सराकोद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज की समाधि जाते-जाते भी बना गए इतिहास -:डॉ.सुनील जैन संचय
सदी के महानतम संत,सराकोद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज की समाधि , अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब अंतिम क्रियाएं हुई आगमोक्त विधि से जाते-जाते भी बना गए इतिहास-:डॉ. सुनील जैन संचय !
आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज छाणी महाराज की परम्परा के षष्ठ पट्टाचार्य, सराकोद्धारक राष्ट्रसंत आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज की अकस्मात समाधि 15 नवंबर 2020 (भगवान महावीर निर्वाण दिवस दीपावली) की शाम 5.30 बजे श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र नसियाजी बारां (राजस्थान) में हो गयी। आचार्यश्री राजस्थान के बारां शहर में चातुर्मास कर रहे थे। भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में उनके सान्निध्य में विशेष पूजन एवं लाड़ू चढ़ाने का आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने प्रवचन भी दिए। शाम को देवलोकगमन हो गया। अचानक उनकी समाधि की खबर से देशभर में जैन समाज में शोक की लहर फैल गई। जिसने भी यह खबर सुनी वह स्तब्ध हो गया। इस अकल्पनीय खबर पर कोई भी विश्वास नहीं कर पा रहा था।
परम पूज्य आचार्य सुमतिसागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का जन्म मध्यप्रदेश के मुरैना नगर में 1 मई 1957 को हुआ था । श्रावक श्रेष्ठी पिता श्री शांतिलालजी, माता अशर्फीदेवीजी जैन के यहां आपका जन्म हुआ था । बचपन से सांसारिक वैराग्य को धारण करते हुए आपने 1974 में संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज से ब्रहमचर्य व्रत अजमेर (राजस्थान) में लिया था । 5 नवंबर 1976 को सिद्धक्षेत्र सोनागिरिजी में आचार्य श्री सुमतिसागरजी ने उन्हें क्षुल्लक दीक्षा प्रदान कर गुणसागर नाम दिया था । सन् 1988 में महावीर जयंती 31 मार्च 1988 को उन्हें सोनागिजी में मुनि दीक्षा प्रदान की गई और वे मुनि ज्ञानसागरजी महाराज के नाम से सुप्रसिद्ध हुए । 1989 में सरधना जिला मेरठ (उ.प्र.) में उन्हें उपाध्याय पद पर प्रतिष्ठित किया गया । 2013 में उन्हें अतिशय क्षेत्र बड़ागांव (उ.प्र.) में पंचम पट्टाचार्य विद्याभूषण सन्मति सागरजी की समाधि के बाद छाणी परम्परा का षष्ठ पट्टाधीश आचार्य घोषित किया गया था।
देशभर के श्रद्धालु पहुँचे अंतिम दर्शन करने बारां : 16 नवम्बर 2020 को उनकी चक डोल यात्रा निकाली गई जिसमें पूरे देश से उनके भक्त उमड़ पड़े। प्रातः 10 बजे नसिया जैन मंदिर से उनकी अंतिम यात्रा प्रारंभ होकर अम्बेडकर सर्किल ,दीनदयाल पार्क होते हुए इसी मार्ग से वापस नसिया जी पहुँची जहां पर राजस्थान सरकार की ओर से केबिनेट मंत्री श्री प्रमोद भाया एवं श्रीमती उर्मिला भाया व विधायक पानाचंद मेघवाल ने उपस्थित होकर घी, चंदन आदि समर्पित किया। बारां जैन समाज ने इस दौरान अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान एवं अन्य व्यापारिक गतिविधियां बंद रखीं। इस दौरान दिल्ली, मेरठ, मुज्जफरनगर, मुरैना, टीकमगढ़, सागर, बड़ौत, बुढ़ाना, सरधना, गाजियाबाद, कोटा, मेरठ, तिजारा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अनेक शहरों , कस्बों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
इस ऐतिहासिक छण की हजारों आंखे साक्षी बनीं। अपने गुरु के इस तरह अचानक छोड़कर जाने से प्रत्येक आँख नम थी।
