आज अधिकाँश समाजों द्वारा धार्मिक कार्यक्रम वह किये जाते हैं जिनमें 9 लगाकर 100 का धन्धा हो,नि: स्वार्थ भाव से किये जाने वाले कार्यक्रम तो किसी विरली समाज में ही देखने को मिलते हैं! चंदा को तो छोड़िए कुछ लोग तो बोलिओं के माध्यम से सफेद गिलट के मंगल कलश 100% चाँदी-चाँदी चिल्ला-चिल्लाकर आस्था की पीठ में छुरी खौंप देते हैं, इसमें मंच संचालक की भूमिका प्रमुख होती है!👉जरा विचार कीजिए जिस पवित्र मंच पर महाव्रती विराजमान हों और उसी धार्मिक मंच पर धन के लिए धोखाधड़ी होती हो तो फिर आस्था टूट जाती है और एकता छूट जाती है!!👉जिस कलश की नींंव ही “मायाचारी पर खड़ी हो वह मंगल कैसे करेगा है?” मंगल कलश चाहे मिट्टी का हो लेकिन सच्चाई तो होनी ही चाहिए!!