वारंटाईन के रूप में रखा जाता था। कमरे के दरवाजे पर नीम का तोरण, गोमूत्र आदि का उपयोग किया जाता था, कारण नवजात शिशु की रोग प्रतिकारक शक्ति( इम्यूनिटी )खूब कम होती है ।बाहर के बैक्टीरिया कीटाणुओं का हमला उस पर ना हो। आज हमें कोरोना वायरस से बचाव के लिए लॉक डाउन के अंतर्गत घर में रहने को कहा जा रहा है।
 4) चप्पल अथवा बूट घर के बाहर उतारते थे (infection spread टालने के लिए )
5) बैठकर शौच या मूत्र का त्याग करने की पद्धति अपने यहां प्रचलित थी, जिससे आंतों में आवश्यक दबाव आने से पेट पूरा साफ हो जाता है। पाश्चात्य कमोड़ के इस्तेमाल से सीट पर लाखों विषाणुओंं  का शरीर से सीधे संपर्क होता है।
6) हल्दी एवं मसाला युक्त ताजा भोजन शरीर की रोग प्रतिकारक शक्ति को बढ़ाता है। हमारा किचन क्लीनिक था ।आज हल्दी वाले दूध की बात सामने आने लगी है। हमारे यहां ऋतु के अनुसार भोजन करने का नियम था।
 7) घर में धूप, दीप ,कपूर आदि जलाने से रोगों के कीटाणु दूर होते थे। 8)अपने यहां मृत- देह को दफन नहीं करते हुए जलाने की पद्धति है। अभी कोरोना की महामारी के पश्चात चीन ने भी मृतकों को दफन करने की अपेक्षा जलाने के आदेश दिए हैं।
 9 )मासिक पीरियड में स्त्री तीन दिन गृह कार्य से मुक्त होकर किसी भी वस्तु को स्पर्श नहीं करती थी। बैक्टीरिया से बचने के लिए 3 दिन का क्वॉरेंटाइन था। आज उस नियम की धज्जियां उड़ा कर घर-घर में कई प्रकार की बीमारियों के हम  शिकार हो रहे हैं।
10) एक भी वायरस का उद्भव भारत में नहीं हुआ। स्वाईन फ्लू आदि पहले भी वायरस आए थे ,उनका कारण मांसाहार था। जग में सबसे ज्यादा शाकाहारी भारत में है ।
11 )हमारे यहां अभिवादन में हाथ मिलाने की नहीं बल्कि हाथ जोड़ कर नमस्कार या प्रणाम करने की संस्कृति है ।आज हम पुनः इस  ओर लौट रहे हैं ।
12 )अपने यहां गुरु वंदन करते समय साढे तीन हाथ की दूरी रखने को कहा गया है। क्या यह फिजिकल डिस्टेंस नहीं है।
13 )भगवान की पूजा करते समय आठ पड का मुख कोष बांधने का नियम है ।बोलते समय मुंहपत्ती का उपयोग किया जाता है ।आज मास्क लगाने की बात हो रही है।
 *हमारी संस्कृति ने हजारों लाखों वर्षों से अपना अस्तित्व बनाए रखकर कई माहमारियों  के संकट से हमें बचाया है। हम अनुभव के आधार पर निष्पक्षता से विचार करें तो समझ में आ सकता है कि पाश्चात्य संस्कृति (विकृति) का आंख मूंदकर उपयोग करना कोरोना वायरस से भी घातक है।*
*आइये ,हम अपने दिमाग का उपयोग कर पुनः अपनी संस्कृति की ओर लौटें!पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण छोड़ें एवं अपने पुराने सदाबहार रीति-रिवाजों को अपनाएं।👉 *जे के संघवी (थाने-आहोर )*
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