बिना बोली के आगमोक्त विधि से हुए अंतिम संस्कार : पूज्य आचार्यश्री की अंतिम संस्कार की क्रियाएं प्रतिष्ठाचार्य ब्र. जयकुमार निशांत भैया के निर्देशन में ब्र. मनीष भैया, ब्र. अतुल भैया, पंडित मनीष संजू ने सम्पन्न कराईं। सभी अंतिम संस्कार भगवती आराधना, मरण कंडिका के अनुसार विधि विधान से सम्पन्न की गईं। अंतिम संस्कार की क्रियाओं को सम्पन्न करने के लिए कोई भी बोली आदि नहीं लगाई गई। आचार्यश्री के गृहस्थ अवस्था के पिता श्री शांतिलाल जैन, गृहस्थ अवस्था के भाई श्री राकेश जैन, प्रदीप जैन एवं बहनोई आदि ने अंतिम संस्कार की क्रियाएं सम्पन्न कीं। भक्तिपाठ एवं मंत्र विधि के साथ सभी क्रियाएं सम्पन्न की गईं। भक्तिपाठ पूज्य भक्ति भूषण एवं पूज्य पूजा भूषण माता , संघस्थ ब्र. अनिता दीदी, ब्र. मंजुला दीदी, ब्र. रेखा दीदी आदि ने किया।
जाते-जाते भी बना गए इतिहास : आचार्यश्री की दीक्षा भगवान महावीर जयंती पर 31 मार्च 1988 को सोनागिर में हुई थी और उनकी समाधि भगवान महावीर के निर्वाण महोत्सव 15 नवंबर 2020 को हुई । ऐसे अद्भुत क्षण बहुत कम देखने मिलते हैं। सही मायनों में वे भगवान महावीर के लघुनन्दन थे। आचार्यश्री का देह परिवर्तन 63 वर्ष की आयु में हुआ। आचार्यश्री हमेशा अपने प्रवचनों 36 नहीं 63 बनने की सीख देकर तोड़ने नहीं जोड़ने की बात करते थे। और इस दुनिया से 63 वर्ष की आयु में विदा लेते हुए भी जोड़ने का संदेश देकर गए। लॉकडाउन के समय से बारां जैन समाज ने आचार्यश्री की प्रेरणा से अनुशासन एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। कोरोना काल के चलते किसी भी व्यक्ति ने आचार्यश्री के चरण स्पर्श नहीं किए। निर्धारित दूरी से ही उनको नमोस्तु किया। यह अनुशासन का पाठ आचार्यश्री की प्रेरणा से बारां जैन समाज ने पालन कर सम्पूर्ण देश के सामने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
संतों ने समर्पित की विनयांजलि : आचार्यश्री के अकस्मात वियोग को अनेक संतों ने अपूरणीय क्षति बताया है। देशभर में अनेक स्थानों पर विराजमान जैन आचार्यों, मुनि-आर्यिकाओं ने आचार्यश्री के अवदान को स्मरण करते हुए अपनी विनयांजलि समर्पित की है।
देश की अनेक राजनैतिक हस्तियों ने श्रद्धांजलि : आचार्यश्री के देवलोकगमन पर देश के अनेक राजनेताओं ने श्रद्धांजलि समर्पित की है जिनमें प्रमुख हैं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान, केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट, क्रांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, सांसद एवं पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर, केंद्रीय मंत्री नरेन्द्रसिंह तोमर, पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य, राजस्थान सरकार के कैबिनेट मंत्री प्रमोद भाया, महेश शर्मा पूर्व केंद्रीय मंत्री, जयंत चौधरी सहित देश के अनेक राजनेताओं आचार्यश्री के चरणों में श्रद्धापूर्वक
श्रद्धांजलि दी है।
देश-विदेश में हुईं विनयांजलि-श्रद्धांजलि सभाएं : आचार्यश्री के अचानक देह परिवर्तन से देश-विदेश में उनके लाखों श्रद्धालु स्तब्ध हैं। सैकड़ों की संख्या में विनयांजलि-श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित की गईं। ज़ूम एवं यूट्यूब चैनल पर भी विशाल स्तर पर अनेक संस्थाओं ने अपने श्रद्धा सुमन आचार्य श्री ज्ञानसागर जी के चरणों में समर्पित किए हैं। विदेश से ऑनलाइन अनेक जैनेतर लोगों ने श्रद्धांजलि प्रेषित की है। वहीं श्रवणवेलगोला के भट्टारक जगतगुरु स्वस्ति श्री चारुकीर्ति स्वामी जी एवं राजर्षि वीरेंद्र हेगड़े जी सहित अनेक विशिष्ट हस्तियों ने अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की है।
