नया साल! सबके अपने-अपने मिथक। फिर भी दुनिया भर में जाति और संस्कृति के भेदभाव के बावजूद सभी लोग नए साल को बड़े हर्सोल्लास के साथ मनाते हैं। हिंदू, चैत्र नवरात्रि से नव वर्ष मानते हैं। पंजाब में बैसाखी को। रोमन शासक जूलियस सीजर ने 1 जनवरी के दिन नए साल की शुरुआत की। जैन समाज महावीर स्वामी के निर्वाण कल्याणक पर्व दीपावली के अगले दिन “वीर निर्वाण संवत “के प्रारंभ से नववर्ष मनाता है। निर्वाण प्राप्ति बाद प्रभु महावीर तो हमारी दृष्टि और श्रवण-गोचरता से बहुत दूर हो गए। उनके जीवन-आचरण पर अनुगमन ही हमारे कष्टों के निवारण का एक मात्र साधन रह गया। अत: इस दिन बड़े उत्साह और उल्ल्हास पूर्वक उनके उनके जीवन-आचरण को फिर से आत्म-सात कर अपने जीवन में उतारने को संकल्पित होते हैं। नववर्ष उत्सव मनाने के उत्साह के अतिरेक में जब कुछ निश्चित नहीं कर सका तो मैंने नए साल से ही पूछ लिया। हे नव वर्ष -2024 ! तुम आ रहे हो। तुम्हारी संख्या का जोड़ 8 बनता है। तो क्या तुम मेरे अष्ट-कर्म दहन करने में सहायक बनोगे या मेरी अष्ट-वक्रता में और वृद्धि होगी? समस्त शंकाओं के बीच मुझे आशा है अवश्य ही हम सब के लिए शुभ-शुभ नए संदेशे लेकर आ रहे हो? मौसम बहुत सर्द है, लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा हमारी खुदगर्जी की बर्फीली हवाओं से जीवन ठिठुर रहा है। लोभ के आवरण से सद्भावों की झील जमने लगी है । हमारे अंदर-बाहर दोनों चक्षुओं को मोह की कालिमा ने ढक दिया है। सोई हुई संवेदना को जागृत करने के लिए प्रीत-नीति की नर्म धूप के स्नेहिल गुदगुदे, कोमल बिछोने जरूर लाना। अपनी स्वार्थपूर्ति के अलावा सबसे अबोला बना रहता है, संवादों की कल-कल बहती नदिया के ऊपर मतभेदों के बांध बना दिये हैं, रिश्ते-नाते बस उपयोगिता भर तक सीमित हो कर रह गए हैं। नए साल ! तुम कषायों की ठंड से जमे इन संबंधों को अपने-पन की सहिष्णुता और सद्भावना की ऊष्मा से तरल कर देना। नया साल बोला –मैं तो संघर्ष हूं, नव वर्ष हूं। जैसे तुम्हारे कर्म होंगे, वैसे ही तो फल लाऊँगा। अच्छा-बुरा, सुख और दुख दोनों तुम्हारी झोली में भर जाऊंगा। लेकिन तुम डर क्यों रहे हो, यह सहमापन और घबराहट कैसी? क्या बीते वर्ष में ऐसा कुछ कर बैठे हो जिसका भय सता रहा है, आत्मा कचोट रही है? चिंता न करो। अब नई उम्मीद पर कायम रहो, जो कुछ अप्रिय किया उसका पश्चाताप करो, पुर्नावृत्ति न हो सावधानी रखना । मैं नए-नए सपने दिखाऊंगा, सारी विपदा हर लुंगा और जो भी मांगोगे तुम्हारे पुरुषार्थ के प्रतिफल में सब कुछ दे जाऊंगा। किसी आशीर्वाद या चमत्कार के भरोसे न रह कर बस तुम काम, क्रोध, लोभ, और दंभ के झूठे चटकारे मत भरना, न कर्मकांड और आडंबर में फंसना। अपने-अपने का राग छोड़कर जरा सा औरों का भी चिंतन करना। मन में यह संकल्प रखना कि तुमसे किसी का उत्पीड़न न हो, किसी का सम्मान न कर सको तो अपमान, निरादर भी ना करो। अगर किसी का भाग्य न लिख न सको तो दुख दर्द अवश्य मिटाते रहना। मैं नया साल हूं। मैं तो पूरे साल में ऐसा ही रहूंगा और तुम जो “निर्मल” हो तो अंदर बाहर से “निर्मल” बनकर ही रहना। बीते हुए समय को लेकर दुखी नहीं होना। जो बीत गया उसके बारे में सोचने की अपेक्षा आने वाले अवसरों का स्वागत करना और उनके जरिए जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश करना। मुझे एक नई शुरूआत के उत्सव की तरह उमंग पूर्वक मनाना। जैसे मैं सेकेंड, मिनट, घंटा, महीने और साल के रूप में बढ़ता ही रहता हूँ कहीं, कभी ठहरता नहीं। तुम भी हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत रहना । पुराने साल में तुमने जो भी किया, सीखा, सफल या असफल हुए उससे सीख लेकर, एक नई आशा और प्रेरणा के साथ अपने लक्ष्य को पाने के लिए अपनी सारी ऊर्जा की आहुति देते रहना । सिर्फ लेना ही नहीं देने की भी सोचना, अगर कुछ देने की सामर्थ्य न हो तो किसी जरूरतमंद को वक़्त जरूर देना। रूठे हुओं को मनाना, प्यार करना, बिन मतलब भी मिलना, बात करना। हंसना-हंसाना, किसी की तकलीफ में नजदीक जाकर बैठ जाना, उसे सांत्वना देना। उसकी पीड़ा बांटने हेतु महावीर के संदेश “परस्परोपग्रहों जीवानाम”और आंतरिक पर्यावरण के साथ बाह्य पर्यावरण की रक्षा में “लेश्या” सूत्र को विस्मृत न करना। नववर्ष मंगलमय हो।