अपरिग्रह व्रत, स्वयं को प्रकृति से जोड़े रखने का आश्वासन है-डा.निर्मल जैन(से.नि.जज)
अपरिग्रह व्रत, स्वयं को प्रकृति से जोड़े रखने का आश्वासन है। पर्युषण पर्व का नवां अंग, उत्तम आकिंचनधर्म। आकिंचन और परिग्रह परस्पर पूरक हैं। अपरिग्रह व्रत है, अकिंचन आत्मा का धर्म है। अकिंचन का तात्पर्य परिग्रह-शून्यता मात्र नहीं है। अपितु परिग्रह-शून्यता के मनोभावों कि सहज स्वीकृति भी है। प्रचिलित अर्थों में अपरिग्रह -पदार्थ पर स्वामित्व, आसक्ति की आकांक्षाऔर उनका संग्रह न करना है। किन्तु संग्रह का अभाव मात्र ही अपरिग्रह नहीं है। यदि पदार्थ के अभाव को अपरिग्रह समझा जाये तब निर्धन सबसे बड़ा अपरिग्रही होगा। अपरिग्रह के लिए पदार्थ की उपलब्धता के साथ उसमें विसर्जन या अनासक्ति का होना अनिवार्य है। सम्पदा के अतिरिक्त क्रोध, मान,माया, लोभ आदि का … Continue reading अपरिग्रह व्रत, स्वयं को प्रकृति से जोड़े रखने का आश्वासन है-डा.निर्मल जैन(से.नि.जज)
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