दिखाओ चाबुक तो झुक कर सलाम करते हैं, हम वो शेर हैं जो सर्कस में काम करते हैं।-डॉ. निर्मल जैन (जज)

यह बिल्कुल जरूरी नहीं कि जो अच्छा कार चालक हो वह हवाई जहाज भी उतनी ही कुशलता से उड़ायेगा। यह भी जरूरी नहीं के कोई अच्छा वैज्ञानिक अच्छा कुक भी हो। तब फिर हम यह क्यों नहीं समझते कि कि धनिक या धार्मिक व्यक्तित्व कुशल रणनीतिकार, राजनीतिज्ञ भी होंगे।यह जानते हुए भी हमने धन और धर्म को सर्वगुण संपन्न समझ अपनी सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण कार्य को उनके सुपुर्द कर आज जैसी स्थिति उत्पन्न कर दी। हमारा देश की जीडीपी में क्या योगदान है, हम कितना आयकर देते हैं, कितना दान देते हैं यह सब कुछ करने के बाद हमें कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हो जाते। हम धन का अर्जन करते हैं तो कर तो देना ही होगा इसमें किस बात का अभिमान? रोज रोना रोया जाता है के हमारे हैं सार्वजनिक क्षेत्र में ना तो अच्छे विद्यालय हैं, ना चिकित्सालय हैं, ना छात्रों के लिए छात्रावास हैं। तो हम जनोपयोगी संस्थाओं को बनाने में ध्यान न देकर अरचनात्मक कार्यों को अपना धन दे कर दानी बनने का व्यर्थ ही दंभ क्यों करते हैं । जब भी कहीं कोई चोरी, लूट होती है या कोई बाहर का आदमी अनाचार करता है तो सबसे पहले हम अपने रक्षक (गार्ड) से जवाब तलब करते हैं -कि तुम कहां थे, ऐसा क्यों हुआ? समुचित कारण न होने पर हम उनकी सुविधाओं को वापस ले लेते हैं या उन्हे बदल देते हैं। हमारे यहां हर तीसरे घर पर एक रक्षा करने वाली संस्था (गार्ड) के रूप में है। लेकिन क्या हमने पूछा कि हमने आपको हर तरह से मन सम्मान व शक्ति-संपन्न करके रक्षा के लिए नियुक्त किया था।आप के रहते ऐसा क्यों कर हुआ? नहीं पूछा न। क्योंकि उससे हमारे व्यक्तिगत ,आर्थिक संबंध प्रभावित हो जाते। जब व्यक्तिगत और आर्थिक हित सामने आते हैं तो वर्तमान की तरह समाज हित पर्दे के पीछे चला जाता है। श्री गिरनार जी मैं जब पहली बार कहीं कुछ अतिक्रमण का आभास हुआ तब हमारी उच्च आसन पर बैठकर माला डलवाती संस्थाएं कहां थी? उस समय उनसे क्यों नहीं बोला गया कि-माला छोड़ भाला लेकर पहुंचे? अभी भी पालीताणा जी, शिखरजी आदि क्षेत्रों की गरिमा धूमिल करने के प्रयास चल रहे हैं। ताजा-ताजा हस्तिनापुर और तीर्थधाम मंगलायतन में भी कुछ अवांछित तत्वों द्वारा घुसपैठ प्रारंभ हुई है। इतना सब कुछ होने पर भी क्यों नहीं चेतना जागृत हो रही? क्यों नहीं उस समय क्यों नहीं अहिंसा में से अ हटाया गया? धर्म क्षेत्र में तो धन की हथकड़ियां लगी हुई है। अब अगर सुरक्षा पर भी धन का साम्राज्य होगा तो वैसा ही होगा जैसा अभी हो रहा है। शिखरजी के प्रकरण को लेकर दिल्ली के श्री संजय जैन एवं रुचि जैन द्वारा भीषण सर्दी, कोहरा, कोरोना काल में अपना जीवन दाव पर लगा आमरण अनशन किया गया। आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस देखकर अपनी अकृतज्ञता पर रोना आया -कि जिसने इस चिंगारी को एक ज्वाला बना दिया वहीं कहीं सबसे पिछली पंक्ति में बैठा था। कौन आएगा फिर हमारी रक्षा करने ? धन और धर्म की कोमल हथेलियाँ न शस्त्र उठा सकती हैं न उनकी वाणी किसी का मुखर विरोध कर सकती है। न ही छप्पन भोग करने वाले आमरण अनशन पर बैठ सकते हैं। केवल संदेश डाल सकते हैं, प्रवचन कर सकते हैं -कि जागो वीर जागो! ऐसे जागरण नहीं होगा। जागरण होगा -जब हम सब कुछ आमूलचूल परिवर्तन करेंगे। जो सशक्त हैं, जिनमें सामर्थ्य है, जिनमें कुछ करने की लालसा है उनको शीर्ष पर स्थापित करेंगे, सम्मानित करेंगे। हमारे सामने अनुत्तरित और निष्क्रियात्मक तीर्थंकर नहीं हैं कि किसी के भी कहने को दोहराते रहें और वे सुनते रह हमें मोक्ष दे देंगे। हमारा सामना राजनीति से है, अपनी वाणी को मर्यादित रख, चर्चा नहीं चर्या से, प्रवचन नहीं आचरण से ठोस और सोच समझ कर प्रभावी कार्य-नीति अपनानी होगी।