Paras Punj

Main Menu

  • होम
  • देश
  • विदेश
  • राज्य
  • बिजनेस
  • मनोरंजन
  • खेल
  • ज्योतिष
  • हेल्थ
  • धर्म-कर्म
  • लेख-विचार
  • अपराध
  • राजनीति
  • शिक्षा

logo

Paras Punj

  • होम
  • देश
  • विदेश
  • राज्य
  • बिजनेस
  • मनोरंजन
  • खेल
  • ज्योतिष
  • हेल्थ
  • धर्म-कर्म
  • लेख-विचार
  • अपराध
  • राजनीति
  • शिक्षा
लेख-विचार
Home›लेख-विचार›न कोई विक्षिप्त हुआ न किसी का मानसिक या शारीरिकस्वास्थ्य बिगड़ा-डा.निर्मल जैन(से.नि.जज)

न कोई विक्षिप्त हुआ न किसी का मानसिक या शारीरिकस्वास्थ्य बिगड़ा-डा.निर्मल जैन(से.नि.जज)

By पी.एम. जैन
July 26, 2020
586
0
Share:

न कोई विक्षिप्त हुआ न किसी का मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य बिगड़ा

जब अति की भी अति हो जाती है तब इति का प्रारंभ होता है। वरिष्ठ पर्यावरणविद, निष्ठावान-धर्मज्ञानी एवं प्राकृतिक संसाधन विशेषज्ञ का कहना है कि कोरोना का किसलिए रोना? भला कोई खुद बुलाये गए मेहमान से अलकसाता है? हम अपनी ओर भी तो देखें। पिछले कई दशकों से अपनी उपभोक्तावादी परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए सारे मानवीय और नेतिक मानदंडों को तिलांजली दे कर हर क्षेत्र में सारी सीमाएं तोड़ डालीं। अमानवीय होकर अभक्ष्य भक्षण। संसाधनों का असीम दोहन। जन-संख्या का घनत्व क्या कम था ऊपर से  हरे-भरे वनों के स्थान पर कंक्रीट के जंगल खड़े कर धरती को और बोझिल बना दिया। जल,थल और नभ सभी को अपने ऐश्वर्य-शाली आवागमन के वाहनों  से प्रदूषित कर दिया।

जब-जब हमनें  सीमाएं तोड़ी हैं, प्रकृति ने हमें संयमित और नियमित करने के लिए अपने विभिन्न तौर तरीके से हम पर अंकुश लगाया है। भू-स्खलन, सूखा,जल-प्रलय, भूकंप यह सब हमारे प्राकृतिक संसाधनों के अतिभोग की प्रकृत्ति द्वारा प्रतिक्रिया ही तो है। अपनी सुख-सुविधा, विलासिता के लिए पदार्थों का उपभोग में मस्त और व्यस्त हो कर  अंतत: अस्त-व्यस्त हो गए। हम भूल गए कि प्रकृति हमारी जरूरतें ही पूरी कर सकती है विलासिता का पोषण नहीं।

          धन-केंद्रित प्रवृत्ति ने हमारे व्यावहारिक जगत के साथ-साथ धर्म को भी एक व्यापारिक प्रतिष्ठान बना कर आडंबर-कर्मकांड और चमत्कारी रूप दे दिया। धर्म के नाम पर जनमानस को ठगा, छला जाने लगा। धर्म की शाला रंगशाला में परिवर्तित हो गयी। पांडित्य, ज्ञान-दान,धर्म-दान धन उपार्जन के  व्यवसाय बन गये। धर्म और इष्ट-देवता धन एकत्रित करने का साधन बना दिये। धर्म-सूत्र और इष्ट-देव के रोम-रोम को नीलाम किया जाने लगा। पुजारी ही पूजनीय कहलाने लगे। धर्म परिसरों में साम्राज्यवादी मनोवृति इस कदर बढ़ गई कि धर्म की क्रियाएं करने का अधिकार केवल धन-बल या जिनके पास जन-बल है उन तक ही  सीमित रह गया। धर्म को ह्रदय में धरण करने वाले  मूकदर्शक बनकर अंतिम पंक्ति में निर्वासित कार दिये गए।

