🔴तरह-तरह के ममत्व के बोझ से दबा हुआ प्राणी, परिग्रह का बोझ बढ़ने से …..बहुत ज्यादा भार बढ़ने से समुद्र में डूब जाती जहाज की तरह नीचे…. गहरे पहुंच जाता है।
🔴सोने जैसी कीमती धातु भी यदि हल्की धातु में मिल जाए तो अपना निर्मल रूप खो बैठती है….. वैसे ही आत्मा परभाव में मैली होती है।
🔴परभाव के प्रपंच में पड़ी हुई आत्मा ना जाने कितने स्वांग रचाती है ,पर वही आत्मा यदि कर्मों के मैल से मुक्त हो जाए तो, शुद्ध सोने की भांति चमक उठती है।
🔴जीव अकेला ही जन्म लेता है और अकेला ही मृत्यु को प्राप्त होता है। अकेला ही कर्म करता है और अकेला ही भोगता है। स्वजन- परिजन कोई भी जीव का सच्चा साथी नहीं है। अतः मेरा- मेरा करके निरर्थक क्लेश क्यों करना? यह विचारणा एकत्व भावना है।
🔴इस भावना से असहाय अवस्था में जीव को आत्म बल मिलता है।