🟢 *आयुष्य कर्म*:- इस कर्म की स्थिति से प्राणी जीता है और क्षय होने पर मर जाता है।यह कर्म कारागार के समान है।उदाहरण: जैसे कि न्यायाधीश अपराधी को दंड देने के लिए अमुक समय तो उसे कैद से छूटने की इच्छा रखते हुए भी अवधि सजा पूरी हुए बिना वहां से छूट नहीं सकता। वैसे ही आयुष्य कर्म जब तक रहता है तब तक जीव चाहते हुए भी उस शरीर से छूट नहीं सकता तथा कोई सुखी व्यक्ति जीने की इच्छा रखते हुए भी अगर आयुष्य कर्म के पूर्ण हो जाने पर एक क्षण भी जिंदा नहीं रह सकता।
*आयुष्य कर्म के चार भेद होते हैं*:-
नरक आयुष्य,तिर्यंच आयुष्य, मनुष्य आयुष्य एवं देव आयुष्य।
आयुष्य कर्म की उत्कृष्ट स्थिति 33 सागरोपम की होती है और जघन्य स्थिति अंतर मुहूर्त की होती है।
*(1)*नरकायु बांधने के कारण*:-
🔹महा-आरंभ करने से🔹, बहुत परिग्रह- संग्रह करने से,🔹 बड़े जीवो की हिंसा करने से,🔹 मांसाहार करने से, 🔹रौद्र ध्यान करने से,🔹 क्रोध- लोभ आदि विकार बड़ी मात्रा में रखने से, 🔹कृष्ण लेश्या रखने से, 🔹 चोरी करने से,🔹मैथुन में बहुत आसक्ति रखने से, वैर करने से और बनाए रखने से,🔹 शिकार खेलने से, 🔹जुआ खेलने से ।
*(2)तिर्यंचायु बांधने के कारण*:-
🔸गूढ़ (रहस्यमय) हृदय रखने से,🔸कपट रखने से,🔸 आर्तध्यान करने से,🔸 लोभ करने से,🔸 शील व्रत में बार-बार बहुत दोष लगाने से,🔸 आहार भोजन में बहुत आसक्ति रखने से।
*(3 )मनुष्यायु बांधने केकारण* :-
🌷परिग्रह (संग्रह) कम करने से,🌷 अल्प आरंभ करने से,🌷 सरलता और नम्रता का व्यवहार करने से,🌷 दान में रुचि रखने से,🌷 देव- गुरु के प्रति बहुमान रखने से ,🌷मधुर भाषण करने से अर्थात् दूसरों को प्रिय लगे ऐसा बोलने से,🌷 कषाय की मन्दता से ,🌷विषय विकार की मंदता आदिे से।
*(4) देवायु बांधने के कारण*:-
🌸समकित धर्म का पालन करने से, 🌸श्रावक धर्म का पालन करने से,🌸 साधु धर्म का पालन करने से, 🌸अच्छे लोगों से मिलना रखने से ,🌸धर्म श्रवण में प्रेम रखने से, 🌸सुपात्र को दान देने से, 🌸ब्रह्मचर्य का पालन करने से, 🌸तप करने से,🌸क्रोध-लोभ, विषय -विकार अत्यंत कम होने से,🌸 दु:खी जीवों पर दया करने से।