हर साल देश दुनिया में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को भगवान महावीर के जन्मकल्याणक के रुप में मनाया जाता है। भगवान महावीर सत्य, अहिंसा और त्याग की जीती जागती मूर्ति थे। देखा जाये तो उनका पूरा जीवन मानवता की रक्षा हेतु अनुकरणीय है। 599 ईसवीं पूर्व बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज सिद्धार्थ के घर इस महापुरुष ने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को जन्म लिया इसी कारण इस दिन को महावीर जयंती के रुप में दुनिया भर में मनाया जाता है। इनकी माता का नाम त्रिशिला देवी था। उनके बचपन का नाम वर्धमान था।
मानवता का संदेश :
वे राज परिवार में पैदा हुए थे तो समझा जा सकता है कि धन-दौलत और ऐशो आराम के सारे साधन उन्हें सुलभ थे लेकिन उन्होंनें त्याग का रास्ता चुना और जगत में मानवता का संदेश दिया। युवावस्था में पहुंचते ही उन्होंनें ठाठ-बाट का अपना राजशी जीवन त्याग कर अपने जीवन का यथार्थ खोजने और दुनिया को मानवता का संदेश देने नंगे पैर निकल पड़े।
अंहिसा परमो धर्म :
वर्धमान ने कठोर तप कर अपनी इंद्रियों को जीत लिया जिससे उन्हें जिन कहा गया, विजेता कहा गया। उनका यह तप किसी पराक्रम से कम नहीं माना जाता इसी कारण उन्हें महावीर कहा गया ।
वैसे तो उनका पूरा जीवन ही एक संदेश है, अनुकरणीय है लेकिन उन्होंनें जो मूल मंत्र दिया वह अंहिसा परमो धर्म का है, जियो और जीने दो का है। उन्होंने कहा कि हमें किसी भी रुप में किसी भी स्थिति में कभी भी हिंसा का मार्ग नहीं अपनाना चाहिये। जब वे अहिंसा की बात करते हैं तो यह सिर्फ मनुष्यों तक सीमित नहीं बल्कि समस्त प्राणियों के बारे में हैं। जब अहिंसा की बात करते हैं तो यह सिर्फ शारीरिक हिंसा नहीं वरण मन, वचन और कर्म किसी भी रुप में की जाने वाली हिंसा की मनाही है।
जियो और जीने दो : आज विश्व हिंसा की ज्वाला में झुलस रहा है। ताजा उदाहरण यूक्रेन और रूस के मध्य चल रहा युद्ध है, दोनों देश लड़ रहे हैं जिसमें अपार जन- धन की हानि भी हो रही है। भगवान महावीर का प्रमुख सूत्र था -जियो और जीने दो। किसी भी रूप में हिंसा अशांति ही फैलाएगी। शांति के लिए अहिंसक जीवन शैली अत्यंत आवश्यक है। हिंसा की ज्वाला से जूझ रहे विश्व को भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित अहिंसा के शीतल जल से ही उसे राहत मिल सकती है।
कर्म के सिद्धांत का अनुपालन :
भगवान महावीर ने मानव शरीर में एक जाग्रत जीवात्मा के रूप में देवत्व प्राप्त किया। भगवान महावीर ने जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक दर्शन का प्रतिपादन किया। उन्होंने दृढ़ता से कर्म के सिद्धांत का अनुपालन करते हुए कहा कि कर्म, अर्थात हमारे कार्यों से ही हमारे भाग्य का निश्चय होता है। उनके उपदेशों में यह बताया गया है कि व्यक्ति जन्म, जीवन, पीड़ा, कष्ट तथा मृत्यु से मुक्ति पाते हुए कैसे मोक्ष अथवा निर्वाण प्राप्त करे।
भगवान महावीर ने धर्म को जटिल कर्मकांड से मुक्त करके सरल बनाया। उन्होंने सिखाया कि मानव जीवन सर्वोच्च है और जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए प्रेम के सार्वभौमिक सिद्धांत का उपदेश दिया कि सभी मनुष्य विभिन्न परिमाण, आकार और रूप के होते हुए भी समान हैं तथा वे समान रूप से प्रेम आर सम्मान के पात्र हैं।
सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति :
उन्होंने अपने जीवन काल में बहुत-सी सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति और समाज सुधार के लिए सम्यक आस्था, सम्यक ज्ञान और सम्यक आचरण के सिद्धांतों का प्रयोग किया। उन्होंने स्त्री दासता, महिलाओं के समान दर्जे और सामाजिक समता जैसे विषयों पर सामाजिक प्रगति की शुरुआत की।
अहिंसा से मानसिक आतंकवाद का खात्मा :
भगवान महावीर के समय सबसे बड़ी बुराई वैचारिक मतभेद की पनपी थी और आज भी दुनिया इसी कारण से संघर्ष कर रही है। इसके लिए महावीर ने स्याद्वाद और अनेकान्त का अमोघ सूत्र दिया, जिससे यह बुराई समाप्त हो सकती है। मानसिक आतंकवाद आज की बड़ी समस्या है, इसका समाधान भगवान महावीर की अहिंसा में निहित है। अहिंसा केवल उपदेशात्मक और शब्दात्मक नहीं है। उन्होंने उस अहिंसा को जीया और फिर अनुभव की वाणी में दुनिया को उपदेश दिया।
महामानव महावीर : आज पूरी दुनिया आतंकवाद, हिंसा, नफरत, धार्मिक कट्टरता में जकड़ी है,हमारे अपने मुल्क में धार्मिक संघर्ष चरम पर है ऐसे समय में महावीर का यह उपदेश राह दिखाता है-किसी के अस्तित्व को मत मिटाओ, शांतिपूर्वक जियो और दूसरों को भी जीने दो….! काश दुनिया इसे समझेगी।
दर्शन और उपेदश सार्वभौमिक :
भगवान महावीर के दर्शन और उपेदश का सार्वभौमिक सत्य आधुनिक विश्व के लिए भी उपयोगी हो गया है। उनकी शिक्षाओं में पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों का हृस, युद्ध और आतंकवाद के जरिए हिंसा, धार्मिक असहिष्णुता तथा गरीबों के आर्थिक शोषण जैसी समसामयिक समस्याओं के समाधान पाए जा सकते हैं।
हमारा जीवन धन्य हो जाए यदि हम भगवान महावीर के इस छोटे से उपदेश का ही सच्चे मन से पालन करने लगें कि संसार के सभी छोटे-बड़े जीव हमारी ही तरह हैं, हमारी आत्मा का ही स्वरूप हैं।
कुल मिलाकर भगवान महावीर के संदेश सिर्फ जैन धर्म के अनुयायियों ही नहीं बल्कि प्रत्येक मनुष्य में सदाचार और नैतिकता का संचार करने का सामर्थ्य रखते हैं बशर्तें हममें उनके दिखाए मार्ग पर चलने की क्षमता हो।
(आध्यात्मिक चिंतक व जैनदर्शन के अध्येता)
-ज्ञान कुसुम भवन
नेशनल कान्वेंट स्कूल के पास, नईबस्ती, गांधी नगर, ललितपुर 284403 उत्तर प्रदेश
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