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Home›Uncategorized›अहिंसा की मिठाई, जुड़ाव की लक्ष्मी, सहिष्णुता के दीप(तीर्थंकर महावीर निर्वाण कल्याणक)-श्रीमती सरोज जैन

अहिंसा की मिठाई, जुड़ाव की लक्ष्मी, सहिष्णुता के दीप(तीर्थंकर महावीर निर्वाण कल्याणक)-श्रीमती सरोज जैन

By पी.एम. जैन
October 16, 2022
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दीपों का उत्सव दीपावली  हमारे दरवाजे पर एक नई उम्मीद, एक नई प्रेरणा लिए दस्तक दे रहा है। जिसमें तीर्थंकर महावीर के सूत्र समानता के ऐसे उजाले की कल्पना है जो सहज रूप में आखिरी पायदान पर खड़े आदमी के लिए उपलब्ध हो। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी/अमावस्या को स्वाति नक्षत्र में चौबीसवें तीर्थंकर महावीर का निर्वाण हुआ था। इसी दिन, रात्रि को शुभ-बेला में तीर्थंकर महावीर के प्रमुख शिष्य गणधर गौतम स्वामी को कैवल्य ज्ञान रूपी लक्ष्मी की प्राप्ति हुई थी।जैन धर्म में लक्ष्मी का अर्थ होता है निर्वाण और सरस्वती का अर्थ होता है केवलज्ञान। तीर्थंकर महावीर को मोक्ष-लक्ष्मी की प्राप्ति हुई और गणधर गौतम स्वामी को केवलज्ञान रूपी सरस्वती की। इसलिए दीपावली पर लक्ष्मी-सरस्वती का पूजन किया जाता है। लक्ष्मी पूजा के नाम पर रुपए-पैसों की पूजा जैन धर्म में स्वीकृत नहीं है। प्रातःकाल तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण उत्सव मनाते समय मुख्य रूप से लाडू का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं। क्योंकि लाडू का ना ही कोई प्रारंभ होता है न ही कोई अंत। अतएव इसे आत्मा जिसका भी कोई ओर-छोर नहीं है का प्रतीक माना जाता हैं।

इसी दिन श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी में घर-बाहर को दीपों से जगमगाते हैं। लेकिन मन की अयोध्या की कालिमा पर कोई नज़र नहीं। दीपों की  रौशनी में  राम के संबंधों का स्नेह, मर्यादा कहीं  नहीं दिखती।  अपने वैभव प्रदर्शन में हम तीर्थंकर महावीर की जीव-दया-करुणा का सूत्र भी भूल गए कि दिखावा, कर्मकांड की धुँध को चीर, भेद-भाव से दूरमहलों की जगमगाहट में से थोड़ी सी उजास से आस-पास के अंधेरे कोनों, गलियारों को भी रौशन किया जाए। तीर्थंकर महावीर के अनुसार जीवन के लिए धन अनिवार्यता है लेकिन धन को साधन-शुद्धि से ही अर्जित किया जाना चाहिए। तीर्थंकर महावीर के निर्वाणोत्सव पर बड़ी धूमधाम से उनकी पूजा करते है, गगनभेदी जयकार करते हैं। इसके साथ महावीर का यह संदेश भी याद रहे कि-आवश्यकताओं की पूर्ति से अधिक अर्जन और संग्रह दोनों ही  अनर्थ को निमंत्रण होगा। असीम आकांक्षाओं के लिए पूरी उम्र कमाते हैं फिर भी पूरा नहीं पड़ता। हम जितना भौतिक प्रगति के उजाले से घिरते जा रहे हैं उतना ही अजनबीपन के सुरमई अँधेरे के मोहपाश में बंध कर समृद्धि तलाश रहे हैं।  दीपक की लौ का सदैव ऊंचाई की ओर जाने का लक्ष्य ही प्रगति का आधार है। अहिंसा की मिठाई, जुड़ाव की लक्ष्मी, सहिष्णुता की फुलझड़ी से इस पावन पर्व पर सहयोग की भावना में निष्ठा का तेल, शुभकामनाएँ और खुशियों की बाती से प्रज्वलित  ज्योति द्वारा असमानता के अन्धकार का नाश करें। जितना धन रूपी लक्ष्मी के बारे में सोचते हैं उतना ही अपने आत्मीय संबंधों का भी ध्यान रखें। सोच अलग हो सकती है, पगडंडियाँ भी भिन्न हों पर सभी का लक्ष्य तो जीवन में व्याप्त संबंधों, संस्कारों  को लील रहे अंधेरे से लड़ना है।–श्रीमती सरोज जैनW/Oडाॅ निर्मल जैन *जज*(से.नि.)       

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