गिरनार गौरव आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज की गौरवगाथा पूर्ण समाधि




आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज ने आचार्य श्री १०८ निर्मलसागरजी महाराज द्वारा जीवंत 81 कृतियों का सृजन किया गया जिनमें 36 मुनि दीक्षाएं, 16 आर्यिका दीक्षाएं, 4 एलक दीक्षाएं, 12 क्षुल्लक दीक्षाएं और 6 क्षुल्लिका दीक्षाएं सम्मिलित हैं।.
आपका परिचय इस प्रकार है-
जन्म नाम – श्री रमेशचंद्र जैन
जन्म – अगहन वदी द्वितीया, सन् 1946
जन्म स्थान – पहाड़ीपुर, पोस्ट -राजमल,
जिला- एटा (उ.प्र.)
पिता का नाम – श्री बहोरेलाल जी जैन (राजवैद्य)
माता का नाम – श्रीमती गोमादेवी जैन
लौकिक शिक्षा – आठवीं,
भाई बहिनें – पांच भाई, तीन बहिनें
ब्रह्मचर्य व्रत – आवार्यश्री महावीरकीर्ति जी से
क्षुल्लक दीक्षा – गिरनार पर्वत की चैथी टोंक, वैशाख शुक्ला 14, सन् 1964
दीक्षा गुरु – आचार्य श्री सीमंधरसागरजी महाराज (इन्दौर में समाधिस्थ)
नाम – क्षुल्लक नेमसागर जी
मुनिदीक्षा – आषाढ़ सुदी पंचमी, 1967, छीपीटोला आगरा में।
दीक्षा गुरु – आचार्य श्री विमलससागर जी (भिण्ड वाले)
नाम – मुनि निर्मलसागर जी
आचार्य पद – 13 अप्रैल 1973, सांगौद, जिला कोटा (राज.)
आचार्य श्री विमलसागरजी ने स्वयं का आचार्य पद (पट्टाचार्य पद) प्रदान किया।
पं. मक्खनलाल जी आपके नाना जी थे
नंदलाल जी-आचार्य श्री सुधर्मसागर जी (आपके नाना जी थे)
आचार्य महावीरकीर्ति जी आपके पिताजी के बड़े भाई (ताऊ जी) थे।
पैत्रिक मकान एक धोबी को दिया, कहते हैं उसे उसमें 25 किलो चाँदी और पांच किलो सोना चूल्हे को खोदने पर मिला था।
शिशु रमेश को आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी ने छीना-
माँ गोमा की गोद से लगभग डेढ़-दो वर्ष के शिशु रमेश को आचार्य महावीरकीर्ति जी ने छीनकर कहा- ‘ये बच्चा तेरा नहीं है, यह तो संयम मार्ग पर जायेगा। मां रोने लगी तो पिता जी ने समझाया कि महाराज जी तुम्हारा बेटा ले थेाड़े जायेंगे। वे क्या करेंगे, ये तो मुनिमहाराज हैं।
आचार्य महावीरकीर्ति जी महाराज ने मां को नियम दिलाया कि जब तक यह बालक 8 वर्ष का नहीं हो जाता तब तक तुम्हारी जिम्मेदारी है कि बालक शहद, जमीकंद आदि अभक्ष्य न खाये। आठ वर्ष का हो जाने पर रमेश को नियम दिलाये गये, वे उनका पालन करते रहे।
प्याज जबरदस्ती मुंह में-
गांव के बाहर जंगल में एक झरने के पास थे, गांव के एक ठाकुर के लड़के ने अपने नास्ता में से प्याज निकाली और रमेश के दोनों हाथ पकड़ कर उनके मुंह में जबरदस्ती डाल दी, हाथ खुुलने पर थूक दी और झरने के पानी से मुंह धोया। घर आकर मां को बताया। राजमल (नेमिनाथ भगवान) अतिशय क्षेत्र के दर्शन करने ले गईं।
घटना- बालक रमेश को कुछ लड़कों ने पोखर में फेंका –
