अधकचरे धनाढ्यों ने फैला दिया हाहाकार- पी.एम.जैन
दुनिया में जो लोग अपने कर्मक्षेत्र में परिपूर्ण नहीं हैं वह सब अधकचरों की श्रेणी में आते हैं चाहे वह धनिक हो, योगी हो, राजनीतिज्ञ हो, पंड़ित हो, साधु हो, इंजीनियर हो, डाक्टर हो या कोई मास्टर हो! जीवन में जब तक इनके पास अपने-अपने हुनर अनुसार पूर्ण योग्यता नहीं तब तक यह सभी अधकचरे ही हैं|
👉आज देश-दुनिया में कुछ ऐसा ही सिलसिला चल रहा है जिसके कारण इन अधकचरे धनाढ्यों ने हाहाकार मचा रखा है|
देश-दुनिया में कोई आरक्षण के बल पर तो कोई अल्पसंख्यक के बल पर चलने की कोशिश कर रहा है जिसके कारण अधकचरापन बलवान होता जा रहा है! अधिकाँश तौर पर लोग यह विचार नहीं करते कि हम जिस कर्मक्षेत्र से जुड़ना चाहते हैं,जिस हुनर को सीखना चाहते हैं उसके प्रति हमें पूर्णरूप से समर्पित होने की विशेष अावश्यकता है अगर कोई व्यक्ति पूर्णरूप से अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठा और दृढ़ता के साथ समर्पित होता है तो उसे पूर्णता ही नहीं बल्कि सम्पूर्णता प्राप्ति होती है चाहे वह धार्मिक क्षेत्र हो या फिर लोक-परलोक सम्बंधी क्षेत्र हो|
अधकचरे आम की कोई औकात नहीं होती👇👇
फल सम्बन्धित बात कहें तो आम अनेक किस्म के होते हैं जिनमें कुछ धनाढ्य श्रेणी- उच्चश्रेणी के भी होते हैं ! यह उच्चश्रेणी-धनाढ्यता के कारण स्वयं में फूले नहीं समाते लेकिन अधकचरेपन की वजह से परखी नजरों वाले इंसनों की नजरों में इनकी कोई औकात नहीं होती है! कहने का तात्पर्य है कि व्यक्ति को पदवीयुक्त होने से पूर्व उस पदवी हेतु परिपूर्ण होना चाहिए जिसे दुनिया के सामने वह जगजाहिर करना चाहता है|
👉ध्यान रखना👉पेड़ की डाली से जुड़कर पके और परिपूर्ण आम की पहचान व आन्नद ही भिन्न होता है लेकिन “कार्बेटिया” प्रक्रिया से गुजरकर पकने की पूर्णता प्राप्त करने वाले समाज में बीमारी ही फैलाते हैं|
सटीक है यह मुहावरा👉”कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा , भानुमति ने कुन्बा जोड़ा!!”