प्यार के मार्ग में व्यापार नहीं -डॉ. निर्मल जैन(जज)
मंथर गति से चलती बैलगाड़ी के बैलों के गले में बजती हुई घंटियों की मधुर आवाज। अब यह सब कुछ पुराने जमाने की यादों में है। आजकल तो दिनों की यात्रा घंटों में और घंटों की यात्रा मिनटों में सिमट गई है। सुगम इतनी कि आने-जाने के लिए डबल रोड, यानी वन वे। दिन प्रतिदिन के आवागमन की तरह हमारी जीवन-यात्रा के भी दो मार्ग हैं, दो दृश्य और अदृश्य पक्ष हैं- व्यापार और प्यार। दोनों की दिशा एकदम विपरीत, लेकिन दोनों के बिना जीना दुरूह। दृश्य यानी कार्य व्यापार, जिस पर चल कर हम अपने जीवन-निर्वाह के लिए धन, संपत्ति, सुविधाएं अर्जित करते हैं। यह हमारा बाहरी रूप, व्यवहार, कर्म आदि दिखाता है।
दूसरा जो हमारा अदृश्य पक्ष है, वह हमारा आंतरिक जीवन है। उसमें हमारे विचार, रुचियां, इच्छाएं और भावनाएं आदि होती हैं। जिन्हें सिर्फ महसूस किया जाता है, वह दिखाई नहीं देता। इस मार्ग द्वारा हम प्यार के विसर्जन से परिवार, समाज, अपने परायों में सद्भाव बनाकर, सुख-दुःख बांटकर अपने जीवन के लेखे-जोखे को संतुलित रखते हैं। अंततः इसी प्यार की डोर से बंधे हम शाश्वत सुख को प्राप्त करते हैं। जीवन यात्रा में दुर्घटनाएं न हों, व्यापार और प्यार में टकराव न हो, संतुलन बना रहे, इसलिए व्यापार के मार्ग में प्यार नहीं करना चाहिए। यानी जाने वाली सड़क पर आना नहीं चाहिए और जहां प्यार है वहां तो व्यापार करना ही नहीं चाहिए। इस वन-वे आवागमन से प्यार, व्यापार दोनों ही बने रहते हैं। अगर प्यार में व्यापार हुआ तो प्यार समाप्त हो जाएगा और व्यापार में प्यार ज्यादा हो गया तो वह व्यापार को खा जाएगा। समस्याएं तब ही जन्म लेती है जब हम एक ही रास्ते पर प्यार और व्यापार, आना और जाना एक साथ करने लगते हैं। लेकिन न केवल व्यापार के सहारे जीवन चल सकता है और न केवल प्यार के सहारे ही। व्यापार और प्यार दोनों ही स्वीकार करने हैं। दोनों का ही समन्वय जीवन के लिए सुखकारक है।
प्यार और कारोबार दो अलग-अलग चीजें हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश प्रेम में हम भावनाओं का इस्तेमाल कर कारोबार कर लेते हैं और फिर प्रेम नहीं मिला इसकी शिकायत करते रहते हैं। व्यापार का नियम है कुछ लिया है तो लौटाना पड़ेगा, जबकि प्रेम कहता है जो दिया है गिनो मत बस देते रहो बिलकुल अपेक्षा मत रखना। व्यापार और प्यार आमने-सामने आ गए तो वे स्वयं के लिए हानिकारक तो बनेंगे ही, दूसरों के प्रति भी संकट उत्पन्न करेंगे। रिश्तों को हिसाब-किताब से मुक्त करने का एक ही उपाय है कि हम इन रिश्तों का आदर करते हुए उन्हें व्यापारिक गतिविधियों से अलग रखें। ऐसा होने पर ही ये रिश्ते प्रेम की सुगंध से सुवासित होंगे। अगर केवल व्यापार ही बढ़ता रहा, भौतिक शक्ति के साथ-साथ आत्मिक, नैतिक शक्ति का विकास नहीं हुआ तो मनुष्य का विनाश निश्चित है। इन दिनों तो हम केवल भौतिक विकास ही कर रहे हैं। हम सिर्फ बाह्य रूप से प्रकाशित हो रहे हैं जबकि हमारा आंतरिक प्रकाश, नैतिक एवं आत्मिक बल क्षीण होता जा रहा है।