आपके नगर के निकट में एक पोखर है, जो इतनी गरी थी कि एक के ऊपर एक सात हाथी डूब जाते थे। एक बार खेलते समय उस पोखर के किनारे खड़े थे कि एक बच्चे (रमेश) को धक्का दे दिया, तैरना नहीं आता था, वैसे में हाथ फड़फड़ाने लगे और देखा कि एक भैस पानी में थी, उन्होंने उस भैंस की पूंछ पकड़ ली और जब तक भैंस पोखर से बाहर नहीं आई तब तक पूछ पकड़े रहे। धीरे-धीरे भैंस तैरती हुई बाहर निकल आई, वे भी उसकी पूछ के सहारे बाहर आ गये, जान बची।
गुस्सा आने पर उन्होंने एक दंतवाड़ा (हंसिया) उठाकर उस खुरापाती लड़के पर चलाया, इससे कई लड़कों को चोटें आईं, एक को पैर में लगी थी। किसी ने वही दंतवाड़ा छीन का आपके सिर में मार दिया, तेजी से खून निकलने लगा, माँ ने वहाँ के बाल काट कर कुछ जलाकर उसकी राख में हल्दी मिलाकर लगा दी तब खून निकलना बंद हुआ।
लोगों ने बालक रमेश के पिता जी से शिकायत की। पिता जी गुस्से में घर बोले रमेश कहां है?बाहर निकालो! माता जी ने कहा पहले पूरा वाक्या (घटना) तो जान लें और सारी धटना उन्हें सुनाई।
पंचायत बैठी, पिताजी राजवैद्य थे। उन्होंने कहा हम गाँव छोड़ रहे हैं, अन्यत्र रहेंगे। पंचों ने कहा आप गांव छोड़कर नहीं जा सकते, आगे से आपके परिवार के साथ कोई हरकत नहीं होगी।
आँख के नीचे का घाव का निशान-
आचार्यश्री की दायीं आंख के नीचे घाव के निशान के विषय में जब मैंने उनसे पूछा तब आपनेे बताया- उनकी भतीजी को कुत्ता काटने दौड़ा, उन्होंने दौड़कर कुत्ते का मुँह पकड़ लिया, कुत्ते ने पंजे का नाखून मार दिया, खून बहने लगा तब भी मुँह नहीं छोड़ा, थोड़ी देर बाद जब वह कुत्ता फड़-फड़ा रहा ळा तब छोड़ा वह भाग गया, उसी का निशान है यह।
वैराग्योन्मुख हो घर से भागे-
15 वर्ष की अवस्था में आगरा जाने के लिये फिरोजाबाद स्टेशन पर आकर बैठ गये। घर के लोग आये, पूछा तो कह दिया आगरा जाना है, वे लोग घर पर ले आये। शौच के बहाने घर से चड्डी-बनियान पहने ही बाहर निकल आये, टेªन में बैठ गये, कुछ बच्चों को उनके पीछे लगा दिया, टुंडला में सुनहरी लाल मिल गये, उसी बस में वे आगरा जा रहे थे। जैसे तैसे आगरा पहुंचे, वहां सेठ सुनहरी लाल जी के यहां पहुंचे, उन्होंने कपड़े बनवाये, वहां श्री शीतलनाथ भगवान का अभिषेक किया। उनसे कहा कि महावीरजी जाना है। उन्होंने एक लड़का साथ में भेज दिया। वहांँ पहुंच कर भगवान के दर्शन-अभिषेक-पूजन किया, भोजन के उपरांत वह लड़का सो गया। उसी समय आप रमेश जी वहां से निकलकर बस से स्टेशन गये, कोटा की टेªन में बैठ गये।
कोटा में आचार्य शिवसागर जी थे, इसलिये कोटा की गाड़ी में बैठ गये थे, टिकिट नहीं था, टी. सी. के पूछने पर सत्य बोल दिया, उसने बता दिया बाहर से निकल जाना। वहां से निकल आये। शहर के मंदिर जी पहुंच गये। वहां आचार्य श्री आचार्य अजितसागरजी, शुभसागर जी, ऋषभसागर जी शौच जा रहे थे, रास्ते में मिल गये। उनके दर्शन करके उनके साथ ही आचार्य श्री शिवसागर जी व संघ के दर्शन किये।
