मेरे दादागुरु👉”प.पू.आचार्य श्री शान्तिसागर जी मुनिराज”हस्तिनापुर वालों”के मुनि दीक्षा गुरु यानी मेरे बडे़ दादागुरू👉प.पू.आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज ने अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर समाधि मरण को प्राप्त करके जीवन को उत्कृष्ट बनाया है। दादागुरू और बडे़ दादागुरुदेव दोनों ने ही अपने जीवन काल में अनेकों ऐसे धार्मिक कार्य किये जिससे समाज में नई चेतना जागृत हुई, बडे़ दादागुरू की सबसे बड़ी उपलब्धि*गिरनार जी तीर्थक्षेत्र*है उनके ही प्रयासों की सफलता का यह शुभफल है जिसके कारण आज जैन समाज गिरनार जी तीर्थक्षेत्र के दर्शन कर पाता है।
बडे़ दादा गुरुदेव के वात्सल्य के अनेकों उदाहरण सुनें, लेकिन मै कभी उनके दर्शन तो नहीं कर पाई पर उनकी तस्वीर देखकर हमेशा यही लगता है कि👉जैसे वात्सल्य की कोई उत्कृष्ट धारा निरन्तर बह रही हो और उसी वात्सल्य के वशीभूत होकर बडे़ दादा गुरुदेव ने *प.पू.आचार्य श्री ज्ञानभूषण जी मुनिराज*की चर्या के विषय में वात्सल्य व करुणा से सम्बन्धित अनेकों चर्चाऐं सुनी जिनसे प्रभावित होकर परम पूज्य बडे़ दादागुरू👉आचार्य श्री निर्मलसागर जी ने तीर्थक्षेत्र श्री गिरनार जी से ही पत्र के माध्यम से परम पूज्य आचार्य श्री ज्ञानभूषण जी मुनिराज को फरवरी 2012को “21वीं सदी के वात्सल्य मूर्ति”की *उपाधि* से अलंकृत किया।
*ऐसे करुणा के सागर प.पू.आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज को मेरा बारम्बार नमन!*👉क्षुल्लिका ज्ञानगंगा माता जी