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संत शिरोमणि परम पूज्य आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज के चरणों में भावभीनी विनियांजलि- डा.निर्मल जैन “जज”
संत शिरोमणि परम पूज्य आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज के चरणों में भावभीनी विनियांजलि- डा.निर्मल जैन “जज”
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पी.एम. जैन
February 25, 2024
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संत शिरोमणि पूज्य आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी,
पवित्र,पावन,निर्मल आत्मा के चरणों में भावभीनी
विनियांजलि।
जिस वाणी को सुनने के लिए कान लालायित रहते थे आज उनके ही लिए कुछ कहने के लिए शब्द भी असमंजस में हैं।-डॉ निर्मल जैन (से.नि. जज)
चुक जायेगी भाषा सारी शब्दकोष सब रीत जायेंगे,
एक जन्म क्या कई जन्म भी मुझ निर्मल के बीत जाएंगे,
फिर भी पूरा हो न सकेगा हे गुरुवर! गुणगान आपका।
निर्मल की नन्ही सी कलम प्रभु! है विराट व्यक्तित्व आपका।
मूक हुई वाणी, घर-घर में होगी मुखर मूकमाटी,
गहन अध्येता जिनदर्शन के अमिट अजेय अस्तित्व आपका।
सारे सागर खारी होते प्राणी प्यासा रह जाता है,
गंगा, जमुना का जल भी मिल कर खारी हो जाता है।
देख आपको जग ने जाना कुछ सागर मीठे भी होते,
अपनी एक लहर से ही मन की कड़बाहट धो देते।
पूर्ण समर्पित रत्न-त्रय को पूरे ज्ञान- दिवाकर थे ,
अमृतजल से छलक रहे वो सागर विद्या सागर थे ।
ज्ञान श्रेष्ठ, आचार श्रेष्ठ था सहज शांत-वृति पाई,
मिला श्रेष्ठ पांडित्य न फिर भी अहंकार की परछांई।
क्रोध तरसता था आने को माया दूर खड़ी सकुचाती,
वैमनस्य, हिंसा की धारा तुम समीप आते रुक जाती।
दीपक भी सूरज बन जाता मन में धार स्व-पर कल्याण,
ऐसे ही तुम थे तो मानव पर दिखते पूरे भगवान।
नमोस्तु भगवन
कोई तुम्हे कहता पैग़म्बर कितनों के तुम शंकर हो, किसी को दिखती छबि मसीह की अपने तो तीर्थंकर हो।
नमोस्तु भगवन
डॉ निर्मल जैन (जज) अध्यक्ष जैन समाज सरिता विहार नई दिल्ली
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