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Home›लेख-विचार›धर्मक्षेत्र में कुख्यात नशा- पी.एम.जैन

धर्मक्षेत्र में कुख्यात नशा- पी.एम.जैन

By पी.एम. जैन
October 17, 2018
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धार्मिक क्राँतिकारी अर्थात वैरागी के हाथों में इन्टरनेट सुसज्जित मोबाइल और चिलम से क्या तात्पर्य है? क्या मोबाइल और चिलम से उदरपूर्ति के अतिरिक्त समाज में धर्मक्राँन्ति का पाठ पढाया जा सकता है?आज अधिकाँश देखने को मिलता है कि धर्मक्षेत्र में भी इंटरनेट सुसज्जित मोबाइल का नशा चिलम के नशे से कुछ  कम नहीं है | श्वाशत,बह्मचर्य, शील,अपरिग्रह, शास्त्र व कुशास्त्र  जैसी बातों पर बल देने  वाले धार्मिक क्राँतिकारी अर्थात् धर्म का बिगुल  फूँकने वाले धर्मात्मा भी इस मिश्रित शास्त्र की गिरफ्त में आने लगे हैं, जिसके कारण धार्मिक आस्था में गिरावट दिन-प्रतिदिन बढोतरी पर है|

संसारिक वृद्धि व तरक्क़ी की दिशा में इंटरनेट ठीक मालूम पड़ता है लेकिन जिन पूज्यों ने मोक्षमार्ग की राह पकड़ ली है उनके हाथों में इंटरनेट सुसज्जित मोबाइल फोन देखकर व्यक्ति के मन में एक अजीब सा भाव उत्पन्न होता है,क्योंकि मोक्षमार्ग में इन्टरनेट काम नहीं करता है! यह सुविधा तो संसार तक ही सीमित है |
वर्तमान में दृष्टि दौड़ाऐं तो इंटरनेट एक ऐसा होटल है जिस पर शाकाहारी और मांसाहारी (शास्त्र-कुशास्त्र)दोनों पकवान मिलते हैं जबकि मोक्षमार्ग जैसी साधना में मांसाहार (कुशास्त्र) का सर्वथा निषेध है| साथ ही साथ इंटरनेट के वास्ते टचफोन और साधारण फोन की कीमतों में उतना ही फर्क मिलता है  जितना कि एक तन्दुरुस्त बकरे और एक मरियल बकरे की कीमतों में होता है लेकिन अधिकाँश तौर पर धार्मिक क्राँतिकारियों के पास तन्दुरुस्त बकरे की भाँति ही मोबाइल फोन देखने को मिलेंगे जो कि सर्वथा अनुचित हैं|
धर्मक्षेत्र के धार्मिक चोले के अन्तर्गत  इस इंटरनेट सुसज्जित मोबाइल जैसे मिश्रित शास्त्र को पास रखना और कुशास्त्र को पास रखना एक जैसा ही मालूम पड़ता है |
इंटरनेट सुसज्जित मोबाइल के सान्निध्य में धर्म क्राँति की बाते अब किस खेत में चली गयीं जब धर्मात्मा कहते थे कि *”जैसा सान्निध्य होगा वैसा साधक होगा” *”संगत का असर बेअसर नहीं होता है” *”तुक्मतासीरे सौबते असर”* जैसी कटुसत्य कहावतें अब क्या इंटरनेट सुसज्जित मोबाइल व लैपटॉप के सान्निध्य में निराधार और बेअसर हो गयीं हैं | जोकि देश की विद्वत्परिषदों व सशक्त समाजों के लिए एक विचारणीय विषय है |
आज इंटरनेट सुसज्जित मोबाइल की आदत का असर एक गृहस्थ अर्थात संसारी व्यक्ति भी भलीभाँति समझने लगा है और स्वयं की संतानों के उज्ज्वल भविष्य को लेकर  चिंतित होने लगा है लेकिन समाज में कुछ मोक्षमार्गी एवं संस्कार प्रदाता पूज्यवर इस मिश्रितशास्त्र से स्वयं भी अछूते नहीं रह पा रहे हैं|जिस धर्म में समाज को त्याग ही त्याग और चारित्रचक्रवर्ती बनने की कथा सुनाई व समझायी जाती हो, उस समाज के धर्मक्षेत्र में इन्टरनेट सुसज्जित मोबाइल, लैपटॉप एक चिंतनीय विषय है जो वर्तमान या भविष्य में समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकता है| अगर स्वधर्म की फसल को सुरक्षित रखना है तो फसलहित में इस नशे जैसी घासफूँस की नराई-गुड़ाई करने से हिचकना नहीं चाहिए |
अत: धर्महानि और समाज की बदनामी को रोकना है तो देश की सशक्त समाजों को “नरक-निन्दा” जैसे भय को त्यागकर और धर्म के प्रति कर्तव्य परायणता के मद्देनजर इस कुख्यात नशा के उपभोक्ताओं पर नजर रखना अत्यन्त आवश्यक है | पी. एम. जैन (ज्योतिष विचारक) दिल्ली, मो. 9718544977,98185449773km
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