वहां आचार्य अजितसागरजी, पाश्र्वसागरजी व ऋषभसागर जी थे, उनसे पूछा आचार्य शिवसागर जी कहां हैं? और उन्हें सारी बात बता दी कि कैसे घर से निकल कर आये हैं। सारी बात सुनकर आचार्य शिवसागर जी ने संघ में रख लिया।
सूरजमल जी आपके रिस्तेदार थे, सूरजमल जी के निवेदन पर अजितसागर जी महाराज ने आपको पढ़ाया।
कोटा चातुर्मास हो गया था। वहां से बुंदेलखण्ड की यात्रा करने को निकलना था। पपौरा जी में चातुर्मास हुआ। वहां तीन दीक्षायें होना थी। 1 आर्यिका श्री विशुद्धमती माता जी की, 2. श्री सुरेन्द्रकुमार जी- की क्षुल्लक दीक्षा और ब्र. रमेश जी की होना थी। बीमारी के कारण रमेश जी की दीक्षा रुक गई। घर के लोग उन्हें वापिस पहाड़ीपुर घर ले आये। ठीक होने के बाद रमेश जी फिर महावीरजी निकल आये। वहां आचार्य श्री शिवसागर जी के द्वारा पंचकल्याणक हो रहा था, वहां दो दीक्षायें हुईं। श्री श्रेयांस कुमार जी की और उनकी पत्नी श्रेयांसमती की। इनके क्रमशः नाम रखे गये मुनि श्री श्रेयांससागर जी एवं आर्यिका श्री श्रेयांसमती जी। दीक्षा देखकर रमेश जी दिल्ली चले गये। वहां जाकर लाल मंदिर में आचार्य श्री देशभूषण जी के दर्शन किये और पहाड़ी धीरज में श्री सीमंधर सागर जी व सुबाहुसागर जी का संघ ठहरा था, इनके दर्शन किये। समाज ने रमेश जी से संघपति बनने का निवेदन किया, आपने निवेदन स्वीकर किया और समाज ने संघ को गिरनार ले जाने का निवेदन किया। आप दोनों संघों को गिरनार ले आये।
गिरनार पर्वत पर एक काले बाबा से झड़प-
वैशाख शुक्ला 14, सन् 1964 ब्र. रमेशजी आचार्य श्री सुबाहुसागर जी व आ. सीमंधर सागरजी के साथ गिरनार पर्वत की वंदना को गये थे। उस समय 10-12 लोग पहाड़ पर और साथ में थे। रमेश जी जल्दी जल्दी 5वीं टोंक पर पहुंच गये। एक काला बाबा भ. नेमिनाथ जी के चरण चिह्नों पर हरा कपड़ा ढके था, इनको दर्शन करने से उसने मना किया, बोला डंडा मारूंगा, इन्होंने उसकी कोई बात नहीं मानते हुएं भगवान के चरणों में संतरा चढ़ा दिया। वह बाबा मारने को आया तो रमेश जी ने उसी के हाथ का डंडा छीन कर 4-5 उसी में जड़ दिये। बाद में बहां आ. सीमंधर सागर जी आये, उनसे उस बाबा ने शिकायत की। चैथी टोंक पर महाराज जी ने इन्हें समझाया था कि ऐसा नहीं करते, कोई कितना भी उग्र हो हमें शांति से काम लेना चाहिए।
गिरनार की चैथी टोंक पर क्षुल्लक दीक्षा-
चैथी टोंक पर आ. सीमंधर सागरजी से ब्र. रमेशजी ने दीक्षा मांगी, उन्होंने वहां देने से मना कर दिया। तब आपने वहीं बैठकर केशलोंच करना प्रारंभ कर दिया। वहां राख नहीं थी तो मिट्टी लगाई। शेष केश लोंच आ. सुबाहु सागर जी ने किये। आ. सीमंधर सागरजी व आ. सुबाहु सागर जी ने अपनी अपनी पिच्छी से पांच-पांच मयूर पंख निकाल कर दिये, उसी की पिच्छी बनाई गई। व उन्हें दी गई।
पर्वत से नीचे आकर विधिवत् बंडीलाल कारखाने में आचार्य श्री सीमंधरसागर जी महाराज द्वारा क्षुल्लक दीक्षा हुई। क्षुल्लक नेमसागर नामकरण किया गया।
