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धर्म-कर्म
Home›धर्म-कर्म›*जरूरत है पुनः क्रियोद्धार की*👉जे. के संघवी

*जरूरत है पुनः क्रियोद्धार की*👉जे. के संघवी

By पी.एम. जैन
June 17, 2020
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जिस प्रकार जीर्ण मंदिर का उद्धार होने पर जीर्णोद्धार कहा जाता है, उसी  प्रकार  क्रिया- आचरण की शिथिलता को दूर करना *क्रियोद्धार* कहा जाता है अर्थात शुद्ध संयम पालन में आई हुई अशुद्धियों- शिथिलताओं को दूर कर पुनः मूल मार्ग की आराधना- साधना प्रारंभ करने की प्रक्रिया को क्रियोद्धार कहा जाता है। शासन की निर्मलता- पवित्रता श्रमण वर्ग से अनुबंधित रहती है, जब श्रमण संघ में शिथिलाचार प्रवेश हो जाएगा, वह मार्ग से विचलित हो जाएगा तो शुद्ध मोक्ष मार्ग प्ररुपणा की सारी व्यवस्था ही डगमगा जाएगी।इसी वस्तुस्थिति को ध्यान में लेकर समय-समय पर हमारे पूज्य सुविहीत आचार्यों ने  तत्कालीन समस्याओं को ध्यान में रखकर आचार मार्ग की सुरक्षा हेतु नियम-उपनियमों में ऊपरी फेरफार कर बोल पट्टक,समाचारी,मर्यादा पट्टक का निर्माण किया एवं मर्यादाओं के प्रवर्तन द्वारा श्रमण वर्ग को पुन:सही मार्ग में स्थित किया ।
इसी क्रम में कलिकाल कल्पतरू दादा गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेंद्रसूरिजी  जैन श्रमण संघ की कायापलट कर  उज्जवल परंपरा को कायम रखने वाले समर्थ सूत्रधार थे। उन्होंने जावरा  में सन् 1869(वि,सं,1925) आषाढ़ कृष्णा 10 बुधवार की शुभ बेला में क्रियोद्धार कर नौ सूत्री योजना में नव कलमों को यतियों में मंजूर करवा कर, उनमें सुधार लाया व स्वगच्छीय मर्यादा पट्टक द्वारा साधु- समाचारी बनायी।
 *आज शिथिलाचार का काला साया पुनः नजर आने लगा है। मर्यादाओं के पालन में प्रमाद का संचार शुरू हो गया है। यद्यपि आज भी शुद्ध भाव से यथाशक्ति संयम की अनुपालना  करने वाले श्रमण-श्रमणी विद्यमान है, किंतु जहां शिथिलता आई है उसे नजर-अंदाज नहीं करते हुए दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। मंत्र- तंत्र, डोरे -धागों- तावीजों द्वारा जनता को मूर्ख बनाने का धंधा अमुक साधुओं द्वारा आज पुनः शुरू हो गया है। सरागी  देव- देवियों की आराधना उपासना का उपदेश भौतिक कामनाओं की पूर्ति हेतु देना या उनके पूजन अपनी निश्रा में पढ़ाना, यावज्जीव सावद्य कर्म मन- वचन- काया से ना करने-ना कराने- ना अनुमोदन करने का प्रत्याख्यान लेकर साधु-जीवन में प्रवेश कर किसी ट्रस्ट का अध्यक्ष बनना, चोरी-छिपे वाहन का प्रयोग, युवा मुनियों द्वारा भी व्हील- चेयर का उपयोग, अनावश्यक परिग्रह की बढ़ोतरी के कारण विहार में वाहन का साथ में चलना, सेलफोन का स्वयं द्वारा उपयोग, शिष्य बढ़ाने के मोह में अयोग्य दिक्षायें, स्वयं की प्रेरणा से बने धाम या पीठ पर अपना वर्चस्व कायम रखने हेतु सर्वे- सर्वा बन कर अधिकारों का उपयोग करना आदि कई प्रकार की शिथिलता पुनः अपने पैर जमाने लगी है। कम या ज्यादा प्रमाण में लगभग हर समुदाय गच्छ में इसका आगमन हुआ है।*
 *श्री संघ के जागरूक शासन प्रेमी इन सभी बातों पर गंभीरता से विचार करें एवं संयम शील श्रमण-श्रमणी भी पहल कर शिथिलाचार के नासूर को दूर करने हेतु प्रयत्नशील बनें, तभी  क्रियोद्धार दिवस मनाने की ओर उपयोगी कदम सिद्ध होगा।*
 🔴🟢 *क्रियोद्धार का 150 वाॅ वर्ष एवं हमारा कर्तव्य (क्रियोद्धार- एक विहंगम दृष्टि)*🟢🔴 सुलेख की पुस्तिका की PDF फाइल भेज रहा हूं ,कृपया शांति पूर्वक पढ़ें। इसकी पुस्तक उपलब्ध है, जिनको चाहिए कृपया मेरे मोबाइल नंबर पर अपना नाम व पता भिजवायें।
    💐 💐 💐 *प्रस्तुति* ✒️
*जे के संघवी(थाने- आहोर)*
भ्रमण ध्वनि 9892007268
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