⭐1) *अक्षुद्र*:श्रावक कभी मन का मैला नहीं ,बल्कि उदार होगा।⭐ 2) *रूपवान*: उसकी पांचों इंद्रियां अखंड है ।⭐3) *प्रकृति से सौम्य:* वह शांत प्रकृति वाला है। ⭐4) *लोकप्रिय* :वह दानी, सदाचारी, विनयशील, मधुर भाषी आदि होने से लोकप्रिय होगा।⭐ 5) *अक्रूर*: वह प्रकृति से दयालु होगा और कभी निर्दय नहीं होता है।⭐ 6) *भीरु*: पाप से तथा अपयश से डरता है।⭐ 7 ) *अशठ*: वह कभी धोखेबाजी नहीं करेगा। ⭐8) *सदाक्षिण्य*:वह यथाशक्ति अन्य की विनती सुन कर मदद करेगा।⭐ 9) *लज्जाशील* :वह अपकार्य से डरेगा।⭐ 10) *दयालु* :उसे सब जीवों के प्रति अनुकंपा होगी, दु:खदर्द को देखकर पिघलेगा और यथाशक्ति दु:खी जनों की मदद करेगा।⭐ 11) *मध्यस्थ*: विपरीत विचार वाले की कर्म की गहन गति का ख्याल करते हुए हो द्वेष मुक्त रहेगा।⭐ 12) *गुणानुरागी*: संसार में हर कोई कुछ- न-कुछ दोषमय होता है, अतः यह हमेशा गुणान्वेषी और निर्गुणी की उपेक्षा करता है। ⭐13) *सत्कथ*: वह विकथा छोड़कर धर्मकथा ही करता है। ⭐14) *सुपक्षयुक्त* :वह सुशील एवं अनुकूल परिवार वाला है। ⭐15) *सुदीर्घ दर्शी*:वह लाभालाभ का ख्याल कर के कामकाज करता है और बिना सोचे- समझे कोई भी कदम नहीं उठाता है। ⭐16) *विशेषज्ञ*: वह गुण- दोष ,धर्म- अधर्म का पारखी है ।⭐17) *वृद्धानुग*: वह ज्ञानवृद्ध, वयोवृद्ध एवं चारित्रवृद्धों का सेवक है। उनकी आज्ञा का अमल करता है।⭐18) *विनीत*: वह अपने से अधिक गुणमय व्यक्तियों की सेवा, विनय,विवेक एवं मर्यादा पालता है। वह अल्पज्ञाता की तरह अकडता नहीं है ।⭐19 ) *कृतज्ञ*: वह अपने उपकारी को बढ़ा- चढ़ाकर बताता है। उनका कृतघ्न नहीं होगा। वह यथाशक्ति कृतज्ञ रहेगा और कृतघ्नता से दूर रहेगा। ⭐20) *परहितकारी*: वह निष्काम वृत्ति से पराये की भलाई करेगा। ⭐21) *लब्धलक्ष्य* :वह हरेक धार्मिक प्रवृत्ति का ज्ञाता होने से अपनी धार्मिक क्रिया को लक्ष्य में रखकर इंगित से अन्य के मानसिक विचार को पहचानता है।