इंटरनेट की मंडी़ में सब कुछ बिकता है
“बिना खोट का पशु तो घर के खूँटा पर ही बिक जाता है”- पी.एम.जैन
नई दिल्ली -: आज के दौर में इंटरनेट ने देश को इतना डिजिटल बना दिया कि दफ्तरों से लेकर सब्जी मंडी,अनाज मंडी, पशु मंडी़ अर्थात सभी व्यापारिक मंडी इंटरनेट मंडी से जुड़ी हैं | व्यापारियों का इंटरनेट मंडी़ से जुड़े रहने का मुख्य कारण व्यापार वृद्धि है ! जिसके अन्तर्गत दुकानदारी अधिक हो,लाभ अधिक हो, मार्केट वैल्यू में तरक्की इत्यादि जैसे अनेक पहलू हैं| इंटरनेट संसारिक व्यवस्था के लिए बहुत ही फायदेमंद है| लेकिन …..
इंटरनेट पर “पशु मंड़ी” के विज्ञापन देखकर पशु खरीदना हितकारी नही है क्योंकि पशु की खासियत अर्थात गुणवत्ता अपनी नजरों के सामने हाथ फेरने और दूध निकालने पर ही पता चलती है | पशु मेला में अधिकाँश वही पशु बिक्री के लिए जाते हैं जिनमें कोई खोट होता है | “बिना खोट का पशु तो घर के खूँटा पर ही बिक जाता हैं” उसकी खूबियों की चर्चा तो नगर-नगर, शहर-शहर में स्वत: ही फैल जाती है | जैसे- मनुष्य जाति में अच्छे ख़ानदान और सभ्यता पूर्ण परिवार की बहू-बेटी की चर्चा कहीं ना कहीं, किसी ना किसी के मुखार बिंदु से सुनने को मिल ही जाती है| ……उसी भाँति
आजकल इंटरनेट पर साधु बाजार भी मार्केट वैल्यू के चक्कर में अपनी चरम सीमा पर है जबकि इस बाजार का, नाम -दाम जैसी “चंचला लक्ष्मी” से कुछ भी लेना-देना नहीं है|
संसार से विरक्त व्यक्ति(साधु) जिसने स्वयं की आत्मा के कल्याण के वास्ते घर-परिवार, जमीन-व्यापार अर्थात सब कुछ न्यौछावर कर दिया उसका संसारिक और सामाजिक झंझटों में क्या उलझना ! साधु-महात्माओं का संसार से केवल इतना ही मतलब है कि “आत्मज्ञान प्राप्त होने के उपरान्त वह स्वयं के कल्याण के साथ -साथ दूसरों का भी कल्याण करें अर्थात स्व-पर का कल्याण करें| एक सच्चे और वास्तविक साधु-महात्माओं की वास्तविक पहचान तो यही है, ऐसे साधु-महात्माओं को स्वयं के प्रचार -प्रसार और विज्ञापन इत्यादि के लिए इंटरनेट जैसी मंड़ी व बाजारों की जरूरत नहीं पड़ती वह तो चारों तरफ स्वत: ही पूज्यनीय हो जाते हैं |