सोनगढ़ में कांजी भाई को फटकार-
मेरे साथ श्री भरतकाला जी भी बैठे थे, उन्होंने आचार्यश्री से एक प्रश्न पूछ लिया, उसके उत्तर में आचार्यश्री बोले- ‘‘आगे विहार करते हुए हम सोनगढ़ पहंुचे। सोनगढ़ में कांजी भाई ऊपर बैठे थे, मुनि महाराजों को नीचे बैठालते थे। प्रवचन कर रहे थे, खकार का बल्गम बगल में रखे चांदी के कटोरे में थूकते थे, प्रवचन करते करते दूध का गिलास आया और पीने लगे, हमने (क्षुल्लक नेमसागर) ने तुरंत मना किया- यहां दूध नहीं पी सकते। तब कांजी भाई नीचे उतरकर दूध पिया।
कांजी भाई ने कहा- यहां आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी आये, वर्णी चिदानंद जी, श्री पद्मसागर जी आये किसी ने मुझे टोका नहीं है।
मैंने कहा- आप प्रवचन करते समय पैर पर हाथ लगा रहे हो उसी हाथ से समयसार के पन्ने पलट रहे हो, थूक रहे हो, दूध पी रहे हो, यह जिनवाणी की घोर अनिय और अपमान है। कांजी भाई ने जब संघ से आहार चर्या करने को कह तो वहां आहार चर्या करने से मना कर दिया। कहा हम यहां सोनगढ़ में आहार चर्या नहीं करेंगे। रास्ते में किसी गांव में आहार चर्या की।’’
अहमदाबाद में चातुर्मास हुआ। श्री सुबाहुसागर जी, सीमंधर सागर जी थे। एक क्षुल्लिका ने महाराज के कान भर दिये, इनके प्रवचन अच्छे होते हैं, आपका प्रभाव कम होता है।
चमत्कारों की शुरुआत-
क्षुल्लक जी अहमदाबाद में गुरु आज्ञा से महावीर नगर में पहुंच गये।
अहमदाबाद शाहपुर में आचार्य सींमधरसागर जी का चातुर्मास था। एक दिन बताशा पोल में आचार्य सीमंधरसागर जी महाराज सामायिक कर रहे थे, कुछ शरारती तत्त्व मुस्लिम लड़के ऊपर से उनके ऊपर कंकड़-पत्थर मार रहे थे। आपने (निर्मलसागर जी ने) णमोकार मंत्र पढ़कर हाथ ऊपर किया, तो पत्थर लौटकर फेकने वाले की आंख में लग गया। तब से आप चमत्कारी के रूप में प्रसिद्ध होने लगे।
कुंएं का पानी मीठा हो गया-
आचार्यश्री से कुछ हमने पूछा महाराज जी ऐसा कोई और भी बाक्या हुआ ह क्या- तब उन्होंने बताया- कोई चमत्कार नहीं लेकिन लोग उसे चमत्कार मानने लगे। ‘‘हुआ यूं कि बतासा पोल अहमदाबाद में जैनों ने निवेदन किया कि महाराज! यहां के ंकुंएं का पानी बहुत खारा है इसलिए चैका आदि लगाने में दिक्कत होती है। हमने कुछ कंकड़ मंत्र पड़ कर दिये कि इन्हें कुंएं में डाल दो, उसके साथ एक बोरा राख डलवा दी, कुद ही दिनों में पानी खारे से मीठा हो गया। लोगों की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा।’’
ईशरी में अन्तराय और विहार-