          इतिहास साक्षी है पृथ्वी पर जब-जब धर्म की  हानि हुई है तब कोई ना कोई दिव्य-शक्ति धर्म की पुनर्स्थापना के लिए अवतरित होती है। वह सतयुग था जब महावीर, राम और कृष्ण जैसी विभूतियां इस निमित्व पृथ्वी पर आए। प्रकृति को हमारे द्वारा इस प्रकार अतिभोगवादी हो जाना, धर्म का व्यापारीकरण किया जाना रास नहीं आया। इसलिए हमारी इस कलयुगी मनोवृत्ति को दुरुस्त करने के लिए मारककोरोना आया। जो हमारी अंतर्चेतना को जाग्रत कर प्रत्यक्ष दिखा रहा है कि धन से भी अधिक प्राथमिक है सात्विक आहार, विहार और विचार के साथ स्वास्थ्य।

          जो चीख-चीख कर समझा रहा है धर्म का मूल जीव-दया-करुणा, सहिष्णुता है, धन और प्रदर्शन नहीं। हम अच्छी तरह समझ जाएँ इसीलिए उसने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि सारे ऐश्वर्य-शाली भव्य आयोजन,अनुष्ठान पर मृत्यु भय से बंदिश लग गयी। स्थिति यहां तक आ गई जो कभी  धार्मिक प्रक्रियाओं को करने के लिए उत्साहित करते थे, शरीर को मिथ्यात्व की श्रेणी में रखते थे वे भी यह कहने लगे कि शरीर बचाओ। शारीरिक क्रियाओं के बजाए धर्म को मनोभाव द्वारा आत्मसात करो।  

          शायद यह विपत्ति हमें समझा जाए कि  भोग हो या उपभोग, जड़ हो या चेतन, धर्म हो या कर्म, सभी कुछ उनके मूल स्वरूप में और मर्यादा में किए जाने पर ही फलदायक होते हैं। लगभग 4 माह तक लगभग शरीर द्वारा कि जाने वाली सारी घनघोर धार्मिक प्रक्रिया बंद रहीं। लेकिन आश्चर्य है कहीं से कोई सूचना नहीं आई कि इनके अभाव में कोई विक्षिप्त हुआ या किसी का मानसिक या शारीरिक रूप से स्वास्थ्य बिगड़ा? तब क्या ज़रूरत है भाव-प्रधान धर्म को इन भारी-भरकम क्रियाओं पर आश्रित करके जन-धर्म को धन-धर्म बनाने  की। दर्शन को प्रदर्शन का रूप देने की। इसका एक ही उत्तर है निहितार्थ शक्तियों द्वारा धर्म प्रभावना नहीं धन प्राप्ति-भावना।       

प्रचुर सम्पन्नता और महान उपलब्ध्यिों के बीच रहता हुआ मनुष्य आज जितना संतप्त है, जितने तनाव में है, जितने दवाब के बीच जी रहा है उतना कभी नहीं था। हजारों साल पहले महावीर ने जीवन-यापन के नए आयाम दिए थे। जिस प्रकार वाद्ययंत्र से सही स्वर निकालने के लिए यह ज़रूरी है कि उसके तार संतुलित मात्रा में कसे हों। जीवन को खुशहाल बनाने के लिए मन,वचन और क्रिया में भी संतुलन  आवश्यक है। जीने के लिए भोग अनिवार्यता है, लेकिन उसमें आसक्ति न रखें।

जन्म के समय कोई जेब नहीं होती। मृत्यु के समय कफन में कोई जेब नहीं होती। जेब केवल जन्म–मरण  के बीच में आती है। यही जेब मनुष्य को मनुष्यत्व से डिगाती है। जिसके लिए यह जरूरी है कि हम विलासिताओं के लिए अनावश्यक संग्रह न करें। संयमित और सीमित रहें। उन इच्छाओं का जन्म ही न होने दें जो व्यक्ति का ह्रास करने वाली हों। हम अपनी प्राथमिकताओं को समयानुसार सभी जीवों के प्रति सम-भाव  रखते हुए समझें और निर्धारित करें। 

जज (से.नि.) 

डॉ. निर्मल जैन
Previous Article

दिगम्बर जैन संतों की चातुर्मास सूची 2020

Next Article

एक राखी देश की रक्षा,पर्यावरण की ...