अमर रहेंगे आचार्यश्री : जैन प्रतिभा सम्मान समारोह, इंजीनियर्स सम्मेलन, डाॅक्टर्स सम्मेलन, अभिभाषक सम्मेलन, प्रशासनिक/पुलिस अधिकारियों का सम्मेलन, पत्रकार सम्मेलन, कर्मचारी/अधिकारी सम्मेलन, जैन विधायकों एवं सांसदों का सम्मेलन, वैज्ञानिक सम्मेलन, सी.ए.कांफ्रेस, बैंकर्स कांफ्रेंस, सराक सम्मेलन, जेलों में प्रवचन, ज्ञान संस्कार शिक्षण शिविर, शिक्षक सम्मेलन, महिला सम्मेलन, ज्योतिष शिविर,न्यायाधीश सम्मेलन, एकेडमिक एडमिनिस्ट्रेटर कांफे्रंस, आई.आई.टी.छात्र सम्मेलन, जैन कॅरियर काउंसलिंग, विद्वत संगोष्ठियां, विद्वत पुरस्कार, पुलिस लाइन में संबोधन, शाकाहार सम्मेलन एवं निबंध प्रतियोगिता आदि अनेक आयोजन उनकी प्रशस्त प्रेरणा एवं सान्निध्य में । जिससे समाज में एक नई क्रांति देखी गयी।कोरोना संकट के दौरान भी जूम एप, गुगल मीट,यूट्यूब चैनल आदि के माध्यम से कई आयोजन उत्साह के साथ संपन्न हुए।
सराकों का उद्धार ऐतिहासिक कार्य : आचार्यश्री को सराकोद्धारक के नाम से जाना जाता था । झारखण्ड, बिहार, उड़ीसा के विभिन्न अंचलों में सराक जाति लाखों की संख्या में निवास करती है, जो अपनी मूल जैन संस्कृति से बिछुड़ गए थे उन्हें अपनी मूल जैनधर्म की धारा में जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य करके जैन संस्कृति के बहुत बड़ा अवदान दिया है। तडाई क्षेत्र में विपरीत परिस्थितियों में किया गया उनका चातुर्मास अपने आप में ऐतिहासिक था।
आपकी प्रेरणा से हुई अनेक संस्थाओं की स्थापना : आचार्यश्री की प्रेरणा से श्रुत संवर्द्धन संस्थान मेरठ, आचार्य शांतिसागर छाणी ग्रंथमाला बुढ़ाना, प्राच्य श्रमण भारती मुजफ्फरनगर, सोसायटी फाॅर सराक वेलफेयर एण्ड डेवलपमेंट सरधना मेरठ, श्री दिगम्बर जैन सराकोत्थान समिति गाजियाबाद, अखिल भारतीय दि.जैन सराक ट्रस्ट, संस्कृति संरक्षण संस्थान दिल्ली, , ज्ञानसागर साइंस फाउण्डेशन दिल्ली, ज्ञान गंगा शाकाहार समिति दिल्ली, ज्ञान प्रतिभा संस्थान सूर्यनगर गाजियाबाद, श्रमण ज्ञान भारती मथुरा आदि अनेकों संस्थाओं के गठन में अपना आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन प्रदान किया।
प्राचीन जैन साहित्य के संरक्षण में अतुलनीय अवदान : प्राचीन जैन ग्रंथों की पांडुलिपियों के संकलन , संरक्षण एवं प्रकाशन लोकोपयोगी सत्साहित्य को सर्व सुलभ कराने एवं आगम ग्रंथों के प्रकाशन की क्षीण होती परंपरा को पुनर्जीवित करने के में आचार्यश्री का अवदान अतुलनीय है। जैन आगम के चारों अनुयोगों के ग्रंथों अनेक प्राचीन ग्रंथों का प्रकाशन आपकी प्रेरणा हुआ। जिनवाणी के आराधकों को उनके कृतित्व के आधार पर प्रतिवर्ष श्रुत संवर्धन संस्थान के तत्वावधान में सम्मानित करने का अनूठा कार्य आपकी प्रेरणा से हुआ।
आचार्य श्री ज्ञानासागर जी ने तीर्थंकर महावीर की देशना को गौरवमंडित करने के महायज्ञ में जो अपनी समिधा अर्पित की है , वह देश के सांस्कृतिक इतिहास का एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रेरक प्रसंग है, जिसके प्रति युगों-युगों तक इस देश की बौद्धिक परंपरा ऋणी रहेगी।
आचार्यश्री इस युग के महानतम संत थे उनके असमय जाने से सम्पूर्ण जैन को बहुत बड़ा धक्का लगा है। उनके द्वारा किये गए ऐतिहासिक कार्यों से वे सदैव जीवंत और अमर बने रहेंगे।
प्रस्तुति : डॉ. सुनील जैन संचय
नेशनल कान्वेंट स्कूल के सामने, गांधीनगर, नईबस्ती, ललितपुर 284403 उत्तर प्रदेश
9793821108