गाँधी टोपी उनके लिए राज मुकुट की तरह थी।*स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.श्री केशव शरण*
आज़ादी के बलिद़ान की पटकथ़ा उत्तर प्रदेश के मुऱाद़ाब़ाद जिले के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय श्री केशव शरण जैन के बिना अधूरी है। पुत्र और परिवार के कारण अगर सभी लोग घर में ही बैठे रहे तो देश आजाद कैसे होगा? स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री केशव शरण जैन जिन का 3 वर्ष का एकलौता पुत्र उस समय हॉस्पिटल में एडमिट था उसकी चिंता न करते हुये जब आजादी का आंदोलन चरम सीमा पर था और पुलिस की घेराबंदी बहुत बढ़ गयी तब पुलिस से नजर बचाते हुए दिनांक 17-09-1942 को मुरादाबाद कोतवाली के सामने “भारत माता की जय”, “अंग्रेजों भारत छोडो” बोल कर “तिरंगा” लहराते हुए खुद को गिरफ्तार करा दिया। पुलिस के उत्पीड़न से बचने के लिए कुंदरकी-मुऱाद़ाब़ाद रेलमार्ग पर, मछरय़ा रेलवे स्टेशन के प़ास कभी बाग में, कभी तालाब में कभी कई दिनों तक गन्ने के खेतों में छिपते हुए भूखे प्य़ासे रहकर देश की आज़ादी क़ा बिगुल बज़ाते रहे। कारावास के दौरान उनकी पुत्री का देहांत भी हुआ लेकिन उन्होने पैरोल लेने से इंकार कर दिया। सभी आंदोलनकारियों के साथ दिनांक 23-06-43 को कारागार से रिहा हुए।सन 1892 में जिला मुरादाबाद की तहसील बिलारी के गांव हरियाना में किसान के घर जन्मे स्वतंत्रता सेनानी स्व. श्री केशव शरण जैन, गाँधी जी से प्रभावित होकर भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए। अंग्रेजों के प्रति उनका आक्रोश इतना प्रबल था कि उन्होंने कक्षा 8 तक अपने पुत्र को अंग्रेजी विषय ही नहीं दिलवाया। गाँव में रहने वाला अंग्रेजों का चाटुकार, जमींदार जैन परिवार की उनसे और उनकी अंग्रेज विरोधी गतिविधियों से राजनीतिक रंजिश इतनी अधिक थी कि उनके पुत्र सहित पूरे परिवार की हत्या की सुपारी दे डाली। लेकिन जब हत्या करने वालों ने उनकी सहृदयता और गरीबों से हमदर्दी के चर्चे सुने तो खुद मिलने आये और उनके पैर छूकर चले गये। अपनी साफगोई के चलते उन्हें आसपास का पूरा इलाका लाट साहब कहकर पुकारता थ़ा। ऱाजनीतिक हल्के में उन्हें सभी छोटे और वरिष्ठ नेत़ा त़ाऊ जी कहकर सम्म़ान देते थे।
स्व. श्री केशव शरण जैन महावीर के अनन्य भक्त थे। महावीर के इस सूत्र कि सब जीव में समान आत्मा है, छोटा बड़ा जन्म से नही कर्म से होता है को चरितार्थ करते हुये सामाजिक जागृति और भेदभाव मिटाने के लिए दलित वर्ग को सार्वजनिक कुओं पर प्रवेश कराया। अपने घर दलित से भोजन बनवा कर खाया। वे सदैव खुद चरखे से सूत कात कर उससे बने वस्त्र ही पहनते थे। गांधी टोपी उनके लिए राजमुकुट की तरह थी।अनगिनत सेनानियों के निस्वार्थ संघर्ष और बलिदान का फल मिला। देश आजाद हुआ। आजादी के बाद स्व. श्री केशव शरण जैन ने अपनी देश-भक्ति के संघर्ष के बदले में कोई प्रतिफल/पेंशन लेना स्वीकार नहीं किया। जीवन के स्वर्णिम काल में देश की आजादी और समाज सेवा के लिए समर्पित होने के कारण उन्हे संयुक्त परिवार के व्यापार, संपत्ति से भी जो मिल गया उससे ही संतोष करना पड़ा। फिर भी अपनी सीमित आय से ही खुद गाँव में अकेले रह कर अपने पुत्र व पुत्री को पत्नी के साथ मुरादाबाद भेज कर उच्च शिक्षा दिलाई। साधनों की कमी होने पर भी जैसे स्वर्गीय श्री केशव सरन जैन ने अपने बच्चों को उच्च शिक्षित किया वैसे ही उनके पुत्र डॉ. निर्मल जैन (Retd.) जज, साहित्यकार, लेखक ने अपनी संतान को शिक्षित करने में अपने पिता जी का ही अनुसरण किया। स्व. श्री केशव शरण जैन के पौत्र गोल्ड मेडलिस्ट आर्किटेक्ट डॉ. मनोज जैन, पौत्री ममता एडवोकेट एवं छोटी पौत्री प्रीति, आर्किटेक्ट (U.S.) सभी अपने-अपने कार्यक्षेत्र में संतुष्टि के शिखर पर हैं। स्व. श्री केशव सरन जैन जिला बोर्ड मुरादाबाद के सदस्य और कुछ समय के लिए उपाध्यक्ष भी रहे। 23 अक्टूबर 1966 में उन्होंने इस नश्वर शरीर को त्याग दिया। उनकी मृत्यु पर आस-पास के निवासियों की भारी भीड़ के साथ तत्समय कांग्रेस के अनेक नेता, कई मंत्री सभी आँखों में नमी लिए मौजूद थे। आज भी क्षेत्र वासी उनके समाज और देश के प्रति समर्पण और निस्वार्थ त्याग के कारण उनका नाम आदर एवं श्रद्धा के साथ लेते हैं। उनकी जन्मस्थली में उनका स्मृति चिन्ह स्थापित है।