महावीर को जानने के लिए महावीर जैसा ही बनना होगा (महावीर जन्म कल्याणक)-डॉ.निर्मल जैन(जज)
तन-मन के शोधन के लिए व्रत, उपवास किए जाते हैं और अपनी सूक्ष्म क्षमताओं, निराशाओं को दूर हटाने एवं अपनी दिव्यता के संकेत को पाने के लिए पर्व, उत्सव मनाये जाते हैं। महापुरुषों के जन्म दिवस उन के द्वारा वांछनीय उमंगों, भावनाओं, आत्मविश्रांति व उन्नत ज्ञान का प्रचार-प्रसार हेतु मनाते हैं। विकारों से धूमिल आत्मा को चैतन्य करने हेतु तीर्थंकरों के जन्म कल्याणक महोत्सव मनाये जाते हैं।
जब महावीर इस धरा पर आए, उस काल में सामाजिक जीवन में आर्थिक विषमता, वर्गभेद, हिंसा, ग्लानि चरम पर थी। प्रभुता सम्पन्न वर्ग जन साधारण का शोषण और दुरुपयोग कर रहा था। सारा समाज अस्त-व्यस्त। नर-नारी, दास-दासियों के रूप में बिक रहे थे। । पशु अंध विश्वास की बलि चढ़ रहे थे। चारों ओर अधर्म और अज्ञान का अंधकार व्याप्त था। जनमानस की पीड़ा को देख महावीर सांसारिक सुख-सुविधाओं में न उलझ कर समाज में व्याप्त बुराइयों, भ्रांतियों, कुरीतियों को दूर करने के लिए सारे भोगोपभोग त्याग दिगम्बर रूप धारण कर निज-पर कल्याण हेतु जीवन के निर्मल लक्ष्य की ओर अग्रसर हो गये।
महावीर की देशना का शुभ दिन वीर शासन की स्थापना का दिन था। तीर्थंकर महावीर के उपदेश सरल, आडंबर और औपचारिकता से विरक्त थे। वहां न खंडन था, न मंडन। थी सत्य की एक सीधी पहुँच। था केवल आत्मा की अनंत शक्ति से साक्षात्कार का सीधा, सच्चा मोक्षमार्ग। महावीर ने जीवों को समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति पाने के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह पर स्वयं आचरण कर जनमानस की सोई हुई चेतना को जागृत किया।
महावीर आज नहीं हैं लेकिन वर्तमान विषम स्थिति से त्राण पाने का अगर कोई समाधान है तो महावीर के यही सूत्र हैं। इसलिए आज का महावीर जन्म कल्याणक बहुत कुछ कहता है। महावीर की देशना के अनुसार –
-मुझे मत जियो, मेरी तरह जिओ।
-सात्विक, शाकाहारी, नियम, संयम, सरलता से रहोगे तो अपेक्षाकृत महामारी का खतरा कम होगा।
-जो सिर्फ अपनी आवश्यकताओं तक सीमित है, शान-शौकत से दूर उसे लॉकडाउन में भी कोई तकलीफ नहीं।
-जो आडंबर, दिखावा नहीं करता तथा महावीर जिसके मन में है, आचरण में है, जो महावीर को आंखों से नहीं मन से वंदन करता है उसे कोई फर्क नहीं पड़ा कि मंदिर या तीर्थ दूर हैं या किन्ही कारण वश उनके के द्वार बंद हैं।
-महावीर के अनुसार जिसके पास अनीति से इकट्ठा किया हुआ परिग्रह नहीं है उसे किसी भी आर्थिक सुधारों, आर्थिक मंदी या किसी भी प्रकार की आर्थिक हलचलों से कोई फर्क नहीं पड़ा।
-जिसने अहंकार छोड़ा, अनुशासित रहा, शासक बनने के चेष्टा नहीं और जिसने यह जाना कि यह ब्रह्मांड उसका अकेले का नहीं सब का ही है। उस पर न काल का प्रभाव न वातावरण का प्रभाव, न कोई अभाव न तनाव।
-हर आत्मा स्वतंत्र है, समान है। जो स्वयं स्वतंत्र रह कर किन्हीं पर पराधीन नहीं है उसका उदाहरण है कि महामारी में भी उसे “दो गज की दूरी” काल में भी कोई परेशानी विशेष नहीं हुई।
-जीवित रहने के लिए बहुत थोड़ा चाहिए। प्रदर्शन के लिए संसार की संपूर्ण संपदा भी कम है। जिसने महावीर का यह सूत्र जाना वह तन मन से स्वस्थ बहुत सी व्यर्थ की उलझनों से दूर है।
यह महावीर जन्म कल्याणक बाहर के कृत्रिम प्रकाश को बुझा चेतना के दीप को आलोकित करने वाला है। अगर वास्तव में शाश्वत सुख पाना है तो याचक-वृत्ति छोड़कर पदार्थों की चाहत मिटानी होगी। महावीर को पाने के लिए महावीर जैसा ही बनना होगा। आश्चर्य है कि हम उन वीतरागी को उनके ही गुणों का बखान करते रहते हैं, अनुसरण नहीं करते। प्रक्रियाओं के कर्मकांड में फंसे हमने ऐसे शॉर्टकट खोज लिए हैं कि उन्हें बाहर देखने की आदत डाल ली है। जबकि वह तो हमारे भीतर है। वह मैं और तू में नहीं है। गिनतियों और रंगों में नहीं हैं, न सुर और ताल और विभिन्न भाव-भंगिमाओं से अवतरित होते हैं। वे वीतरागी तो अनुत्तरित और निष्प्रतिक्रियात्मक हैं। हमारी क्रियायें उन्हें लेशमात्र भी प्रभावित नहीं करतीं। वे तो संपूर्ण जीव मात्र से प्रेम में अंतर्निहित है।
हिंसा के बारूद के ढेर पर बैठे विश्व के लिए महावीर का जन्म-कल्याणक-महोत्सव हमें चेतनटा को जाग्रत करता है कि केवल महावीर का जयकारा बोलने तक ही सीमित न हो कर पुरुषार्थ भी करें। प्रतिकूलताओं से दबें नहीं, न उनके साथ समझौता करें और चित्त को व्यथित भी नहीं करें। हिंसा का समाधान हिंसा कदापि नहीं हो सकती। अपितु विचारें कि महावीर में जो चैतन्य रम रहा था वही चैतन्य मेरा आत्मा है। जैसे उन्होंने चुनौतियों का सामना कर विकारों, कुरीतियों पर विजय प्राप्त की वैसे ही हम भी क्रोध पर क्षमा और हिंसा पर अहिंसा का सम्यक मार्ग अपना कर पहले खुद जीना सीखें तभी औरों को जीने का अवसर देंगे। जज (से.नि.) डॉ. निर्मल जैन