कोरोना ने चौकन्ना कर दिया, अब तो”जाग बन्धु जाग”👉P.m.jain



👉 एक तरफ कुछ लोग कहते हैं कि स्वर्गलोक से मनुष्यलोक में नदी रूप में अवतरित पूज्यनीय ब्रह्मा जी की पुत्री गंगा जी को पूज्यनीय माना जाता है और दूसरी तरफ उसी पूज्यनीय गंगा जी को मानवजाति द्वारा प्रदूषित किया जाता रहा है! यह गंगा है सहाब! जोकि साक्षात दैविक स्वरूप है! जो ब्रह्मपुत्री है और जिस गंगा जी को स्वयं महादेव ने अपने सिर पर धारण किया हो, जिसका जल कलयुग में भी अमृततुल्य है, जिसका “जल परीक्षण” विदेशी वैज्ञानिकों को आज तक आश्चर्यचकित करता रहा है! ऐसी दैविक प्रतिछाया के प्रति भी मानवजाति की निष्ठुरता, धर्मनिष्ठ होने का परिचय नहीं कराती, जिस पूज्यनीया के अमृततुल्य जल को लॉकडाउन से पूर्व तक विषधर बनाया गया! यह मानवजाति के कुकृत्य ही रहे हैं| लेकिन अब तो जरा जाग जाओ बन्धुवर क्योंकि कहते हैं कि सुबह का भूला शाम तक घर वापिस आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते हैं!! अब तो”जाग बन्धु जाग” क्योंकि एक भजन के माध्यम से कुछ ऐसा भी कहते हैं
👉उठ जाग मुसाफिर भोर भई,अब रैन कहाँ जो सोवत है|
👉जो सोवत है सो खोवत है,जो जगत है सोई पावत है||
आज वैश्विक कोरोना महामारी में लॉकडाउन के दौरान दशकों के उपराँत👉गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी अनेक पवित्र नदियाँ अपना-अपना वास्तविक स्वरूप दर्शा रहीं हैं! नदियों के साथ-साथ वायु, पशु-पक्षी(वन्यजीव) और प्रकृति भी स्वच्छता के कारण स्वतन्त्रता से अठखेलियाँ कर रही हैं जोकि मानवजाति के लिए एक सुखद संकेत है|
👉वर्तमान के लॉकडाउन से भविष्य के लिए हमें सीखना चाहिए कि लॉकडाउन के उपराँत भी प्रकृति के वास्तविक स्वरूप को जीवंत और स्वच्छ रखने के लिए सरकारों सहित मानवजाति को भी प्रकृति के प्रति सर्तक और संवेदनशील रहना है”कि👉 प्रकृति की स्वच्छता में पुन: प्रदूषण की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए! क्योंकि यह सर्वविदित है कि अगर हम प्रकृति को स्वच्छ रखेंगे तो हम भी स्वस्थ रहेंगे|
