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Home›समाचार›आचार्य श्री निर्मलसागरजी का साहसिक निर्णय

आचार्य श्री निर्मलसागरजी का साहसिक निर्णय

By पी.एम. जैन
January 22, 2019
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नई दिल्ली -:22जनवरी!! उपाध्याय नयनसागर जी प्रकरण पर उनके मान्यगुरु गिरनारगौरव आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज ने जो प्रायश्चित्त दिया है वह स्वागत योग्य है। खास तौर से वर्तमान परिस्थितियों में जब शिथिलाचार/कदाचार के दोषी पाये जाने पर भी दोषी मुनि पूर्ववत् विहार करते और पुजते रहते हैं। कहीं यदि समाज ने कपड़े भी पहना दिये तो अगले नगर में वे पुनः मुनि बन जाते हैं, ऐसी स्थितियों में यह व्यवस्था एक नजीर बनेगी।
आचार्यश्री ने वाट्सएप, समाचारपत्र, वीडियो तथा चंडीगढ़ से गिरनार तक डोली और व्हीलचेयर से हुई यात के कारण उपाध्याय श्री नयनसागर जी के लोकापवाद के लिए प्रायश्चित्त विधान और विद्वानों के मन्तव्यानुसार अपनी छह सूत्रीय दण्डविधि में निम्नांकित आदेश दिये –
      1)  पाँच वर्ष की मुनि दीक्षा का छेद अर्थात् मुनिदीक्षा में पाँच वर्ष की कमी तथा फिलहाल उपाध्याय पद की वापिसी ।
   2)  संघ के अतिरिक्त शेष श्रावकों से तीन माह तक सम्पर्क वार्तालाप का निषेध।
3)  एक वर्ष में 24 उपवास रूप तप प्रायश्चित्त।
4)  324 श्वासोच्छ्वास समय वाला एक वर्ष तक प्रतिदिन मानसिक जाप।
5)  गिरनार जी की 22 यात्राएँ ।
6)  जहाँ से वायरल वीडियो सम्बन्धित है, उस क्षेत्र में तीन वर्ष तक प्रवेश निषेध।
आचार्य निर्मलसागर जी ने ब्र. सुमत भैयाजी के माध्यम से 27 गणमान्य विद्वानों से सम्पर्क कर उनके मन्तव्य लिये, अन्य मुनिसंघों से भी प्रायश्चित्त विधान मंगवाकर उनका अध्ययन किया, समस्त परिस्थितियों का आकलन किया और 22 जनवरी 2019 के इस कार्यक्रम के साक्षी बनने तथा अपना साक्षात् मंतव्य प्रकट करने हेतु 13 विद्वानों व 4 अन्य संस्थाओं के पदाधिकारियों को आमंत्रित किया था, जिनमें से तीन विद्वान् ही वहां पहुचने का साहस कर पाये, वे तीनों प्रणम्य हैं। जहां पहले ऐसे प्रकरणों में विद्वानों का प्रतिनिधिमंडल स्वयं जाता था, यहाँ तो आमंत्रित किया गया था फिर भी लोग पहुँचने का साहस नहीं जुटा पाये, ताकि बाद में जैसा अवसर मिले वैसी अपने अनुकूल सुविधाजनक टिप्पणी दे सकें। आचार्य निर्मलसागर जी महाराज की इस संदर्भ में प्रशंसा करनी होगी कि उनके मानित शिष्य भी उनके नियन्त्रण और आज्ञा में हैं। अन्यथा कई संघों के त्यागी अपने गुरु के नियंत्रण में नहीं होने से संघ से निष्कासित या स्वयं संघ छोड़कर स्वेच्छिक चर्या कर विहार कर रहे हैं और उन्हीं गुरु के नाम पर सम्मान पा रहे हैं। गुरु विवस-मौन हैं।
यद्यपि कुछ लोग इस व्यवस्था से अभी भी संतुष्ट नहीं होंगे लेकिन एक सम्मान्य विद्वान् के मन्तव्य पर हमें गौर करना होगा- उन्होंने कहा था ‘गुरु प्रायश्चित्त दे, भले ही एक माला फेरने का दे। दण्ड प्रक्रिया में तो आयें।’ । सजग समाज व संगठनों को भी साधुवाद। अन्य शिथिलाचारी साधुओं पर भी इस निर्णय से नियंत्रण होगा।
-डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
सचिव-जैन पत्र सम्पादक महासंघ, इन्दौर
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