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Home›प्रवचन›तीन लोक में वीतराग-विज्ञानता सर्वोत्तम है – एलाचार्य अतिवीर मुनि

तीन लोक में वीतराग-विज्ञानता सर्वोत्तम है – एलाचार्य अतिवीर मुनि

By पी.एम. जैन
July 26, 2020
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परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज का 15वां पावन चातुर्मास सकल जैन समाज मथुरा के तत्वावधान में भारतवर्षीय दिगम्बर जैन संघ भवन में धर्मप्रभावना पूर्वक संपन्न हो रहा है| सायंकालीन सत्र में एलाचार्य श्री ने छहढ़ाला ग्रंथराज की व्याख्या करते हुए कहा कि तीनों लोक में वीतराग-विज्ञानता अर्थात राग-रहित केवलज्ञान ही सर्वोत्तम वस्तु है तथा आनंदस्वरूप व मोक्षप्रदायक है| लोक में अनन्त जीव हैं जो सुख चाहते हैं और दु:ख से डरते हैं| अतः गुरुजन करुणा की भावना से उनके दु:खों को नष्ट करने एवं सुख प्राप्त कराने हेतु सम्यक सम्बोधन प्रदान करते हैं। मोह के वशीभूत होकर यह जीव अनन्तकाल तक निगोद पर्याय में तीव्र दु:ख भोगता है| एकेन्द्रिय पर्याय में अनिर्वचनीय दु:ख सहन करते हुए बहुत काल व्यतीत होता है। त्रस पर्याय की प्राप्ति तो चिंतामणि रत्न की प्राप्ति सदृश अतीव दुर्लभ है। इस त्रस पर्याय में भी चारों गतियों संबंधी भयावह दु:ख भार सहन करना पड़ता है। जैसे विशेष पुण्योदय से किसी मनुष्य विशेष को ही दुर्लभ चिन्तामणि रत्न प्राप्त होता है वैसे ही स्थावर अवस्था से विशेष पुण्य का उदय होने पर ही जीव को त्रस पर्याय मिलती है, इसलिए उसे दुर्लभ कहा है।
एलाचार्य श्री ने आगे कहा कि नरक में जीव को इतनी भूख लगती है कि तीन लोक का पूरा अन्न ही खा जाएं परन्तु एक कण भी वहाँ नहीं मिलता। दस हजार वर्ष से लेकर तैंतीस सागर तक ये दु:ख नरक में सहन करने पड़ते हैं| कर्मयोग से वहाँ से निकल कर मनुष्य गति में भी जन्म धारण कर लिया परन्तु मनुष्य गति में नव मास तक माता के गर्भ में रहना पड़ता है, जहाँ अंगों के सिकुड़ने से अत्यन्त दु:ख होता है तथा जन्म लेते समय तीव्र वेदना होती है| जन्म के पश्चात् मनुष्य यह सब दुःख-वेदना भूल जाता है और इस अनमोल मानव शरीर से भी अन्याय युक्त कार्य करने लगता है। बाल्यावस्था अज्ञानता में, तरुण अवस्था विषय सेवन में और वृद्धावस्था अर्धमृतक के समान इस मानव ने अनादिकाल से व्यतीत की है, इसीलिए आत्मस्वरूप की पहचान नहीं हो पाई है।
एलाचार्य श्री ने आगे कहा कि तीन लोक में इतने दुःख व्याप्त है परन्तु जीव इन सबसे छुटकारा प्राप्त कर सकता है| प्रत्येक जीव को सम्यक पुरुषार्थ करते हुए सर्वप्रथम सम्यक्दर्शन की प्राप्ति करनी चाहिए तत्पश्चात तप-त्याग-साधना के माध्यम से कर्म-निर्जरा करते हुए सिद्धावस्था को प्राप्त कर जन्म-मरण के दुखों से दूर अपनी आत्मा में रमण हो जाना चाहिए| उल्लेखनीय है कि एलाचार्य श्री का पावन सान्निध्य पाकर समस्त मथुरावासी आनंदित व प्रफुल्लित हैं| श्री आदिनाथ चैत्यालय, ऋषभ ब्रह्मचर्य आश्रम में दिनांक 26 जुलाई 2020 को भगवान पार्श्वनाथ निर्वाण कल्याणक दिवस का आयोजन एलाचार्य श्री के सान्निध्य में सादगीपूर्वक किया जायेगा|
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