दृष्टिकोण को समझ लें तो न कोई आग्रह न विग्रह डॉ निर्मल जैन (से.नि.न्यायाधीश)

दृष्टिकोण को समझ लें तो न कोई आग्रह न विग्रह
डॉ निर्मल जैन (से.नि.न्यायाधीश)
एक सेवक अपने मालिक के पास आकर बोला -मालिक मैं अब आपकी सेवा और नहीं कर सकूँगा घर जा रहा हूँ। मालिक ने कहा जैसी तुम्हारी मर्जी, पर एक बात सुनो तुम जा रहे हो तो बाकी बची तनख्वाह की एवज में यह ऊंट ले जाओ। क्योंकि इस ऊंट के देखभाल तुम ही करते थे। सेवक ने कहा स्वामी मैं पहले ऊंट को अच्छी तरह देख लूँ फिर बात करूंगा। मालिक बोले ऊंट का क्या देखोगे? सालों से तुम उसकी देखभाल करते आ रहे हो। सेवक ने कहा इतने दिन तो मैंने सेवा की दृष्टि से देखा था और अब खरीदने की दृष्टि से देखुंगा कि यह सौदा मेरे लिए कितना नफे नुकसान का होगा। दृष्टियां हर परिस्थिति में अलग-अलग रूप धरती रहती हैं। किसी वस्तु या पदार्थ को सदा एक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता।
पिता ने छोटे पुत्र की प्रशंसा कर दी बड़ा पुत्र नाराज हो गया। बोला, पिताजी छोटे की ही प्रशंसा करते हैं मेरी नहीं। यह पक्षपात है। पिता ने कहा -तू मेरी दृष्टि को नहीं समझ रहा है। तू तो समझदार है, अच्छा काम कर रहा है। यह अभी उद्दंड है। इसको प्रशंसा करके ही आगे बढ़ाना है। तिरस्कार करके उसके आगे नहीं ला सकते। कोई छोटा बच्चा अच्छा काम करके आता है तो पीठ ठोक कर शाबासी देते हैं अगर वही काम बड़ा आदमी करके आएगा तो ऐसा नहीं करते। हर व्यवहार में एक दृष्टि है, हर व्यवहार के पीछे एक दृष्टिकोण है। हम दृष्टि को समझने का प्रयत्न करें और दृष्टिकोण को समझ लें तो न कोई आग्रह होगा न विग्रह रहेगा।
आइंस्टीन से उनकी पत्नी बोली कि आपने जो नौकर रखा है बहुत खराब है, ढंग से कोई काम नहीं करता, जवाब देता है। आइंस्टीन ने कहा तुम ठीक कह रही हो। आइंस्टीन ने नौकर से इस शिकायत के बारे में पूछा तब उसने कहा साहिब मैडम ही ऐसी हैं, मैं क्या करूं। बात-बात पर गुस्सा हो जाती हैं, उल्टा-सीधा बोल जाती हैं। आइंस्टीन ने कहा ठीक है। पत्नी बोली तुम कैसे हो जी। मैं जो कहती हूँ वो भी ठीक है, नौकर भी ठीक है। आइंस्टीन ने पत्नी को समझाया यह सारी गलतफहमियां एक दूसरे के नजरिये को न समझने के कारण हैं। अगर हम यह जान लें जो भी कुछ कहा है उसके पीछे उसकी अपनी क्या सोच है तो स्थिति साफ हो जाए। किस दृष्टिकोण से कह रहा है उसे न समझने के कारण ही छोटी-छोटी बात बड़ी बन कर गंभीर विवाद का कारण बन जाती है।
कार स्वामी ने ड्राइवर से कहा तुम सच-सच बताओ कि तुमने अब तक कितना पेट्रोल चुराया है। मैं कुछ नहीं कहूंगा, कोई दंड भी नहीं होगा। ड्राईवर ने सर झुका कर उत्तर दिया -साहब जब इनकम टैक्स ऑफिसर आते हैं तो आप कितना सच बोलते हैं? मुझे यह बताओ फिर मैं आपकी बात का उत्तर दुंगा। उपरोक्त सारे संदर्भ इसलिए कि हर क्षेत्र में हमारी वर्तमान की सारी अस्तव्यस्तता की समस्या यही है कि जब हम अपनी ही दृष्टि की बात को समग्र मान लेते हैं तो तथ्यों का पूर्ण प्रकटीकरण नहीं हो पाता, गलतफहमियों से घिर जाते हैं। श्रद्धा और आस्था को लेकर भी हमारा यही एकांगी सोच, दृष्टिकोण रहता है। जितने ग्रंथ हैं, उनके जितने भी टीकाकार हैं, जितनी पुस्तक हैं, जितना साहित्य है उसमें नाना प्रकार की बातें लिखी हैं। जिनमें कभी-कभी परस्पर विरोधाभास भी झलकता है। प्रश्न उठता है हम किसको मानें, किसको न माने। जब हम अपने एकतरफा दृष्टिकोण से किसी एक बात को पकड़ कर उसे ही आग्रह का रूप दे देते हैं तो वो एकांगी दृष्टिकोण ही संपूर्ण नहीं होता है। हमारा आग्रह, विग्रह बन कर अलगाव और बिखराव उत्पन्न कर देता है। जज (से.नि.) डॉ. निर्मल जैन