ईशरी में उदासीन आश्रम में मायाबेन (बाद की आर्यिका विशुद्धमती माताजी) को पढ़ाने के लिए भती किया गया था। वे कभी कभी चैका लगाती थीं, चैके में एकबार वे दूसरी जगह से चांदी के बर्तन में आहार लेकर आयीं। आप-मुनि श्री निर्मलसागर जी ने उन्हें देखते ही अन्तराय कर दिया। आपने बताया कि इसलिए अंतराय करना पड़ा कि वे विधवा होते हुए भी सधवा जैसी वेश-भूष में थीं तथा सात घर से भी अधिक दूरी से आहार लाई थीं। वहां अंतराय करके विहार कर दिया, वहां से निमिया घाट चले गये। पाश्र्वनाथ भगवान के दर्शन कर वहीं से पाश्र्वनाथ टोंक चले गये, वहीं पर रात हो गई, वहां कोई ठहरने की व्यवस्था नहीं थी। एक शिलापर रात भर बैठे रहे।
शेर की गुफा पर रात भर बैठे थे-
पाश्र्वनाथ टोंक की जिस शिला पर रात भर बैठे रहे, उसी शिला के नीचे गुफा थी, उस गुफा में एक शेर रात भर बैठा रहा और आबाज करता रहा। मैंने पूछा महाराज! रात्रि और सिंह की आबाज, आप भयभीत नहीं हुए? आचार्यश्री कहा- ‘‘एक तो पहले से मुझे पता नहीं था कि यहां शेर की गुफा है, फिर रात्रि हो गई थी, मैं सूर्यास्त के बाद कहीं जा नहीं सकता था, फिर मैं यह जानता हूं कि कितना ही हिसंक प्राणी क्यों न हो मनुष्य द्वारा जब तक उसे छेड़ा नहीं जाता तब तक वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता।’’ इन्होंने आगे बताया- ‘‘लगभग 3-4 बजे जय-जयकारे के नारे लगाते हुए दर्शनार्थी आये, बोले महाराज यहाँ क्यों बैठे हो आप? यहाँ तो शेर की गुफा है। ऐसा बोलकर वे लोग आगे वंदना को चले गये, सबेरा होते ही हमने यात्रा प्रारंभ कर दी।’’
शिखरजी चंदाप्रभु की टोंक पर शेर से सामना हुआ-
आपसे हमने पूछा महाराज ऐसे किसी हिंसक जानवर से आपका कभी सामना हुआ? उन्होंने कहा- ‘‘हां, शेर से सन्निकटता दो बार हुई, पर सामना एक ही बार हुआ, पर मैं कभी भी जरा भी विचलित नहीं हुआ। एक तो उस गुफा पर निकटता रही और दूसरे शिखरजी की चंदाप्रभु की टोंक को हम जा रहे थे, वहां पर एक शेर आया, मेरा मुख चंदाप्रभु की टोंक की तरफ था और शेर का मुख झाड़ियों की तरफ। हमारी एक-दूसरे की आंखों में आंखें नहीं मिलीं। जैसे वह सोच रहा हो मुझे आपकी कोई परवाह नहीं और मैं भी सामान्य ही था, मुझे भी उसकी कोई परवाह नहीं थी। थोड़ी दूरी पर एक अंग्रेज था, उसके हाथ में कैमरा था, उसने इस दृश्य का फोटो लिया।’’ मैंने बीच में ही टोकते हुए कहा- महाराज जी! क्या वह फोटो कहीं देखने को मिलेगी? आचार्य महाराज ने कहा- ‘‘मुझे पता नहीं, मैंने तो उससे कुछ बात भी नहीं की, न कभी किसी से फोटो के विषय में पूछा, वह उसी के पास होगी। लेकिन उसे कौन खोज सकता है।’’ आचार्य महाराज सेे ‘आगे क्या हुआ’ यह पूछने पर उन्होंने बताया- ‘‘आगे कुछ नहीं हुआ, वह शेर मेरा रास्ता काटते हुए आगे बढ़ गया और जंगल में कहीं खो गया, मैं चन्दाप्रभु की टोंक की ओर अविराम बढ़ता रहा।
इस तरह पहाड़ी पुर में जन्में बालक रमेश का पहाड़ियों के मध्य बने गिरनार के निर्मलध्यान केन्द्र में 72-73 वर्ष की आयु में गिरनार गौरव 108आचार्य श्री निर्मल सागर जी के रूप मे अनेक गौरवगाथायें लिए अवसान हुआ।

पारस पुँज परिवार आचार्य श्री के श्री कमल चरणों में भावपूर्ण विनयांजलि अर्पित करता है 🙏🙏🙏

