रेवाड़ी में ऐतिहासिक रहा भगवान पार्श्वनाथ निर्वाण महोत्सव


प्रशममूर्ति आचार्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) परंपरा के प्रमुख संत परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के परम पावन सान्निध्य में जैन दर्शन के 23वें तीर्थंकर श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान के निर्वाण कल्याणक महोत्सव का भव्य आयोजन हरियाणा की धर्मनगरी रेवाड़ी में प्रथम बार ऐतिहासिक रूप से गुरुवार, दिनांक 4 अगस्त 2022 को श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन नया मन्दिर, पत्थर घटी में भक्ति-भाव के साथ किया गया| इस अवसर पर भगवान पार्श्वनाथ की मोक्षस्थली शाश्वत तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी स्थित स्वर्णभद्र कूट की आकर्षक अकृत्रिम रचना की गयी| श्री पोलियामल नरेंद्र कुमार जैन सपरिवार द्वारा श्री जी का प्रथम अभिषेक व मांगलिक मन्त्रों के साथ शान्तिधारा की गयी|

पं. मनीष जैन संजू (टीकमगढ़) एवं पं. राजेश जैन शास्त्री (रेवाड़ी) के निर्देशन में समस्त समाज ने भक्ति-भाव सहित श्री पार्श्वनाथ विधान व पूजन में सम्मिलित होकर पुण्यार्जन किया| श्री सुनील कुमार जैन एंड पार्टी (भोपाल) की सुमधुर संगीत लहरियों ने सभी को मंत्रमुग्ध किया| उत्साह से भरपूर भक्तों ने प्रभु की भक्ति करते हुए श्रीजी के चरणों में निर्वाण लाडू चढ़ाया। मुख्य लाडू समर्पित करने का सौभाग्य श्री पोलियामल नरेंद्र कुमार जैन सपरिवार एवं श्री सूरजभान जैन पंसारी सपरिवार को प्राप्त हुआ। इस अवसर पर 13 सौभाग्यशाली परिवारों द्वारा वेदी में भगवान के रजत सिंहासन विराजमान किए गए।

विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्य आचार्य श्री ने भगवान पार्श्वनाथ स्वामी के जीवन-चारित्र पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पिछले दस भवों से कमठ द्वारा पार्श्वनाथ जी पर उपसर्ग किया जा रहा था परन्तु कभी भी पार्श्वनाथ जी ने कमठ का प्रतिकार नहीं किया| सदैव दया और क्षमा की प्रतिमूर्ति की भाँति कर्मों की निर्जरा में संलग्न रहे| तीर्थंकर बनने वाले जीव को कोई भी उपसर्ग तिलतुष मात्र भी डिगा नहीं सकता| धरणेंद्र इन्द्र एवं पद्मावती देवी पार्श्वनाथ भगवान पर हो रहे उपसर्ग को दूर करने में मात्र निमित्त बने| पूर्व में किये गए कर्मों का हिसाब तो सभी जीवों को स्वयं ही करना पड़ता है चाहे वह तीर्थंकर बनने वाला जीव हो, कोई साधु हो या कोई सामान्य श्रावक अथवा कोई तिर्यंच ही क्यों न हो|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि भगवान पार्श्वनाथ जी को आज के दिन निर्वाण पद की प्राप्ति हुई जिसके उपलक्ष्य में आप सभी यहाँ निर्वाण लाडू अर्पित कर रहे हैं| परन्तु क्या कभी किसी ने यह चिंतन किया कि भगवान को निर्वाण की प्राप्ति हुई तो उससे हम क्या उपलब्धि होगी? हम क्यों ख़ुशी मना रहे हैं? हम क्यों लाडू चढ़ा रहे हैं? इन सब क्रियाओं से हमें क्या हासिल होगा? यदि यह सब क्रियाएं हमने मात्र परंपरा पूरी करने के लिए सम्पादित की हैं तो उससे कोई लाभ होने वाला नहीं है| जिस दिन हम स्वयं के कल्याण की भावना भाते हुए निर्वाण लाडू अर्पित करेंगे, उस दिन हमारा लाडू चढ़ाना सार्थक हो जायेगा और वह दिन हमारे जीवन में अनेक उपलब्धियां लेकर आएगा|
आचार्य श्री ने जैन समाज के भविष्य पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भगवान पार्श्वनाथ स्वामी की निर्वाण भूमि श्री सम्मेद शिखर जी व अन्य प्रमुख तीर्थों की वर्तमान में स्थिति काफी चिन्ताजनक है| आज यात्रियों द्वारा तीर्थों की स्वच्छता एवं पवित्रता को खंडित किया जा रहा है| यात्रा के दौरान खाद्य पदार्थों का प्रयोग तथा कूड़े को इधर-उधर फ़ैलाने का चलन बढ़ता जा रहा है जोकि सर्वथा गलत है| आज हमें अपने तीर्थों के संरक्षण एवं संवर्धन की ओर ध्यान देना होगा तभी हमारे शाश्वत तीर्थ सुरक्षित रह पाएंगे अन्यथा सभी एक-एक करके हमारे हाथों से छूट जाएंगे| कार्यक्रम को सफल बनाने में सर्वश्री पदम जैन (अध्यक्ष जैन समाज), अशोक जैन सर्राफ (अध्यक्ष नया मन्दिर), अजय जैन (कार्याध्यक्ष वर्षायोग समिति), राहुल जैन, सतीश जैन, श्रीमति शारदा जैन, आशा जैन आदि सभी पदाधिकारियों ने भरपूर सहयोग किया।