गुढ़ा, महरौनी। श्री दिगम्बर जैन मंदिर गुढ़ा में चातुर्मासरत जनसंत मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज ने ऑनलाइन प्रवचन के माध्यम से कहा कि राग और द्वेष मनुष्य के बहुत बड़े शत्रु हैं।आत्मा के गुणों में राग-द्वेष के गुणों ने डेरा डाल रखा है, जैसे पानी को पियो तो पानी बाहर से नेचुरल लगता है यदि पानी में चीनी डाल दी जाय तो उसमें पानी का गुण नहीं आता उसमें फिर चीनी का गुण मिठास के रूप में आता है। पानी तो पानी है, पानी का गुण भी वही है लेकिन अब चीनी डालने से वह पानी मीठा हो गया है ऐसे ही आत्मा के गुण तो वही हैं परंतु इस आत्मा के गुणों में राग-द्वेष के गुण आ गए हैं। जिसकी वजह से आत्मा के गुण बाहर नजर नहीं आ पा रहे हैं। इसलिए जीव को अपने आत्मा के गुणों की पहचान कर राग-द्वेष के मोह को त्यागना होगा, तभी कल्याण संभव है।
उन्होंने कहा कि पानी का कोई रंग नहीं होता, उसे जिस पात्र में रखा जाए उसके अनुसार रंग दिखाई देता है। ऐसे ही जीवन का कोई निश्चित फल नहीं होता, जीने का तरीका जैसा होगा वैसा ही जीवन का रंग दिखाई देगा। जीवन को शांति से चखने पर मिठास और उग्रता व्याग्रता से चखने पर कड़वाहट का अनुभव होगा। मन अमूल्य निधि है। हमारे मन में उत्पन्न विचार ही आत्मा के उत्थान और पतन का कारण बनते हैं।
उक्त जानकारी ब्र. अंशुल भैया व डॉ सुनील संचय ने दी।