“भदुआ और ददुआ के दिल की बात” धर्म के नाम पर हिंसा


1-अरे भदुआ देखले पंचमै काल को असर अब तौ जैनिन की परम्परा में यूँ असरदार होबन लागो है कि “कछूु क्षुल्लक-क्षुल्लिका छुट्टा वाहनन में यूँ ही विराजमान हुईकै घूमत फिरत हैं”?
2-ददुआ तू बारम्बार चौ भूल जात है कि पंचमै काल में “बाप बडौ न भईया सबसे बडौ रूपईया” कूँ याद रखबै कर | अरे धरम के खिलाफ बैई क्षुल्लक-क्षल्लिका वाहनन में घूमत फिरत हैं जो आतमा के कल्यान में नाहिं बल्कि नाम दाम और धाम के चुँगुल मैं बुरी तरहतै फँस गयें हैं |
1-अरे भदुआ कमतै- कमतै अरम्भ हिंसा के त्यागिन कूँ यै तो सोचनो विचारनो चहिऐं कि “दया धरम को मूल” है | ददुआ जू मूल कहा होबत है? अरे सासुके ! भदुआ तौऐ कलकूँ बताओ तो थो कि मूल जड कूँ कहवैत हैं| देख वाहनन तै कितनी घनी हिंसा होबत है |अब तू बतादै मौऐ कि जू “अहिंसा व्रत” को किततै पालन हौई रऔ है, जू कैसी हिंसामई धरम प्रभावना हौई रई है |
2-ददुआ तू ठीक कहबत है लेकिन तौऐ जाकौ मैऊँ मूल कारन बतादूँ कै समाज कुछ अधकचरे धनाढ्य और कुछ चार पोथी पत्रा पढकै पईसा कमावन के काजै नये नये पंडित पैदा है गऐं है जो धरम के मामलैन में कुछ जानत फानत तौ है नाहि लेकिन तानत पूरी तरहतै हैं और कछू क्षुल्लक-क्षल्लिका हैं उनकौ तौ एक ही मकसद है कि “बूढो मरै या जुआन इनकूँ हत्यान तै काम”|
1-अरे भदुआ तू भूल गयौ काह कि चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज को पक्को हुकुम थो कि 8वीं प्रतिमाधारी सदैव पईयाँ पईयाँ हीं विहार करैगे उननै तो बैलन की गाड़ीन मै यूँ विहार न करबै को हुकुम दियो थो | देख भदुआ तू ही बतादै कि वाहनन के पहियन के नीचे कितनैऊ जीव मर जाबत है फिर ईर्या समिति कहातै रही|
2-ददुआ प. पू. क्षुल्लक वर्णी जी महाराज की चर्या हूँ बहुतई महान कबिलै थी महाराज कहैबत थै कि धर्म प्रभावना प्रवचन से ज्यदा आचरनतै ही प्रभावित हौबत है लेकिन आज कछू क्षुल्लक-क्षुल्लिका जनता कूँ तो जैन धरम के पाँच मूल बताबत हैं जिनमें अहिंसा हू सामिल है और खुद वाहनन में मौजतै घूमत फिरत हैं | “जागो और सिध्दाँत को पहचानो “|