कारोबार करना यह उस तरह से है जैसे किसी नये बीज का पेड़ बनना।यदि बीज ठीक नहीं है तो पूरा पेड़ बेकार होगा उसकी प्रगति नहीं होगी साथ ही उस पेड़ को नष्ट करने वाले कीटों का प्रकोप भी उसे झेलना पड़ेगा। ज्ञान के प्रति भारतीय मानसिकता बड़ी तिरस्कार पूर्ण है।शादी विवाह मे पत्री मिलाने तथा संस्कार कराने वाले पंडित, ज्योतिषी को दक्षिणा ऐसे देते हैं जैसे कोई अहसान कर रहे हैं साथ ही पंडित या दैवज्ञ के प्रति भावहीनता का भाव ही रहता है फलस्वरूप परिणाम भी ऐसा ही मिलता है जबकि मात्र एक समय की चंंद अवधि के लिए👉किन्नर वर्ग की एक दुुआ पाने के लिए हजारों रूपयों का भुुगतान मुुुुठ्ठी बंंद करकेे, डरते-डरते कर दिया जाता है!शादी-विवाह के खान-पान तथा अन्य कार्यों मे पैसा पानी की तरह बहाया जाता है लेकिन पंंड़ित की दक्षिणा के लिए दिल-दिमाग हिचकोले खाता रहता है उसी तरह प्रतिष्ठान के नामकरण में कोई चिंतन नहीं उसकी ओपनिंग पार्टी मे जम के पैसा खर्च किया जाता है मेरा आशय यह है कि यदि आप ज्ञान की कद्र करेंगे तो ज्ञान आपको राह दिखायेंगा।
👉रामचरितमानस मे भगवान ने कहा है कि “श्राप देता हुआ दैवज्ञ भी पूजनीय है” यह उन्होंने अपने श्रीमुख से यूँ ही नहीं कहा होगा।
👉किसी भी फर्म कारखाना दुकान या किसी भी संस्था का नाम उसका मुकुट या बीजारोपण होता है जब हम किसी पेड़ को लगाते हैं तो सही भूमि सही समय का चयन करते हैं।इसके बाद वह पेड़ फलता फूलता है तब हम उसकी शीतल छांव मे आश्रय लेते हैं उसके फल खाते हैं।इसी तरह फर्म के नामकरण के समय सभी सदस्यों की पत्रिका अपनी कुल की परम्परा अपने कुल के कुल देव का हानि लाभ भाग्यवर्धक दिशा का चयन करना चाहिये।जिस स्थान मे फर्म डाल रहे हैं उस स्थान की भूमि कैसी है उसके वास्तुदोष का भी निराकरण करना चाहिये।