बन्धानी हींग की जीवनी-पं.राधेश्याम शर्मा “आर्युवेद रत्न एवं ज्योतिष वार्चस्वपति”
हींग को संस्कृत में ‘हिंगु’और अंग्रेजी में Asafoetida कहते हैं!यह सौंफ़ की प्रजाति का एक ईरान मूल का पौधा होता है इसकी ऊँचाई लगभग 1 से 1.5 मी. तक की होती है। यह पौधे भूमध्यसागर क्षेत्र से लेकर मध्य एशिया तक में पैदा होते हैं।
हींग शाक की भाँति एक बारहमासी पौधा है। इस पौधे के विभिन्न वर्गों के भूमिगत प्रकन्दों व ऊपरी जडों से रिसने वाले शुष्क वानस्पतिक दूध को हींग के रूप में प्रयोग किया जाता है।
कच्ची हींग का स्वाद लहसुन जैसा होता है, लेकिन जब इसे व्यंजन में पकाया जाता है तो यह उसके स्वाद को बढा़ देती है।
हींग दो प्रकार की होती हैं- एक हींग काबूली सुफाइद (दुधिया सफेद हींग) और दूसरी हींग गेंहुआ रंग की होती है । हींग का तीखा व कटु स्वाद है और उसमें सल्फर की मौजूदगी के कारण एक अरुचिकर तीक्ष्ण गन्ध निकलती है। यह तीन रूपों में उपलब्ध हैं- ‘टियर्स ‘ , ‘मास ‘ और ‘पेस्ट’। ‘टियर्स ‘, वृत्ताकार व पतले, राल का शुद्ध रूप होता है इसका व्यास पाँच से 30 मि.मी. और रंग भूरे और फीका पीला होता है। ‘मास’ – हींग साधारण वाणिज्यिक रूप है जो ठोस आकार वाला होता है। ‘पेस्ट ‘ में अधिक तत्व मौजूद रहते हैं। सफेद व पीला हींग जल विलेय है जबकि गहरे व काले रंग की हींग तैल विलेय है। अपने तीक्ष्ण सुगन्ध के कारण शुद्ध हींग को पसंद नहीं किया जाता बल्कि इसे स्टार्च और गम मिलाकर संयोजित करके बन्धानी हींग के रूप में बेचा जाता है।
👉हींग का उपयोग करी, शाक,सब्जी,चटनी, दही रायता एवं अचार इत्ययादि में सुगन्ध लाने के लिए होता है बन्धानी हींग (Compounded Asafoetida) पाचन रोगों तथा पेट की बीमारियों के लिए एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है। हींग का पुराने ज़माने से ही पेट की बीमारियों को ठीक रखने के लिए प्रयोग किया जाता रहा हैं। यह गैस से राहत देता हैं और पाचन तंत्र को ठीक रखता हैं, इसके नियमित सेवन से खाना आसानी से और प्राकृतिक तरीके से पच जाता हैं। बन्धानी हींग न केवल पाचन रोगों से बचाता हैं बल्कि भूख को भी बढ़ाता हैं इसके अलावा यह अम्लता, पेट का भारीपन और पेट से सम्बन्धित अन्य रोगों को भी दूर करने में सहायक हैं। इसका प्रयोग पुरानी कब्ज और पेट में दर्द में भी किया जाता है।इसके प्रतिजैविकी गुण के कारण इसे दवाइयों में भी प्रयुक्त किया जाता है।