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Home›लेख-विचार›शॉर्टकट हमें दुखों केचक्रव्यूह में फंसाता है-डा.निर्मल जैन (जज)

शॉर्टकट हमें दुखों केचक्रव्यूह में फंसाता है-डा.निर्मल जैन (जज)

By पी.एम. जैन
March 10, 2022
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हम मंदिरों, मस्जिदों, चर्चों आदि सभी पूजा स्थलों में अपने आराध्य को पूजते हैं। सर्वत्र महापुरुषों के स्थूल शरीर के गुण-गान चलते हैं। किंतु उन महापुरुषों ने अपने जीवन में दृढ़तापूर्वक जिन कर्तव्यों का पालन किया, संसार को कर्तव्यनिष्ठा की जो अमूल्य निधि दी, उनकी तपती राह पर कोई बिरला ही चलता है। कर्तव्य को जीवन में अपनाकर उसका सत्कार-सम्मान करने से हम में से हर कोई हिचकिचाता है।

सच तो यह है कि जो कर्तव्यामृत पियेगा उत्थान उसका उसका ही होगा। रामायण में राम नहीं है, न गीता में कृष्ण बसते हैं। महावीर भी भगवती सूत्र में नहीं हैं। बाइबल में ईसा मसीह नहीं। ये सभी महापुरुष अपने-अपने कर्तव्य-मंदिर में हैं। भौतिक शरीर छोड़ने के बाद भी उसका कर्तव्यामृतपान उसे महापुरुष बना देगा।

लेकिन हम तो ऐसा सस्ता और सरल रास्ता खोजते हैं जिससे बिना कष्ट उठाए या दायित्व निभाए जीवन सुखी हो जाए। यही शॉर्टकट हमें दुखों के चक्रव्यूह में फंसाता है। होता यह है कि हम कर्तव्य पालन के मामूली कष्टों से घबराकर अपकृत्य की मौज-मस्ती की पगडंडी पकड़ लेते हैं। परिणाम यह होता है कि हम उस उस उजाड़ मार्ग में अकेले भटक जाते हैं। पग-पग पर दुख पाते हैं। लेकिन जैसे ही हम एक बार कर्तव्य पालन की पक्की सड़क पर चढ़ जाते हैं, फिर न भटकते हैं और न ही रास्ता भूलने का भय रहता है। सफलता के मील के पत्थर हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं और अंत में हम अपने लक्ष्य को पा लेते हैं।

जो संसार से पूर्णतया विरक्त हो चुके हैं उनकी बात छोड़ दे तो, हम सांसारिक प्राणियों में से कोई भी अभिमान से खाली नहीं है। धनवान को अपने धन वैभव का अहंकार है, रूपवान को अपने रूप पर गर्व है। जो अधिक जानता है उसे अपनी ज्ञानी होने का एहसास है। सत्ता पर बैठे हुए सत्ता मद में डूबे हुए हैं और जो दुष्ट प्रवृत्तियों में लिप्त हैं  वे उन्हीं को लेकर फूले नहीं समा रहे हैं। जो धर्म अहं को मुक्ति मार्ग की सबसे बड़ी रुकावट मानता रहा है। अब धार्मिक प्रक्रियाएँ करना ही अहंकार का सबसे बड़ा कारण बन रही  है।  जो सबका आसरा था इन दिनों पंथ, संत और ग्रंथों की भूल-भुलैया में बेआसरा होकर भटक रहा है ।

हमें अभिमान है  कि हम समुद्र चीरकर उसे पार कर लेते हैं। पृथ्वी को नापना सरल हो गया है। गगन में पक्षियों की तरह उड़कर कहां से कहां तक पहुंच जाते हैं। जल, थल, नभ सब पर अपनी विजय मुद्रा लगा दी। लेकिन यह विज्ञान और यह प्रगति हमें जीवन-संग्राम में अभी तक विजय नहीं दिला सकी। भले ही हमने दूर की वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया, किंतु हम निकटवर्ती चीजों को भूल गए हैं। हमें विश्व पटल पर हर देश के बारे में, उसकी भौगोलिक स्थिति, अर्थव्यवस्था के बारे में बहुत कुछ मालूम रहता है। लेकिन अगर कोई हमसे पूछे कि हमारे पड़ोस में या दो ब्लॉक छोड़कर लोग किस हाल में रहते हैं तो शायद हम नहीं बता पाएंगे।

 इसका कारण यह है कि हमारी दिलचस्पी उन जानकारियों में होती है जिनसे हमें आर्थिक लाभ मिलने वाला होता है। लेकिन हमारे आसपास क्या हो रहा है, यह जानने से हमें कोई आर्थिक लाभ नहीं होता। सो उनमें हमारी दिलचस्पी नहीं होती। हम भूल जाते हैं कि हमारा जीवन प्रत्यक्ष या परोक्ष, दूरवर्ती या निकटवर्ती प्राणियों से किसी न किसी रूप में संपर्क आता ही है। उनसे संबंध जुड़ा हुआ है। इसलिए उनके साथ साहचर्य और संबंध बनाए रखने के लिए हमें अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना और उनका पालन करना अनिवार्य है। जिसने कर्तव्य की ज्योति अपने जीवन में बुझने नहीं दी, वह वास्तव में मानव बन गया। जज (से.नि.) डॉ. निर्मल जैन

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