क्षमावाणी मनाने का अनूठा अंदाज
क्षमावाणी मनाने का अनूठा अंदाज
-डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर, 9826091247
वाराणसी में क्षमा मांगने और क्षमा करने की अनूठी परंपरा है। यहां प्रतिवर्ष पर्यूषण पर्व के अवसर पर क्षमावाणी पर्व अनूठे अंदाज में मनाया जाता है। वाराणसी के भेलूपुर में पूरे नगर के जैन समाज जन एकत्रित होते हैं। क्षमावाणी पर्व मानाते हैं। किन्तु क्षमावाणी मनाने का अंदाज अनूठा होता है। सभी पुरुषवर्ग एकत्रित हो जाते हैं, क्षमावाणी मनाने की तैयारी करते हैं। अपने अपने कुर्ते उतार कर बैठ जाते हैं, अपने अपने लक्ष्य को पहले से देखकर मन ही मन तय कर लेते हैं कि किसको किससे भिड़ना है और जैसे ही संकेत होता है, लोग उठकर एक-दूसरे से भिड़ जाते हैं। उस समय यदि कोई बाहरी व्यक्ति अचानक आकर देखे तो घबड़ा जाए कि यह क्या हो रहा है? सभी संभ्रांत लोग आपस में इतनी जोर शोर से लड़ क्यों रहे हैं। लेकिन थोड़ी ही देर में माजरा समझ में आ जाता है। इस कुश्ती में एक-दूसरे के पैरों पर गिरने की जोर आजमाइस होती है। जो इस में विजयी होता है उसे हारने वाले के पैर छूने का अधिकार मिलता है। यहां बड़े-छोटे का कोई भेद नहीं रहता, वस जो जीता वही विनयी। वही क्षमावान। ये सब इस युक्ति को सार्थक करते हैं- ‘क्षमा वीरस्य भूषणम्’ क्षमा वीरों का आभूष है। क्षमावाणी होने के उपरान्त सभी सामूहिक भोज में सम्मलित होते हैं। इस तरह विगत एक वर्ष में एक-दूसरे के प्रति की हुई गल्तियों की क्षमा मांगते हैं। अगले वर्ष पुनः इसी तरह कुश्ती के लिए इकट्ठे होते हैं और क्षमा मांगते है।
इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण सरकार के निर्देशो की अनुपालना के कारण यह अनूठे अंदाज का क्षमावाणी समारेाह नहीं मनाया जा सका।