0
Shares
  • 0
  • +
  • 0
  • 0
  • 0
  • 0

Related articles More from author

  • लेख-विचार

    खाओ न पियो, जियो तो इन्टरनेट के साथ जियो-पीएम.जैन

    April 13, 2019
    By पी.एम. जैन
  • लेख-विचार

    *हम ऐसे ही बिखरते रहेंगे।*-डॉ निर्मल जैन (जज)

    December 14, 2021
    By पी.एम. जैन
  • लेख-विचार

    भेद-भाव करते हैं वही जिनकी पूँजी होती है कम👉प्रेषक-डा.निर्मल जैन “जज साहब”

    June 22, 2020
    By पी.एम. जैन
  • लेख-विचार

    तांत्रिक नहीं धन की तंगी से तंग लोग हैं -पी.एम.जैन

    October 13, 2018
    By पी.एम. जैन
  • लेख-विचार

    ऐसा होना होता है राम होना- डॉ. निर्मल जैन (जज)

    October 5, 2022
    By पी.एम. जैन
  • लेख-विचार

    धर्मक्षेत्र में कुख्यात नशा- पी.एम.जैन

    October 17, 2018
    By पी.एम. जैन

  • धर्म-कर्म

    करोड़ों पूजा,जप,स्तुतियों से महान् है क्षमा

  • जैन समाचार

    मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में वृहद स्तर पर आयोजित होंगे ज्ञान संस्कार शिक्षण शिविर

  • जैन समाचार

    जैन पत्रकार महासंघ का तृतीय राष्ट्रीय अधिवेशन उत्साह से हुआ संपन्न

ताजा खबरे

  • वर्तमान की सभी विकृतियों का समाधान,केवल महावीर*डा निर्मल जैन*जज*
  • जैन समाज में दुःखद खबर
  • जैन विद्या के विविध आयाम युवा विद्वत्संगोष्ठी एवं विद्वत् सम्मेलन सफलता पूर्वक सम्पन्न 51 विद्वान हुए सम्मिलित
  • श्री महावीर जी संग्रहालय की दुर्लभ जिन प्रतिमाऍ
  • देव शास्त्र गुरु अनुशीलन राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी सम्पन्न
  • भौतिकवादी संसार में शांत, सुखी जीवन का मार्ग*दशलक्षणपर्व* -डॉ निर्मल जैन (से.नि.) न्यायाधीश नई दिल्ली
  • जैन पर्व अनुशीलन राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी सफलतापूर्वक संपन्न
  • *महिला जैन मिलन पारस द्वारा आयोजित तीज कार्यक्रम में रजनी जैन वाइफ ऑफ राहुल जैन बनी तीज क्वीन*
  • भीतर से खोखले ही होते हैं-डॉ.निर्मल जैन (से.नि.न्यायाधीश)
  • गोमेद व अम्बिका यक्ष-यक्षी की स्वतंत्र युगल प्रतिमाएँ

Find us on Facebook

विज्ञापन

मेन्यू

  • होम
  • देश
  • विदेश
  • राज्य
  • बिजनेस
  • मनोरंजन
  • खेल
  • ज्योतिष
  • हेल्थ
  • धर्म-कर्म
  • लेख-विचार
  • अपराध
  • राजनीति
  • शिक्षा

ताजा खबरे

  • वर्तमान की सभी विकृतियों का समाधान,केवल महावीर*डा निर्मल जैन*जज*
  • जैन समाज में दुःखद खबर
  • जैन विद्या के विविध आयाम युवा विद्वत्संगोष्ठी एवं विद्वत् सम्मेलन सफलता पूर्वक सम्पन्न 51 विद्वान हुए सम्मिलित
  • श्री महावीर जी संग्रहालय की दुर्लभ जिन प्रतिमाऍ
  • देव शास्त्र गुरु अनुशीलन राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी सम्पन्न
  • भौतिकवादी संसार में शांत, सुखी जीवन का मार्ग*दशलक्षणपर्व* -डॉ निर्मल जैन (से.नि.) न्यायाधीश नई दिल्ली
  • जैन पर्व अनुशीलन राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी सफलतापूर्वक संपन्न
  • *महिला जैन मिलन पारस द्वारा आयोजित तीज कार्यक्रम में रजनी जैन वाइफ ऑफ राहुल जैन बनी तीज क्वीन*
  • Home
  • Contact Us