कई विद्वानों ने हमें फोन पर बताया है कि पूर्व महामंत्री डाॅ. सुरेन्द्रकुमार जैन ने उनके नाम विद्वानों की स्थायी सदस्यता सूची में से हटा दिये हैं तथा अपने भतीजे, पुत्री एवं अन्य सामान्य जनों को संस्था के विधान की धारा 4 (ब) का उल्लंघन कर स्थायी सदस्य बना लिया है ताकि संस्था पर स्थायी रूप से कब्जा किया सके। हमें श्री अ.भा.दि.जैन विद्वत्परिषद के सन् 1973 से सन् 2012 तक की सभी पत्रावलियाँ रजिस्ट्रार कार्यालय सागर से प्राप्त हो गई हैं। इस सूचना के साथ हम पूर्व मंत्री द्वारा उप-पंजीयक फर्म एवं संस्थाएं के सागर कार्यालय में शपथपूर्वक प्रस्तुत की गई ‘सत्य’ सूची 2013 को पी.डी.एफ फाइल में संलग्न कर रहे हैं। इसका अध्ययन करके सभी ऐसे पूर्व सदस्य हमें सूचित करने का कष्ट करें जिनके नाम इस सूची में नहीं हैं और वे विद्वत्परिषद् के स्थाई सदस्य हैं। आप कृपया अपनी सदस्यता रसीद की छाया प्रति भेजें, यदि रसीद गुम गई हो तो कम से कम दो वार्षिक अधिवेशनों में सम्मिलित होने की पक्की सूचना अनुमानित तारीख व सन् सहित हमें भेजें। सभी अधिवेशनों की उपस्थिति हमें उपलब्ध है। आपकी सूचना से यदि यह प्रमाणित हो जाता है कि आपका नाम पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर या द्वेष वश अथवा संस्था पर एकाधिकार जमाये रखने की नीयत से हटा दिया गया है तो हम ऐसे दुस्कृत्यकारी व्यक्ति को धारा 38 (2) के अधीन दण्ड दिलवा सकेंगे।
किसी सदस्य को किसी कारण से हटाया गया हो ऐसी एक भी सूचना उप-पंजीयक को नहीं दी गई है।